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हम जूना-पुराना लौटाया हुआ पुरस्कार लेते हैं!

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मनोज कुमार सिंह 
शादी के 12 साल बाद एक शाम घर लौटा तो बेल बजाते ही दरवाजे के पीछे से छम-छम कर, किसी के चलने की आवाज आई। डर के मारे बिजली की गति से नेम प्लेट देखा, घर का नंबर देखा – घर अपना ही था। दरवाजा खुला तो बीवी भी अपनी ही थी, मगर जींस- टीशर्ट की जगह आज उसने शुद्ध शाकाहारी लिबास पहना था। 
 
याद आया आज हैप्पी करवा चौथ है। बारह साल में यह दूसरी बार था जब पत्नी करवा चौथ वाले दिन थाल सजाकर इंतजार कर रही थी। मैंने पूछा – अरे यार! यह सब क्या है? वाइफी ने जवाब दिया – सोचा कि तुम कितनी मेहनत करते हो... बाहर की दुनिया बड़ी कठिन है.... तो एक दिन तो तुम्हें स्पेशल फील कराना चाहिए। पुरुष का सम्मान होना चाहिए। 
 
मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई। भई अपन लोग नए जमाने वाले जोड़े हैं। भले ही शादी को 12 साल हो गए... भले ही गाजीपुरिया हैं, मगर रहन-सहन तो मुंबई वाला ही है। और सम्मान का तो आजकल वैसे भी बड़ा अपमान हो रहा है। उस पर पत्नी का सम्मान ऐसा, कि कभी लौटा भी नहीं सकते हैं। यह जो अपने साहित्यकार लोग, सिनेमा वाले आजकल जिस धड़ल्ले से सम्मान लौटा रहे हैं, वो भी यह कहकर कि - देश में सौहार्द का माहौल बिगड़ रहा है। कभी अपनी पत्नी का सम्मान लौटा कर दिखाएं, जबकि वैवाहिक जीवन में तो रोज ही सौहार्द बिगड़ा रहता है। 
 
लेकिन घर का सम्मान कोई सड़क पर थोड़े ही लौटाता है। यह तो देश की बात है और देश के लिए सम्मान लौटाना घोर आवश्यक है। खैर पत्नी पर लौटते हैं। पत्नी ने पूछा तुमको आज तक कोई सम्मान मिला है ? मैंने शरमाते हुए कहा – अरे मेरा सम्मान तो तुम ही हो। वह बोली झूठ मत बोलो, इत्ते साल टीवी में पत्रकारिता की, मगर आज तक तुम्हें किसी मारवाड़ी संस्थान ने भी सम्मान के लिए नहीं पूछा। मैं ताव खा गया – अरे क्या बात करती हो यार, यह सब सम्मान वगैरह तिकड़म का खेल है। आज सम्मान लेंगे, कल को सरकार बदल जाएगी, परसों देश का सौहार्द खराब होगा, फिर वे कहेंगे – लौटा दो। 
 
माना कि पुरस्कार लौटाने से देश का बड़ा भला हो रहा है। सरकार को भी उम्मीद है, कि इससे काफी सारा सफेद धन वापस लौटेगा। नए लेखकों, फिल्मकारों एवं चाटुकारों के लिए पुरस्कार पाने का रास्ता साफ होगा। लेकिन पुरस्कार लौटाने वालों को मेरा एक सुझाव है कि - अगर सरकार को नीचा ही दिखाना है तो फेसबुक पर इतना साहित्य हमने भी लिखा है, देखिएगा एकाधठो हो सके तो हमारे यहां भी लाइएगा। चैनलों पर पुरस्कार लौटाने से बेहतर है, हम जैसे ओंछे फेसबुकिया एवं सस्ता साहित्य लिखने वालों को अपना सम्मान देकर सरकार को लज्जित करें। देखिए सर ये सुनहरा मौका है - हम जूना पुराना लौटाया हुआ पुरस्कार लेते हैं। हमारा पता फेसबुक पर मिल जाएगा। 

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