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क्‍या ‘गांधी’ ने भगत सिंह को ‘फांसी’ से बचाने का प्रयास किया था?

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शहीद भगत सिंह उग्र विचारधारा के क्रांति‍कारी थे और महात्‍मा गांधी शांति और अहिंसा के पक्षधर। शहीद भगत सिंह की फांसी को लेकर देश में अलग-अलग मत है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर गांधी जी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे। लेकिन उन्‍होंने फांसी रुकवाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किए।

सच क्‍या है यह तो सिर्फ गांधी जी को ही पता था, लेकिन अलग-अलग सोर्सेस के आधार पर कहा जाता है कि गांधी ने भगत सिंह की फांसी टालने के लिए प्रयास किया था। आइए जानते हैं क्‍या कहा और माना जाता है इस मामले में।

दरअसल सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह एक ही विचारधारा के थे, जबकि गांधी और नेहरू उनसे थोड़ा अलग मत रखते थे। महात्मा गांधी तो हिंसा के सख्त खिलाफ थे। लेकिन इसके बावजूद अगर नेहरू और गांधी चाहते तो भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव को फांसी से बचा लेते। कई बार यह भी आरोप लगते हैं कि नेहरू ने चतुराई से इतिहास के पन्नों में अपने लिए वह जगह बना ली जो भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस को मिलना चाहिए थी।

1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी तब तक उनका कद भारत के सभी नेताओं की तुलना में बहुत ज्‍यादा था। पंजाब में तो लोग महात्मा गांधी से ज्यादा भगत सिंह को पसंद करते थे। यही वजह है कि भगत सिंह को फांसी मिलने के बाद गांधी जी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

देशभर में भगत सिंह की फांसी का विरोध नहीं करने के लिए गांधी के खिलाफ गुस्से का माहौल था। जब गांधी अधिवेशन में शामिल होने के लिए पहुंचे, तो नाराज युवाओं द्वारा काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की। यह वह वक्त था जब भगत सिंह युवाओं के प्रतीक बन गए थे।

अब सवाल यह है कि क्या गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया।  दावा किया जाता है कि अंतिम समय तक गांधी के मन में भगत सिंह के प्रति सहानुभूति हो गई थी।

दावा किया जाता है कि महात्मा गांधी ने 23 मार्च 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी। इस बात का जिक्र My Life is My Message नाम की किताब में बताया जाता है।

गांधी जी ने पत्र में लिखा था, 'अगर फैसले पर थोड़ी भी विचार की गुंजाइश है तो आपसे प्रार्थना है कि सजा को वापस लिया जाए या विचार करने तक स्थगित कर दिया जाए।

किताब के मुताबि‍क गांधी जी ने खत लिखा था और आखिरी समय तक उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों की सजा कम करवाने और उन्हें माफी दिलाने का प्रयास किया, लेकिन अंग्रेजों ने भगत सिंह को तय समय से एक दिन पहले ही फांसी दे दी थी। यह खबर सुनकर गांधीजी बहुत दुखी हुए और कुछ देर के लिए मौन में चले गए थे।

हालांकि इस बात में कितनी सच्‍चाई है यह तो इतिहास में दर्ज हो चुका है। जिसके बारे में अब साफतौर से कहना शायद मुश्‍किल है।

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