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पाक-चीन की हरकतें अशोभनीय

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

वर्तमान में चीन के सामान के विरोध में लोग आगे आए हैं। चीन से युद्ध 62 में होने के बाद चीन ने भारतीय सीमा पर अवरोध उत्पन्न किए व पाकिस्तान को हथियार और अन्य स्तर पर मदद व समर्थन करता आ रहा है।


स्वदेशी सामग्रियों को महत्व व बढ़ावा देकर देशी उत्पादकों को प्राथमिकता देने से हमारा पैसा देश में ही रहे ऐसा कार्य करना होगा। चीन से बनी सामग्रीयों में मूल्य की कमी से आकर्षित अवश्य हुए मगर इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं है। चाइना मंजा कितने (इंसानों, पशु-पक्षियों आदि) को घायल कर चुका, प्लास्टिक चावल, पत्ता गोभी, मोबाइल फटने, मेहंदी से हाथ पैर में एलर्जी आदि से सब परेशान थे। इनके अलावा पाकिस्तान को आतंक गतिविधियों में मदद करना चाइना सामग्री के बहिष्कार का कारण बना। 
 
इसी कारण चीन भारत की अर्थ व्यवस्थाओं को गड़बड़ाने की कोशिश में घातक और सस्ती सामग्रियों की खेप भारत को पहुंचा रहा है। बीच में दोनों देशों के आपसी रिश्तों में सुधार की आशा दिखाई दी थी और कहने लगे थे "हिंदी चीनी भाई-भाई" मगर पाकिस्तान के द्धारा आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने व चीन से ज्यादा मतलब दिखने के कारण यह दोनों देश शंकास्पद साबित हुए। हमारे हिंदी फिल्म निर्माताओं ने इनसे परहेज दिखाते हुए चीनी लोगों से दुरी बनाए रखने के संकेत दे दिए थे। उदहारण "चीनी कम" फिल्म का शीर्षक रखकर। एवं डायबिटीज से पीड़ित लोग भी चीनी कम कर चीन के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित कर ही रहे हैं। आतंक को पनपाने वाले देश अंतर राष्ट्रीय बैठकों में आतंक की चिंतनीय समस्याओं को नजर अंदाज कर रहे हैं। बैठकों में भी इनका बहिष्कार होना चाहिए, क्योंकि बैठकें समस्याओं के समाधान और विकास कार्यक्रम को लेकर होती हैं। इन देशों की भीतरी घात दुष्प्रवत्त‍ि, समस्याओं को बढ़ावा देकर प्रतिबंध नियमों का मखौल उड़ा रही हैं। 
 
भारत के आंतरिक मामलों में पाक की दखलंदाजी एवं संघर्ष विराम का उल्ल्घन के कारण भारत का अब सख्त कदम उठाना ही होगा। सर्जिकल स्ट्राइक से आतंक को खत्म करने की गोपनीयता से आतंक की समस्याओं का निदान भला कहा संभव है। आतंक को रोकने का उपाय क्या हमारे पास है ? आतंक का सफाया कब करेंगे, ये शायद अब वक्त से पूछना पड़ेगा। सभी देशों द्धारा परमाणु, जैव रासायनिक हथियारों के प्रयोग में काम आने वाली सामग्रियों को पूर्णतया गोपनीय रखा जाकर  विशेष सतर्कता बरती जाती है और बरती भी जाना चाहिए (इनके प्रयोग पर प्रतिबद्ध नियमों को ध्यान में रखते हुए)। 
 
इनके प्रयोग से महामारी के उन्मूलन में सतत लगे विश्व स्वास्थ्य संगठन अपना लक्ष्य भी कभी नहीं पूरा कर सकेंगे। यह सबको मालुम ही है, कि युद्ध करने से कई वर्षों तक कोई भी देश हो, आर्थिक रूप से पिछड़ जाता है। युद्ध के पश्च्यात युद्ध की विभीषिका दयनीय हो जाती है। अभी कुछ माह पूर्व पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक देश घोषित करने की मांग अमेरिका की सबसे लोकप्रिय याचिका पर हस्ताक्षरों की संख्या लाखों के पार होना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देता आया है। यही बात अब चीन द्धारा पाकिस्तान को समर्थन देना क्या प्रदर्शित करता है? वर्षों से आतंक की त्रासदी तो सभी देश झेल रहे हैं। खास बात यह है की अब तक जिंदा पकड़े गए एवं मारे गए आतंकियों में पाकिस्तान से जुड़ने के सबूत कई बार मिले हैं। 
 
जिन्हें प्रिंट ,दृश्य मिडिया द्धारा समय समय पर उजागर भी किया है। वर्तमान में कच्छ के सर क्रिक में पकड़ी पाकिस्तानी संदिग्ध नाव में बैठे सभी पाकिस्तानी को पकड़े जाने में जासूसी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। इनके अलावा भी कई बार पक्षी भी पकड़े भी गए, जिनके पैरों में ट्रांसमीटर, कैमरे लगाकर सीमा में जासूसी के असफल प्रयत्न पाकिस्तान की ओर से किए जाते रहे हैं। चीनी उपकरण को पाक द्धारा भारत के विरोध में इस्तेमाल करना यह दिखता है कि जब बिल्ली आंख बंद कर दूध पीती है, वो समझती है कोई उसे नहीं देख रहा, मगर इस तरह पाक और चीन की गतिविधियों को तो संपूर्ण विश्व देख रहा है। 
 
सौहार्दपूर्ण वातावरण के बजाए युद्ध के लिए उकसाने वाला वातावरण बनाया जा रहा है, तो हमारे देश के जवान हर तरह से जवाब देने को तैयार हैं। देश आत्म निर्भर और विकासशील के नित नए आयाम स्थापित कर बुलंदियों के झंडे गाड़ रहा है। चीन और पाक अब अपनी हरकतों से बाज आए। 

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