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'भोगी के दिन अभयंग स्नान कर साज सिंगार श्याम सुभग तन।
पुण्य काल तिलवा भोग घर के प्रेम सों बीरी अरोगावत निज जन॥1॥
मोहन श्याम मनोहर मूरति करत विहार नित व्रज वृंदावन।
'परमानंददास' को ठाकुर राधा संग करत रंग निश दिन॥2॥'
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'कान्ह अटा चढ़ि चंग उड़ावत हो। अपुने आंगन हू ते हेरो।
लोचन चार भए नंदनंदन काम कटाक्ष भयो भटु मेरो ॥1॥
कितो रही समुझाय सखीरी हट क्यो नमानत बहुतेरो।
'नंददास' प्रभु कब धों मिले हैं ऐंचत डोर किधों मन मेरो ॥2॥'
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