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सावि‍त्री समाचार : एक अखबार, बस मां के नाम

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कहते हैं ॐ शब्द में सारी सृष्टि समाहित है इसमें कितनी सचाई है हम नहीं जानते लेकिन जन्म से पूर्व और जन्म के बाद भी जो रिश्ता हमें पल-पल पोषित करता है उस मां के बारे में यह कथन शत-प्रतिशत सच है कि सारी सृष्टि मां में समाई है। पूरे नौ माह एक जीव गर्भ में पलता है तब से कायम हो जाता है ऐसा अटूट जुड़ाव जिसे कभी भी परिभाषित नहीं किया जा सकता। 

मां के ऋण से कभी कोई उऋण ना हो सका है लेकिन जाने-माने पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने मां के ऋण को चुकाने का जो प्रयास किया है वह निश्चित तौर पर प्रशंसनीय है। विजय ने अपनी मां श्रीमती सावित्री देवी के संपादन में अनूठा समाचार पत्र निकाला है-'सावित्री समाचार'...15 वर्ष तक 9 अस्पतालों में 280 डायलिसिस को सहने वाली मां सावित्री देवी की जीवटता और विलक्षण स्वभाव की जीवंत झलक दिखाता यह अखबार हर बेटे के लिए प्रेरक और हर मां के लिए संग्रहणीय है। हालांकि यह नितांत पारिवारिक प्रयास है और परिवार के ‍ही लिए है, बावजूद इसमें हर पाठक को बांधने की ताकत है। 
 
मां कैसी है, मां ने हमारे लिए क्या किया, हमने मां के लिए क्या किया, मां को क्या पसंद है, मां को क्या अच्छा नहीं लगता, मां को लेकर हमारे मन में उठते-उमड़ते विचार .... इन सब पर हम किताब लिख देते हैं, कहानी, कविता, आलेख, गीत भी रच देते हैं पर विदुषी मां के लिए कुछ अनोखा देने की चाहत ने विजय को अखबार निकालने का विचार दिया और सामने आया उनकी परिकल्पना से सजा 'सावित्री समाचार....'
 
विजय ने सावित्री देवी की बीमारी के दौरान जो मानसिक संघर्ष किया उसके बीच में मां को खुश रखने के जतन भी करते रहे। शहर-शहर इलाज के भटकाव में वे अपने खेत, पौधे, घर, छत, दहलीज और छांव से दूर हो गई थी ऐसे में यह स्वाभाविक भी था कि वे परेशान हुई लेकिन विजय ने उनका मानस बांटने के लिए उनके लंबे साक्षात्कार लिए, उनसे जो सार निकला उसे कुशलता से समेटते हुए यह 8 पृष्ठ का सुपठनीय अखबार प्रकाशित किया। 
 
विजय ने पूरी कोशिश की है कि अखबार में एकरसता को हावी न होने दिया जाए और रोचकता बनी रहे। कहीं शब्दों की जादूगरी है तो कहीं चुस्त-चुटीलापन मोहता है। कहीं तस्वीरों से कहानी आगे बढ़ती है तो कहीं संस्मरण आपकी आंखें नम कर देते हैं, कभी लगता है कि एक स्त्री कितने-‍कितने सुंदर रूपों में हमारे ही आसपास अभिव्यक्त होती है और हम उसे अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं। वह तब भी वही रहती है पर हम कितना कुछ खो देते हैं उसे ना देखकर.... 
 
बीच के पृष्ठ पर बरबस ही आप यह पढ़कर मुस्कुरा उठते हैं - '' काय को लिख रए हो? कौन पढ़ेगो? पप्पू तुम फालतू में दिमाग पच्ची कर रए...सावित्री....(सावित्री तिवारी)     
 
मां ने कितने भावावेग और दुलार से भरकर यह लिखा होगा इसे वह बेटा ही समझ सकता है जो मां के भीतर छुपे मर्म को पढ़ने की दक्षता रखता है। अखबार में इसे संसार का सबसे संक्षिप्त संपादकीय लिखा गया है। खूबसूरत और सारगर्भित कैप्शन, जीवंत चित्रावली के साथ यह अखबार संवेदना और स्नेह से सजा ऐसा स्मृति पत्र है जो इन गहरे शब्दों के साथ विराम लेता है- ''जीवन-मरण की अनंत यात्रा में आप हमें मिलीं। हम सब ईश्वर के अनुग्रहीत हैं।''  
 
अपनी जीवन यात्रा संपन्न करने के बाद भी मां कहीं गई नहीं शब्द-शब्द में मुस्कुरा रही हैं। यही इस अखबार की सार्थकता है। 
 
अंतिम इच्छा पढ़कर आंखें बरसने लगती है विशेषकर उस दिव्यात्मा के शिक्षा के प्रति भाव देखकर....  ‘‘देह मुक्त होने पर अगर ईश्वर से भेंट हुई, तो कहूंगी- अगला जन्म हो तो उच्च कुल में देना, जहां शिक्षा-दीक्षा का श्रेष्ठ और उत्तम वातावरण हो। या पत्थर बनाकर किसी तीर्थ में रख देना। वहीं पड़ी रहूंगी...’।     

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