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अखाड़े के बाहर भारत के दो पहलवानों की कुश्ती

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डॉ. प्रवीण तिवारी

राजनीति में खेल और खेल में राजनीति ये दुनिया को कोई सिखा सकता है तो वो भारत ही है। आमतौर पर खेलों का बड़ा हिस्सा क्रिकेट के इर्दगिर्द सिमट के रह जाता है। मालदार खेल होने की वजह से क्रिकेट को ही खेल का पर्याय भी समझा जाता रहा, लेकिन अब हालात बदले हैं। ग्लैमर की दुनिया में सिर्फ क्रिकेट के चेहरे ही नहीं बल्कि दूसरे खेलों के भी चेहरे चमकने लगे। खासतौर पर ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले पहलवान और मुक्केबाज भी स्टार्स बन गए। 
सुशील कुमार देश के कई युवाओं के लिए आदर्श बनकर उभरे और कई युवाओं में जोश जगाया कि वो भी दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकते हैं। ऐसे ही एक युवा रहे मुंबई के नरसिंह यादव लेकिन अब जब नाम कमाने का मौका आया है राह का रोड़ा बन गए हैं कभी उनके आदर्श रहे सुशील कुमार ही। पिछले ओलंपिक के दौरान नरसिंह भी भारतीय टीम की ओर से भेजे गए थे। अलग-अलग वैट कैटेगरी होने की वजह से सुशील और नरसिंह दोनों को ही जगह मिली थी। इस बार मामला उलझ गया है क्योंकि सुशील और नरसिंह एक ही वैट कैटेगरी में हैं। क्वालीफाई करने की औपचारिकताओं की बात करें तो नरसिंह इन्हें पूरा कर चुके हैं लेकिन यदि खेल में कद और अनुभव की बात करें तो सुशील की टक्कर का कोई पहलवान नहीं दिखता, अब कौन ओलंपिक जाएगा, कौन नहीं, एक नए विवाद का सबब बन गया है।
 
2012 में कुश्ती के लिए ओलंपिक का सबसे बड़ा पदक जीता सुशील कुमार ने। सुशील इससे पहले 2008 बीजिंग ओलंपिक में भी सिल्वर जीत चुके थे। मुझे मौका मिला देश की तरफ से भेजे जा रहे सभी पहलवानों से बातचीत करने का। सोनीपत में SAI के कैंपस में सभी प्रैक्टिस कर रहे थे। मैं सुशील और योगेश्वर से पहले से परिचित था लेकिन नरसिंह और अमित कुमार जैसे नाम मेरे लिए नए थे। 
 
जाहिर तौर पर बातचीत का उत्साह भी इन्हीं लोगों से ज्यादा था। सुशील कुमार स्टार बन चुके थे और उनसे 2012 ओलंपिक में भी उम्मीदें थीं तो योगी भी कॉमनवेल्थ के बाद से स्टार ही थे। इस बीच नरसिंह को मिले मौके ने भी उत्साहित किया था। मुंबई की गलियों में दूध बेचने वाला एक लड़का ओलंपिक में जा रहा था। बहुत मेहनती भी था और खुद सुशील ने उस वक्त कहा था कि ये लड़का कमाल करेगा। नरसिंह बहुत ही शर्मीले थे। सहमे हुए भी थे क्योंकि ये पहला मौका था जब उनका नाम पूरे देश में गूंज रहा था। बहुत कम शब्दों में सवालों के जवाब दे रहे थे लेकिन उनकी एक बात आज यहां कोट की जा सकती है। 
 
उनका कहना था कि सुशील कुमार को देखकर विश्वास बढ़ा कि हम लोग भी कुछ कर सकते हैं। सिर्फ मैं ही नहीं देश के तमाम युवाओं ने एक उम्मीद की किरण सुशील कुमार के तौर पर देखी। उन्होंने देश में कुश्ती की शक्ल ही बदल दी। इस बात से आज भी कोई इंकार नहीं करेगा। इसी मौके पर जब सुशील से बात हुई तो उन्होंने पुरजोर तरीके से नरसिंह को ओलंपिक पदक का दावेदार बताया था। वे उनकी तकनीक और जुनून के बारे में भी बोल रहे थे।
 
ये गुजरे जमाने की बात हो गई अब ये दो पहलवान रिंग के बाहर आमने-सामने हैं। अब बड़ा सवाल ये है कि इस साल अगस्त में भारत की तरफ से मैट पर भारत का कौन महारथी उतरेगा, ओलंपिक में 2 पदक जीत चुके सुशील कुमार या फिर ओलंपिक के लिए बर्थ जीतने वाले नरसिंह पंचम यादव? दरअसल रियो ओलंपिक के लिए 74 किलो ग्राम केटेगरी में सिर्फ एक भारतीय पहलवान को लड़ना है। नरसिंह यादव वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर इसके आधिकारिक दावेदार बन चुके हैं, वहीं सुशील कुमार पदक की ज्यादा संभावनाओं के तहत इस पर दावा जमा रहे हैं। 
 
कायदा यही रहा है कि जिसने कोटा जीता है मौका उसी को मिलता है लेकिन सुशील कुमार के नाम और अनुभव को देखते हुए इस बार पेच फंस गया है। दोनों पहलवानों की दावेदारी के बीच अब फैसला भारतीय कुश्ती फेडरेशन को करना है कि वो किसे मौका देती है? और इसके लिए दोनों दिग्गज पहलवानों की आपस में कुश्ती की भी बात हो रही है। ऐसी स्थिति में इसके अलावा कोई चारा भी नहीं दिखाई पड़ता यानि सुशील कुमार को अब अपनी जगह पक्की करने के लिए उस युवा से मैदान में भिड़ना पड़ सकता है जिसके लिए वो कभी आदर्श हुआ करते थे। 
 
हालांकि कुश्ती फेडरेशन को ये फैसला लेना है, ऐसे में वो अनुभव के आधार पर सुशील कुमार को रियो ओलंपिक का टिकट भी दे सकती है। हो ये भी सकता है कि नए टैलेंट को आगे आने का मौका देने के लिए खुद सुशील कुमार पीछे हट जाएं। ये सारी बातें कयास भर हैं, क्योंकि फेडरेशन को पदक की संभावनाओं के आधार पर फैसला लेना है। पिछले ओलंपिक में नरसिंह नए थे और कुछ कमाल नहीं कर पाए थे जबकि मेडल जीतने का अनुभव रखने वाले सुशील ने अपने मेडल को बेहतर किया था। 
 
हालांकि इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बाद के तमाम टूर्नामेंट में नरसिंह लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। 2010 कॉमनवेल्थ में उन्होंने गोल्ड भी जीता था और इस बार भी रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने की औपचारिकताएं पूरी की हैं। उनका करियर परवान चढ़ना है इसीलिए जाहिर तौर पर वो तो पीछे हटने से रहे। अब देखना होगा रिंग के बाहर चल रहे इस दंगल का नतीजा क्या निकलता है।
 


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