मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में मकर संक्रांति के बारे में विशिष्ट उल्लेख मिलता है। मत्स्य पुराण में व्रत विधि और स्कंद पुराण में संक्रांति पर किए जाने वाले दान को लेकर व्याख्या प्रस्तुत की गई है। यहां यह जानना जरूरी है कि इसे मकर संक्रांति क्यों कहा जाता है?
मकर संक्रांति का सूर्य के राशियों में भ्रमण से गहरा संबंध है। वैज्ञानिक स्तर पर यह पर्व एक महान खगोलीय घटना है और आध्यात्मिक स्तर पर मकर संक्रांति सूर्यदेव के उत्तरायण में प्रवेश की वजह से बहुत महत्वपूर्ण बदलाव का सूचक है। सूर्य 6 माह दक्षिणायन में रहता है और 6 माह उत्तरायण में रहता है।
परंपरागत आधार पर मकर संक्रांति प्रति वर्ष 14 जनवरी को पड़ती है। पंचांग के महीनों के अनुसार यह तिथि पौष या माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। 14 जनवरी को सूर्य प्रति वर्ष धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि बारह राशियों में दसवीं राशि होती है। संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय। संक्रांति उस काल को या तिथि को कहते हैं, जिस दिन सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है और संक्रमण काल के रूप में भी स्वीकारकिया जाता है।