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किसी और 'अक्षय' के 'क्षय' होने से पहले....

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स्मृति आदित्य

नाम अक्षय, पत्रकार, चैनल : आजतक, अचानक मौत... हर तरफ दुख और स्तब्धता। यूं तो मौत कहीं भी किसी की भी हो..एक गहरा सन्नाटा, एक अव्यक्त पीड़ा पसरा देती है... मन के भीतर ही कहीं बहुत कुछ भीगता है... 

असमय मौत और अचानक मौत अक्सर हिला कर रख देती है। अक्षय की मृत्यु पर सहसा विश्वास न होने की सबसे बड़ी वजह यही है कि वह असमय और अचानक चला गया... कैसे पल भर पहले कोई साथ में था अचानक वह नहीं है, कहीं नहीं है, राख हो गया और राख की चिंगारी में छोड़ गया सुलगते सवाल... 
 
सवाल जो सदियों से हमारे सामने हैं कि सच बोलने, सच का साथ देने और कर्मठता की राह पर चलने का परिणाम इतना भयावह क्यों होता है? पत्रकारिता का आरंभ ही संघर्ष के धरातल पर हुआ है। चाहे वह भारत की भूमि पर प्रकाशित पहला समाचार पत्र हिक्कीज गजट हो या प्रथम हिन्दी समाचार पत्र उदंत मार्तंड... हर युग और हर वर्ष में पत्रकारों के मारे जाने की, उनकी जुबान बंद करने की विचलित कर देने वाली खबरें आती रही है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं पहले उत्तरप्रदेश का मामला और फिर महाराष्ट्र में खनन माफिया द्वारा पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला कर मार डाला गया... 
 
मात्र एक कलम, सिर्फ एक आवाज, एक सामान्य सा व्यक्तित्व कैसे इतने 'भयानक और भयंकर' लोगों के लिए चुनौती बन जाता है कि उसे रास्ते से हटाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता अपराधियों, नेताओं या आरोपियों के लिए?  
 
कलम की ताकत पर शेर पढ़ने का समय नहीं है अभी, फिलहाल कलम के सिपाहियों की सुरक्षा और सम्मान का सवाल है। इस कलम की स्याही सूखने न पाए, इस आवाज की गर्जना थमने न पाए इसका प्रयास कौन करेगा? कोई नहीं करेगा? हम जो आवाज उठाते हैं जनता के लिए उस आवाज का एक स्वर खुद के लिए भी बचा कर रखें वरना कौन जाने घोटालों के डंपर तले कितने रौंद दिए जाएंगे? कंबल में लपेट कर जला दिए जाएंगे, और भी ना जाने कितने जहर बुझे उपाय हैं आवाज की खामोशी के.... पता भी नहीं चलेगा और प्राकृतिक मौत का प्रमाण पत्र थमा दिया जाएगा...हम पत्रकार तो बड़े 'लो प्रोफाइल' लोग हैं आजतक 'हाई प्रोफाइल' मामले सुनंदा पुष्कर की फाइल का अता-पता नहीं है.. 
 
जाने कितनी मौतों की जांच चल रही है, जांच चलती रहेगी... जांच कभी खत्म नहीं होगी.... खत्म होंगे हमारे उठाए 'सवाल', या सवाल उठाने वाले 'हम'.... इससे पहले कि फिर कोई कलम, कागज, कंप्यूटर, माइक, कैमरा, आवाज पर हाथ उठें, उन्हें खत्म करने की कवायद हो.... दहशत का माहौल पनपे... एक आवाज,एक नारा खुद के लिए बुलंद कीजिए... फिर कोई अक्षय हमारे बीच से उठकर न चला जाए और कोई मंत्री यह न कहने पाए कि ' ''पत्रकार-वत्रकार छोड़ों पत्रकार क्या हमसे बड़े हैं....''   

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