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बंदूक के साए में होते हैं चंबल में चुनावी द्वंद

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चंबल। सदियों तक डकैतों के गढ़ रहे चंबल के बीहड़ों में चुनाव भी बस एक मौसम की मानिंद है। भिंड-मुरैना के बदनाम बीहड़ों में एक बार फिर जीवन और रोजगार का जिक्र हो रहा है। इन इलाकों में डकैतों का अब वजूद नहीं है या यूं कहें कि प्रशासन ऐसा मानता है।

हालांकि यहां के लोगों की रोजी-रोटी की जद्दोजहद आज भी बदस्तूर जारी है। बहरहाल, चंबल में बंदूकें अब भी हर किसी की पसंद बनी हुई हैं। पुलिस के लिए बड़ी चुनौती होती है कि इस क्षेत्र में होने वाले हर चुनाव से पहले लाइसेंसी बंदूकें जब्त की जाए।

यदि पुलिस लाइसेंसी बंदूकें जब्त न करे, तो इन इलाकों में मामूली विवाद पर भी गोलियां चल जाती हैं, खूनखराबा हो जाता है। मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा सीट के सिन्होनिया इलाके में पुलिस अब तक करीब 630 लाइसेंसी हथियार जब्त कर चुकी है।

भिदौसा गांव पहुचंने के लिए काफी आड़े-तिरछे, दुरुह रास्ते से गुजरना होता है। भिदौसा उसी पान सिंह तोमर का गांव है जिसकी जिंदगी पर बॉलीवुड के जाने-माने निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने ‘पान सिंह तोमर’ फिल्म बनाई थी। इस गांव का सूरतेहाल फिल्म में बयान की गई कहानी से काफी मेल खाता है।

गांव के शुरुआती छोर पर ताश खेल रहे दर्जन भर युवक तिरछी नजरों से आगंतुकों का स्वागत करते हैं। इन युवकों की उम्र 40 साल के करीब है। जब इन युवकों से सवाल किया गया कि वे रोजी-रोटी के लिए क्या काम करते हैं, इस पर एक युवक ने टका-सा जवाब दिया।

हम ताश खेलते हैं और खुशी-खुशी अपना वक्त बिताते हैं। चाहे कोई भी समुदाय हो, गांव में कमोबेश हर परिवार के पास बंदूक है। गांव के लोग बंदूकें रखने को जायज ठहराते हुए कहते हैं कि यह उनकी ‘जरूरत’ और ‘रोजी-रोटी’ है।

बैचलर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन (बीसीए) की पढ़ाई पूरी कर भिदौसा में पंचायत ग्राम रोजगार सहायक के पद पर तैनात संदीप महौर ने बताया कि ये बंदूकें हमारे इलाके के युवकों को शहरों में सुरक्षा गार्ड के तौर पर नौकरी दिलाती हैं।

क्या करेंगे ? कोई और पेशा नहीं है। वे सशस्त्र बलों में जाना चाहते हैं। जो सशस्त्र बल में शामिल नहीं हो पाते, सुरक्षा गार्ड बन जाते हैं, जिनके पास बंदूक का लाइसेंस नहीं होता और जो गरीब होते हैं, वे यहां खेतिहर मजदूर के तौर पर काम करते हैं या शहरों में दिहाड़ी करते हैं।

ब्राह्मण पुजारी मेवाराम शर्मा गर्व से बताते हैं कि जब चंबल में डकैतों का राज था तो उनके दादा ने अपने बचाव के लिए लाइसेंसी बंदूक ली थी। वह बंदूक अब उनकी चौथी पीढ़ी यानी मेवाराम के बेटे इस्तेमाल कर रहे हैं। (भाषा)

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