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आज आसमां भी रोया, कलाम के लिए

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प्रीती सोनी 
दिल यह बात मानने को तैयार ही नहीं है कि, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अब हमारे बीच नहीं रहे। बेशक देश का कोई भी हृदय ऐसा नहीं होगा, जिसने इस खबर को एक बार मानने से इंकार नहीं किया होगा। हर दिल से एक बार तो यह आवाज आई होगी, कि नहीं, यह नहीं हो सकता.... यह नहीं होना चाहिए था।


डॉ. कलाम, जो कभी भारत जैसे - धर्म के नाम पर बंटे इस देश में, अपने धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीयता के आधार पर पहचाने गए और उन्हें हर धर्म, हर जाति के प्रत्येक इंसान का प्यार मिला। डॉ. कलाम एक ऐसे नायक थे, जिन्हें इस देश से मिलने वाला प्रेम कभी धर्म के आधार पर नहीं बंटा। भारत के किसी भी नेता या नायक के प्रति भले ही जनता में मतभेद रहे हों, लेकिन कलाम के प्रति पूरे देश का सम्मान और प्यार एकजुट ही दिखाई दिया, उसमें किसी प्रकार का कोई मतभेद कभी नजर नहीं आया।
 

वे भारत की एक अमूल्य धरोहर थे, जो आज भी इस देश के सोने की चिड़िया होने के गौरव को अपने अंदर समेटे हुए थे। जिसने हर इंसान को इंसान से प्रेम करना सिखाया, हर इंसान को इस बात का एहसास दिलाया, कि सफलता किसी में भेद नहीं करती, वह आपके लिए भी है। बस आपको इसे पाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने होंगे। 
 
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उनके जीवन के सिद्धांत प्रकृति से शि‍क्षा लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। यह सिद्धांत केवल सफलता प्राप्ति ही नहीं, बल्कि पूरे जीवन के लिए वे देश के प्रति पूर्ण समर्पित, ईमानदार और बेहद ही सरल होते हुए भी श्रेष्ठ रहे, और यही उनके जीवन का भी सिद्धांत था। उनका मानना था कि -
 ''जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।''
 
डॉ कलाम ने अपने जीवन को दूसरों के लिए एक चिराग की तरह बनाया, और सफलता के कई मार्ग प्रशस्त किए और हमेशा सीख भी यही दी, कि - ''किसी के जीवन में उजाला लाओ।'' 

चाचा नेहरू की तरह ही डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को बच्चों से बहुत प्रेम था, और वे बच्चों को हमारे देश का आने वाला बेहतर भविष्य मानते थे। इसीलिए वे देश के नौनिहालों को अच्छी सीख और संस्कार देने में विश्वास रखते थे, जो परिवार और देशहित में हो। उनके अनुसार, माता-पिता और देशहित सर्वोपरि होना चाहिए।

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वे हमेशा कहते थे-  ''दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बड़ों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो इनके बिना जीवन अर्थहीन है।'' 
एक सादगी भरे अस्ति‍त्व में उत्कृष्ट गुणों को समेटे उनका व्यक्ति‍‍त्व कि‍तना अतुलनीय था, इसकी भी तुलना करना असंभव सा लगता है। अपने-आप में अनगिनत और अनजाने अहंकार को समेटे हम जैसे सामान्य लोगों ने, उस महान व्यक्तित्व में कहीं इस दुर्गण को नहीं पाया होगा। क्योंकि उनकी महानता, अनिवार्यतम मानवीय गुणों में छिपी थी। वे हमारी तरह अनावश्यक दंभ के आडंबर को खुद पर कभी नहीं चढ़ा पाए। उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश और जनता को हमेशा दिया ही है, और उनका दृढ़ विश्वास था कि‍- ''देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परंतु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए। 
वे कभी वर्तमान परिस्थि‍तियों के नाम पर नहीं रोए, बल्कि उनका मानना था कि - ''समय, धैर्य तथा प्रकृति, सभी प्रकार की पीड़ाओं को दूर करने और सभी प्रकार के जख्मों को भरने वाले बेहतर चिकित्सक हैं।''

अपने अंदर हजार शिकायतों और रंजिशों का अंबार लेकर मुस्कुराने वालों के लिए उनकी यह सीख बेहद महत्वपूर्ण है - ''हमें मुस्कराहट का परिधान जरूर पहनना चाहिये तथा उसे सुरक्षित रखने के लिये हमारी आत्मा को गुणों का परिधान पहनाना चाहिए।''

छोटी- छोटी क्षणभंगुर चीजों में अपने जीवन की खुशि‍यों को तलाशते हम उनके इस वाक्य से अपने दिमागी भटकाव को रोक सकते हैं कि - ''अपने जीवन में उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखो और उसे प्राप्त करो।'' साथ ही प्रकृति और ईश्वर द्वारा कला के रूप में हमें दिए गए अनमोल उपहार के लिए भी वे हमेशा यही सीख देते रहे, कि - प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो। यह वाक्य न केवल हमारे स्वयं के विकास के लिए था, बल्कि इसमें हमारे देश का विकास भी निहित है। जीवन के प्रत्येक क्षण के लिए उनकी यह सीख कीमती है।
 
कलाम, कुदरत का एक कमाल थे, जिनका संपूर्ण जीवन देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बेशकीमती प्रेरणास्त्रोत है, और हमेशा रहेगा। मिट्टी से बना देश का यह लाल,जब इस दुनिया में आया होगा, नि‍श्चित ही सूरज का तेज और चंद्रमा की रौशनी अदृभुत होगी, हवाओं में कभी न महसूस होने वाली शीतलता होगी, और आसमान भी मुस्कुरा रहा होगा। आज फिर जब मिट्टी का यह लाल मिट्टी में विदा हो रहा है, तो यह आसमान, बरसात के पानी में अपने आंसुओं से श्रद्धांजलि दे रहा होगा। 

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