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हिमालय का द्वार : कारगिल

हमें फॉलो करें हिमालय का द्वार : कारगिल
कारगिल। हिमालय की गोद में बसा कारगिल प्राचीन काल से ही व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। श्रीनगर के पश्चिम में 204 किमी दूर यह शहर समुद्र तल से 2704 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। कश्मीर से चीन के मध्य व्यापारिक मार्ग का यह एक प्रमुख पड़ाव रहा है।
यहाँ के पुराने बाजार में एशियाई तथा तिब्बती वस्तुओं की प्रमुखता 1949 में केन्द्रीय एशियाई व्यापार की समाप्ति के बाद भी काफी समय तक रही थी। 1975 के बाद से विभिन्न राष्ट्रीयताओं वाले व्यापारियों की गतिविधियों के कारण यह पुनः एक प्रमुख व्यापार केन्द्र के रूप में उभरा है।

हिमालय के केन्द्र में बसा होने के कारण कारगिल इस क्षेत्र की रोमांचक यात्राओं के लिए आधार शिविर के रूप में जाना जाता है। सुरु बेसिन के किनारे बसे इस शहर में बाली, गेहूँ, तथा कई प्रकार की सब्जियाँ उगाई जाती हैं। इसके अलावा पहाड़ी पीपल, खूबानी तथा सेब के पेड़ इस शहर की खूबसूरती और भी बढ़ा देते हैं। कारगिल की खूबानी प्रसिद्ध है, जो कि अगस्त के महीने में पककर तैयार हो जाती है।

आकर्षण
कारगिल रोमांचक पर्यटन की दृष्टि से आदर्श स्थान माना जाता है। यहाँ ट्रैकिंग, कैम्पिंग, नौकायन के अलावा पर्वतारोहण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ से एक दिन की यात्रा करके सुरु घाटी पहुँच सकते हैं, जहाँ से हिमालय की ऊँचाइयों का भव्य नजारा दिखता है।

कारगिल से गोमा कारगिल के बीच का दो किलोमीटर लंबा मार्ग साँस रोक देने वाले दृश्यों से भरा पड़ा है। इसके अलावा सुरु नदी के ऊपर से पुराने लकड़ी के पुल से गुजर कर पोयेन गाँव भी जा सकते हैं, जिसके दूसरे किनारे पर वाखा नदी बहती है। यहाँ से शहर तथा पहाड़ियों का अद्भुत नजारा दिखता है।

कारगिल के बाजार से तम्बाकू, ताँबे की केतलियों के अलावा हुक्के भी खरीदे जा सकते हैं, जो यात्रियों की सुविधानुसार बनाए जाते हैं। ज्यादातर दुकानों में रोजमर्रा की जरूरतों का सामान मिलता है, परंतु कुछ दुकानें पर्वतारोहण संबंधी सामान भी बेचती हैं। राजकीय उद्योग केन्द्र के शो रूम में पशमीना शॉल, स्थानीय चटाइयाँ तथा लकड़ी के बने सामान बेचे जाते हैं। यहाँ से कारगिल की सूखी खुबानियाँ भी यादगार के तौर पर ली जा सकती हैं।

बाज़ार में घूमने का उपयुक्त समय दोपहर है, जब भीड़भाड़ कम होती है। इस समय आप 'मिनारोज' नामक अदिवासी प्रजाति से भी टकरा सकते हैं। कहा जाता है कि यह प्रजाति सिकंदर महान की सेना का हिस्सा रह चुकी है, जो अभी भी अपनी मान्यताओं में विश्वास रखती है। यह लोग ऊनी ट्यूनिक पहनते हैं, जिसके किनारों पर शानदार कढ़ाई होती है। सिर पर यह एक भारी टोपी पहनते हैं, जिसमें सूखे फूल, काँटे तथा रिबन लगे होते हैं।

भ्रमणीय स्थल
1. मलबेक चम्बा- इस स्थान का मुख्य आकर्षण 9 मीटर ऊँची मैत्रेय नामक चट्टान है, जिसे भविष्य का बुद्ध कहा जाता है। यह बौद्ध कला का उत्कृष्ट नमूना है।

2. मलबेक गोम्पा- यह इस घाटी में सबसे ऊँची चट्टान पर स्थित है। पुराने समय में यह कारवाओं को रास्ता दिखाने के काम आती थी।

3. शेगॉल- वाखा नदी की घाटी में बसा यह एक अत्यन्त आकर्षक स्थान है। यहाँ का प्रमुख आकर्षण एक गुफा है, जो कि दूर से एक छोटे से धब्बे की तरह दिखाई पड़ती है। कारगिल-लेह मार्ग पर स्थित यह स्थान मलबेक से 5 किलोमीटर की दूरी पर है।

4. उरग्यान जाँग- ऊँची पहाड़ियों से घिरा यह स्थान पुराने समय में बौद्ध संतों का ध्यान स्थल था। तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख पद्मसंभव से जुड़ी गुफा यहाँ का प्रमुख आकर्षण है।

5. वाखा अरग्याल- वाखा घाटी तथा मलबेक के मध्य स्थित यह स्थान गुफाओं को कुछ परिवर्तन रूप में पेश करता है, जिससे वे आधुनिक दिखती हैं। यहाँ से ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के आकर्षक दृश्य दिखते हैं।

कैसे पहुँचें
जम्मू-कश्मीर राज्य परिवहन निगम, श्रीनगर से लेह के बीच नियमित बस सेवा चलता है। इसके अतिरिक्त श्रीनगर तथा लेह से कारगिल के लिए टैक्सी भी मिल सकती है। मलबेक जाने के लिए कारगिल से जीप तथा टैक्सी सेवा उपलब्ध है।

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