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प्रकृति और कृषि के प्रति आभार का पर्व

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मकर संक्रांति पर्व को सूर्य देव की आराधना और अच्छी खेती के लिए भगवान को धन्यवाद देने के पर्व के रूप में देश भर में विभिन्न नामों से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू करता है। इसे आम लोगों और कृषि प्रधान देश भारत की कृषि के लिए अच्छा संकेत माना जाता है। राज्य चाहे कोई भी हो, इस पर्व का महत्व सबसे ज्यादा किसानों में होता है।

श्रृंगार रस के कवियों के लिए 'वसंत ऋतु' कविताओं की कल्पना की उड़ान के लिए सबसे सही मौसम होता है। इस ऋतु में नई फसल में फूल और फल आने शुरू होते हैं तो दूसरी ओर फूलों की क्यारियों में तरह-तरह के फूलों की मंत्रमुग्ध करने वाली सुगंध बिखरने लगती है। अतः इस पर्व को वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है।

इस पर्व की पावनता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि महाभारत काल में महान योद्धा और प्रतिज्ञा के धनी पितामह भीष्म ने मृत्यु का वरण करने के लिए बाणों की शैय्या पर पड़े-पड़े इंतजार किया था। कृषि से जुड़ा त्योहार होने के कारण कई जगह कृषि यंत्रों की पूजा भी की जाती है। इस दिन गंगा स्नान कर सूर्य की उपासना और गंगाजल से सूर्य देव को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है।

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खास बात यह कि इस दिन से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यानी मकर रेखा के बिलकुल ऊपर होता है। वहाँ से धीरे-धीरे मेष राशि में प्रवेश करने के बाद छह महीने बाद कर्क राशि में प्रवेश करता है। इसी के आधार पर ऋतु परिवर्तन होता है। मकर संक्रांति के दिन से उत्तरायण में दिन का समय बढ़ना और रात्रि का समय घटना शुरू हो जाता है।

कई राज्यों में इस दिन अलग-अलग राज्यों में तिल-गुड़ की गजक, रेवड़ी, लड्डू खाने और उपहार में देने की परंपरा भी है। चावल बाहुल्य वाले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में इस पर्व को ' खिचड़ी' या 'खिचराईं' के नाम से मनाया जाता है। पूर्वी उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु में इस दिन खिचड़ी पकाई और खाई जाती है। कई जगह दाल और चावल दान करने की परंपरा है। जबकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश के कई स्थानों पर बाजरे की खिचड़ी पकाई और खाई जाती है।

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