Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हम क्यों मनुष्य को बांट रहे हैं?

हमें फॉलो करें हम क्यों मनुष्य को बांट रहे हैं?
webdunia

ललि‍त गर्ग

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका में भारतीयों पर हमले थम नहीं रहे हैं। दिनोंदिन भारतीय नागरिकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। न केवल अमेरिका बल्कि ऑस्ट्रेलिया की इन नस्ली हिंसा की घटनाओं के साथ-साथ नोएडा की ताजा नस्ली घटना चिंता पैदा करती है। इस तरह की घोर निंदनीय घटनाओं से मानवता भी आहत एवं शर्मसार हो रही है। जब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में इस घृणा का शिकार कोई भारतीय नागरिक या भारतीय मूल का व्यक्ति बनता है, तो हमें चिंता होती है। जब उसी घृणा का शिकार किसी पश्चिम एशियाई देश का व्यक्ति या कोई पाकिस्तानी बनता है, तो हम बेपरवाह हो जाते हैं। अपने देश में अफ्रीकियों पर हमला हमें चिंति‍त नहीं करता। यह कैसी संकीर्णता है? यह कैसा मानव समाज निर्मित हो रहा है? इस तरह हम क्यों मनुष्य को बांट रहे हैं? क्यों सत्य को ढक रहे हैं? 
 
बढ़ती नस्ली हिंसा, मारकाट, अभद्र व्यवहार की घटनाएं विश्व मानव समाज के लिये चिंता की बात है। अमेरिका में एक अज्ञात व्यक्ति ने शुक्रवार को 39 वर्षीय एक सिख दीप राय को उसी के घर के बाहर गोली मारकर घायल कर दिया। हमलावर गोली चलाते समय चिल्लाते हुए कथित तौर पर कह रहा था- ‘अपने देश वापस जाओ।’ कंसास में श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या और साउथ कैरोलिना में भारतीय मूल के व्यवसायी हर्निश पटेल की हत्या डराती है, नई शासन व्यवस्थाओं पर प्रश्न खड़े करती है। अमेरिका में इन हिंसक घटनाओं को लेकर भारतीय समुदाय भय के माहौल में है। ये हमले अमेरिका में भारतीय समुदाय की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय भी है और उन पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। इस बीच अब एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया में एक भारतीय पर नस्लीय हमले का मामला प्रकाश में आया है। हमले में जख्मी भारतीय मैक्स जॉय केरल के रहने वाले हैं और ऑस्ट्रेलिया में नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। मैक्स पर एक रेस्तरां में कॉफी पीने के दौरान कुछ लोगों ने पहले नस्लीय टिप्पणी की और फिर उन पर हमला कर दिया।
 
विडंबनापूर्ण स्थिति तो तब उपस्थित हुई जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा इलाके में अफ्रीकी छात्रों पर नस्लीय हमला हुआ, इस हमले ने हमें भी शर्मसार कर दिया है। बीते शनिवार की इस घटना को 12वीं के एक छात्र की कथित तौर पर ड्रग्स के ओवरडोज के चलते हुई मौत से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि किसी अफ्रीकी युवक ने ही इस छात्र को ड्रग्स का आदी बनाया था। इससे नाराज लोगों ने पूरे शहर में कहीं भी दिख गए अफ्रीकी छात्रों पर हमला कर दिया। ये घटनाएं नस्लीय घृणा की उदाहरण हैं। इनके विकराल रूप कई संकेत दे रहे हैं, उसको समझना है। कई सवाल खड़े कर रहा है, जिसका उत्तर देना है। इसने संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार एवं मानवीय एकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
 
नोएडा की घटना का मकसद दोनों तरफ तनाव बढ़ाकर अशांति भड़काना रहा होगा। स्थानीय प्रशासन भी हिंसा की इन घटनाओं के पीछे गुंडा तत्वों का हाथ बता रहा है। मगर ऐसे मामलों का पूरा दोष असामाजिक तत्वों पर डाल देने से बात नहीं बनती। आम लोगों के दिलो-दिमाग में धीरे-धीरे जड़ जमाती गलत धारणाओं और नस्लीय भावनाओं की इसमें सबसे अहम भूमिका होती है। अफ्रीकी मूल के लोगों के बारे में अपने देश में यह धारणा-सी बन गई है कि ये नशे के कारोबार से जुड़े होते हैं। ग्रेटर नोएडा ऐसे नस्ली हमलों के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील इलाके के रूप में उभर रहा है। वजह यह है कि हाल के वर्षों में यहां कई निजी विश्वविद्यालय खुल गए हैं, जहां अफ्रीकी देशों से भी बड़ी संख्या में छात्र आ रहे हैं। ऐसी घटनाओं के बाद विदेश मंत्रालय सतर्क हुआ है, मामले की निष्पक्ष जांच कराने की बातें भी कही गई हैं, मगर अजीब बात है कि राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के इलाकों में फैल रही नस्ली भावनाओं से निपटने की कोई सार्थक एवं प्रभावी पहल होती हुई नहीं दिख रही है। लोगों को यह बताने की कोशिश नहीं हुई कि कोई व्यक्ति अपराधी हो सकता है, पर इस आधार पर किसी समुदाय को अपराधी मान लेने की प्रवृत्ति दुनिया को देखते-देखते नरक बना देगी। 
 
पहले हिन्दू और मुसलमान के बीच भेदरेखा खींची गई फिर सवर्ण और हरिजन के बीच, उसके बाद अमीर और गरीब फिर ग्रामीण और शहरी के बीच और अब गोरे काले के बीच भेदरेखा खींचने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब करके कौन क्या खोजना चाहता है- मालूम नहीं? पर यह निश्चित है कि इंसान को नहीं खोजा जा रहा है। दरअसल, हमारे समाज में एक तरह का मानसिक विभाजन हर वक्त काम करता रहता है। इसमें रंग, जाति और हैसियत के आधार पर बनी बेमानी धारणाएं और पूर्वाग्रह अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होते रहते हैं। इन पूर्वाग्रहों एवं मानसिकताओं को बदलना जरूरी है।
 
ऐसे पूर्वाग्रह केवल अफ्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ नहीं पाए जाते। देश में दलितों पर हिंसा के ऐसे अनेक मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें वजह सिर्फ जाति होती है। देश के भीतर ही पूर्वोत्तर के लोगों को सिर्फ उनके अलग रंग-रूप की वजह से जिस तरह के दुव्र्यवहार झेलने पड़ते हैं, वह जगजाहिर है। यह अधिकारों के हनन का मामला तो है ही, लेकिन ज्यादा अफसोसजनक पहलू लोगों की समझ का स्तर है। आखिर किन वजहों से लोग अपने से अलग पहचान वालों से इस कदर नफरत, घृणा एवं द्वेष करते हैं? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि रंग, नस्ल या जाति के आधार पर ही किसी को अपराधी मान लेने की मानसिकता समाज के सभ्य होने के रास्ते की बड़ी बाधा है। सवाल केवल अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या भारत का नहीं, सवाल नैतिकता एवं मानवीयता लाने का है, सवाल नस्लभेद को समाप्त करने का है, सवाल नस्ली शोषण में उपजी घृणा को भाईचारे में बदलने का है। इन नस्ली भेदों से इंसान को आजादी मिले। आजादी मात्र शब्द नहीं, एक असीम विस्तार है दायित्वों का।
 
दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र और उनके सामने यह नस्ली उन्माद सबसे बड़ी चुनौती है। जो बात अमेरिका के लिए सही नहीं हो सकती, वह भारत के लिए भी सही नहीं हो सकती। हमें अब इस बात पर गौर करना ही होगा कि स्वयं को सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त समझने, दूसरों को देशद्रोही घोषित करने और देश छोड़ कर भाग जाने का फतवा जारी करने वाली धारा भारत में भी आखिर क्यों मजबूत हो रही है। जो अमेरिका में गलत है, वह भारत में सही कैसे हो सकता है?
 
इस प्रकार यह नस्ली विस्फोटों एवं हिंसा की शृंखला, अमानवीय कृत्य अनेक सवाल पैदा कर रहे हैं। कुछ सवाल लाशों के साथ सो जाते हैं। कुछ घायलों के साथ घायल हुए पड़े रहते हैं। कुछ समय को मालूम है, जो भविष्य में उद्घाटित होंगे। इसके पीछे किसका दिमाग और किसका हाथ है? आज करोड़ों मनुष्यों के दिल और दिमाग में यह सवाल है। क्या हो गया है हमारे मानवता एवं मानवीयता को? नस्ली हिंसा रूप बदल-बदल कर अपना करतब दिखाती है- विनाश और निर्दोष लोगों की हत्या। निर्दोषों को मारना कोई मुश्किल नहीं। कोई वीरता नहीं। पर निर्दोष तब मरते हैं जब पूरी मानवता घायल होती है।
 
उन खूनी हाथों को खोजना होगा अन्यथा खूनी हाथों में फिर खुजली आने लगेगी। हमें इस काम में पूरी शक्ति और कौशल लगाना होगा। आदमखोरों की मांद तक जाना होगा। अन्यथा हमारी सरकारों एवं उनकी खोजी एजेंसियों की काबिलीयत पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा कि कोई दो-चार व्यक्ति कभी भी पूरी दुनिया की शांति और जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं। कोई हमारा उद्योग, व्यापार ठप्प कर सकता है। कोई हमारी शासन प्रणाली को गूंगी बना सकता है। समय की चट्टान पर उन्हीं के पद्चिन्ह अमिट रहेंगे जो नैतिक इच्छा शक्ति से इन समस्याओं के समाधान खोजेंगे। इस इन्द्रधनुषी धरती पर कोई शोषण नहीं हो, किसी की गरिमा को चोट नहीं पहुंचे, किसी की हत्या न हो। काले-गोरे बीते को भुलाकर उदाहरणीय भविष्य बनावें। तभी नई व्यवस्था विश्वसनीय बनेगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी कविता : परिवर्तन