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छोटे से कस्बे से सिंगापुर में जल संकट से निपटने की कहानी

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डॉ. प्रवीण तिवारी

स्टार्ट-अप इंडिया मोदी सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। निवेशकों को आकर्षित करने के प्रयास भी प्रधानमंत्री मोदी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान करते रहे हैं। योजनाएं आती जाती रहती हैं लेकिन कई प्रतिभाएं अपनी जगह खुद तलाशती हैं।


ऐसी ही प्रतिभाओं ने उन लोगों को भी प्रेरणा दी है जो हमेशा परिस्थितियों का रोना रोते रहते हैं। बहुत से युवा सिस्टम का रोना रोने में अपनी ऊर्जा और समय बर्बाद कर देते हैं, तो कई ऐसे भी युवा होते हैं जो भविष्य की योजनाओं को सामने रखते हैं। ऐसे युवा जहां खुद के पैर जमाने की कोशिश करते हैं तो भविष्य में स्टार्ट अप के सपनों को सचमुच साकार करने के लिए एक आशा की किरण भी दिखाते हैं।
 
देश में कई प्रतिभाओं ने विदेशों में भी हमारा नाम रोशन किया है। विज्ञान के क्षेत्र में भी कई प्रतिभाशाली लोग भारत का नाम रौशन कर रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है डॉ. शैलेष खर्कवाल का। शैलेष उत्तराखंड के एक छोटे से कस्बे के रहने वाले हैं। नेपाल बॉर्डर पर मौजूद टनकपुर में स्कूली शिक्षा के बाद बच्चों को अन्य जगहों पर उच्च शिक्षा के लिए जाना पड़ता था। ऐसे हालात में सामान्य आर्थिक स्थिति वाले शैलेष ने पहले कड़ी मेहनत से आईआईटी खड़गपुर में एडमिशन पाया और फिर एजुकेशन लोन लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। 
 
इस तरह की भी कई प्रतिभाएं देश से निकलती हैं, लेकिन शैलेष को खास बनाती है उनकी सोशल एंटरप्रेनरशिप की सोच। स्टार्ट अप इंडिया को लॉंच करते हुए जो बातें पीएम मोदी ने कही थी, शैलेष सिंगापुर में रहते हुए भी कुछ उसी दिशा में बढ़ते दिखाई देते हैं। वॉटर टेक्नॉलॉजी में उनका और उनकी युनिवर्सिटी का पूरी दुनिया में नाम है। दुनिया भर के वैज्ञानिक उनकी रिसर्च का फायदा उठाते हैं। सिंगापुर जैसे पानी की समस्या से जूझ रहे देश ने, न सिर्फ पानी के लिए खुद को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि अन्य देशों को भी वॉटर टेक्नॉलॉजी देने का काम किया है। शैलेष जैसे वैज्ञानिकों का लाभ सिंगापुर और दुनिया के कई अन्य देशों को मिलता रहा है।
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भारतीय पृष्ठभूमि और चुनौतियों को जानने वाले शैलेष के मन में देश के लिए कुछ करने का जज्बा है, यही वजह रही कि दुनिया के कई देशों में काम करने के अवसर होने के बावजूद वो भारत के लिए काम करना चाहते हैं। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्हें बहुत ही सस्ती दरों पर एक ऐसी तकनीक को ईजाद कर लिया है जिससे पीने के शुद्ध पानी की समस्या से निपटा जा सकता है। उन्होंने गांवों और मुहल्लों के लिए इस तरह के वॉटर प्लांट तैयार किए हैं जिन्हें बहुत ही कम कीमत और कम जगह में बनाया जा सकता है। इसी तरह नदियों में फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर हर पल नजर रखने के लिए बनाए गए उनके सेंसर सिस्टम को सिंगापुर के राष्ट्रपति ने सराहा है। जल्द ही इसे सिंगापुर की सरकार अपने देश की नदियों की निगरानी के लिए आवश्यक भी करने जा रही है। 
 
उन्होंने एक कठिन प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के बाद नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में अपनी जगह बनाई। यहां से पीएचडी करते हुए उन्हें कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में भी काम करने का मौका मिला। शैलेष ने अपनी प्रतिभा से यहां भी एक सम्मानजनक स्थिति हासिल की और आज वो सिंगापुर में पानी पर काम करने वाले सम्मानित वैज्ञानिकों में शामिल है।
 
भारत में गंदे पानी की समस्या को लेकर डॉ. शैलेष हमेशा सोचते रहे। खासतौर पर उत्तराखंड और देश के कई अन्य हिस्सों में पानी में पाए जाने वाले घातक तत्वों पर भी उन्होंने शोध किया। वो किसी ऐसे अविष्कार को सामने रखना चाहते थे, जो भारतीय आर्थिक स्थिति को देखते हुए सस्ता भी हो और इस्तेमाल के लिहाज से सुलभ भी।
 
शैलेष आखिरकार एक ऐसा पंप बनाने में कामयाब हो गए, जो 300 लीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गंदे पानी को पीने योग्य बना सकता है। उनके इस अविष्कार की सिंगापुर के राष्ट्रपति ने भी प्रशंसा की। इसके साथ ही उन्होंने नदियों को गंदा करने वाली इंडस्ट्रीज पर नजर रखने के लिए एक सेंसर टेक्नोलॉजी को भी ईजाद किया है। इस अविष्कार के तहत एक सेंसर के माध्यम से किसी भी गंदगी के नदियों में जाने की मॉनिटरिंग की जा सकती है। सिंगापुर के राष्ट्रपति टोनी टान ने भी उनके इस अविष्कार को देखा और उसकी सराहना की है। 
 
भारत में बाढ़ के हालात में बिना बिजली से पीने के शुद्ध पानी को मुहैया कराने की तकनीक भी उन्होंने ईजाद की है। इसके अलावा उन्होंने पानी साफ करने वाला एक पोर्टेबल पंप भी बनाया है। जो महज 3 से 4 किलो वजन का है। इसकी खासियत यह है कि इसके लिए बिजली की भी आवश्यकता नहीं है। इसे बाढ़ जैसे मौकों पर या जंगली इलाकों में, ग्रामीण इलाकों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पंप को सोलर ऊर्जा से चलने वाले किसी बड़े प्लांट से जोड़ कर पूरे गांव के लिए भी पीने के शुद्ध पानी की व्यवस्था की जा सकती है। इस तरह के किसी प्लांट से पूरे मोहल्ले या एक छोटे गांव के लिए भी शुद्ध पानी की आपूर्ति की जा सकती है।
 
सेंसर टेक्नोलॉजी से नदियों की निगरानी करने वाले उपकरण को नदियों के किनारे लगाया जा सकता है। इसके लिए बहुत ज्यादा जगह की आवश्यकता भी नहीं है। जैसे ही किसी इंडस्ट्री की गंदगी नदी के पानी में गिरती है, एक एसएसएस के जरिए यह तकनीक अथॉरिटीज को इसके प्रति आगाह कर देती है। इस सिस्टम के जरिए फौरन ही उस गंदे पानी का सैंपल भी कैप्चर हो जाता है, जो ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई के लिए जरूरी होता है। गंगा और यमुना के अलावा देश की अन्य नदियों के बचाने के लिहाज से भी उनका यह अविष्कार काफी कारगर सिद्ध हो सकता है।

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डॉ. शैलेष के अविष्कारों को नया बल तब मिला जब भारत के पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने हाल ही में उनसे मुलाकात कर उनके इन अविष्कारों को समझा। भोपाल के नजदीक एक गांव में शैलेष ने अपना एक प्लांट लगाया भी है। यदि यह प्लांट भारतीय मानको पर खरा उतरता है तो उनकी यह तकनीक देश के सभी गांवों में भी लागू हो सकती है। डॉ. शैलेष की तरह पानी के क्षेत्र में काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक भविष्य में सोशल एंटरप्रेनरशिप की संभावनाओं को भी मजबूत करते हैं।

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