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न्याय अभी है जिंदा, चिनम्मा नहीं बन सकती अम्मा

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ऋतुपर्ण दवे

आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का मंगलवार को आया फैसला बेहद अहम है। खासकर भृष्टाचार के दलदल में गोते लगाने वाले नेताओं को जहां यह गले की फांस लग रहा होगा, वहीं कइयों को सांप सूंघ गया होगा। लेकिन आमजनों के लिए देर से ही सही, न्याय के प्रति अगाध विश्वास जैसा है।



लगभग 19 वर्षों की कानूनी पेचीदिगयों के बाद, सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण पर अंतिम निर्णय हुआ। न्यायमूर्ति पी.सी घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने फैसला सुनाते हुए शशिकला को चार साल की सजा और 10 करोड़ रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। वह 10 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत 4 साल का कानूनन सजायाफ्ता व्‍यक्ति सजा की अवधि के बाद 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। अदालत ने जयललिता का निधन हो जाने के कारण बरी कर दिया लेकिन शशिकला, उनके दो साथियों वीएन सुधाकरन और येल्वरासी को भी यही सजा सुनाई है। 
 
1991 से 1996 के बीच आय से अधिक संपत्त‍ि के मामले में 66 करोड़ की सम्पत्ति, 810 हेक्टेयर जमीन के अलावा 800 किलो चांदी, 28 किलो सोना, 750 जोड़ी जूते, 10500 साड़ियां और 51 कीमती घड़ियां बरामद हुई थीं। इस मामले में बैंगलुरू की निचली अदालत ने 27 सितंबर 2014 को जयललिता और शशिकला सहित सभी चारों अभियुक्तों को सजा सुनाते हुए 4 साल की सजा सहित जयललिता पर 100 करोड़ और शशिकला सहित तीनों पर 10-10 करोड़ का जुर्माना लगाया। कानूनन जयललिता मुख्यमंत्री पद हेतु अयोग्य हो गईं और हटना पड़ा। लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने 919 पृष्ठों के फैसले में 11 मई 2015 को जयललिता, शशिकला और अन्य आरोपियों को यह तर्क देते हुए बरी किया कि “आय से अधिक संपत्ति की प्रतिशतता 8.12 है जो अपेक्षाकृत कम है। इस मामले में आय से अधिक संपत्ति चूंकि 10 प्रतिशत से कम है और यह स्वीकार्य सीमा के अंतर्गत है, अतः आरोपी बरी होने के हकदार हैं।” इससे जयललिता की फिर से सत्ता में वापसी हुई। इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील हुई जिस पर ट्रायल कोर्ट के फैसले का बरकरार रखते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया गया। हालांकि जे.जयललिता के पांच दिसंबर को हुए निधन को ध्यान में रखते हुए उनके खिलाफ दायर सभी अपीलों पर कार्यवाही खत्म कर दी। ट्रायल कोर्ट के आदेश के बाद शशिकला भी 27 दिनों तक पहले ही जेल में रह चुकी हैं।
 
भारतीय राजनीति में दक्षिण भारत का हमेशा भावनाओं से जुड़ा एक जुदा रंग दिखता है। वहां के लोग रुपहले पर्दे के किरदारों को बहुत सम्मान से देखते हैं। इसी कारण वहां के जनमानस में फिल्मों की सीधी पकड़ और असर दिखता है। लेकिन इसी भीड़ में वीडियो पार्लर चलाने वाली एक बेहद साधारण और पिछड़े वर्ग से आने वाली महिला वी.के शशिकला ने अपना जबरदस्त वजूद बनाया, इतना कि राजनीति की केन्द्रबिंदु बन गई। जयललिता से नजदीकियां ऐसी बढ़ीं कि पार्टी अन्नाद्रमुक में शशिकला, अहम हो गईं। एक आम महिला से तमिलनाडु की राजनीति में सबसे विवादित और जयललिता के बाद सबसे खास शख्सियत के तौर पर उभरी शशिकला की दोस्ती की शुरुआत 1984 में तब हुई थी। तब शशिकला एक वीडियो पार्लर चलाती थीं और जयललिता मुख्यमंत्री एमजी रामाचंद्रन की प्रोपेगैंडा सेक्रेट्री थीं। शशिकला के पति नटराजन, राज्य के सूचना विभाग में थे। नटराजन ने ही अपनी पहुंच का उपयोग किया और शशिकला को जयललिता की सभी जनसभाओं के वीडियो शूट का ठेका दिलवाया। शशिकला के काम ने जयललिता को प्रभावित किया और दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब आती चली गईं। एमजी रामचंद्रन की 1987 में मृत्यु के बाद जयललिता बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही थीं, तब शशिकला ने ही उन्हें सहारा दिया था और इस तरह नजदीकियां इतनी बढ़ती ही चली गईं कि शशिकला अपने पति के साथ जया के घर पर ही रहने लगीं। दोनों के रिश्तों में तल्खियों का दौर भी आया लेकिन सुलह, सफाई से बात आई-गई हो गई। यह दोनों की करीबियां ही थी, कि अपने सगों को छोड़, लाख विरोध के बाद जयललिता ने शशिकला के भतीजे वीएन सुधाकरन को न केवल गोद लिया था बल्कि उनकी भव्य शादी भी करवाकर तब शाही खर्चे के लिए खूब चर्चित भी हुईं।
 
राजनीति और भ्रष्टाचार को, चोली-दामन के रिश्तों-सा देखने वालों को जैसे सांप सूंघ गया होगा! शशिकला ने कभी इस दिन के लिए सपने में भी नहीं सोचा होगा! हालांकि अभी भी कुछ कानूनी औपचारिक विकल्प बाकी हैं लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कुछ खास राहत मिलती नहीं दिखती। इसका मतलब यह हुआ कि भृष्टाचार की पराजय के बीच शशिकला के राजनैतिक जीवन और महत्वकांक्षाओं, दोनों का ही एक झटके में पतन हो गया है। 62 साल की शशिकला कहां मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेने की तैयारियों में और कहां अदालत के एक फैसले ने उनके राजनैतिक जीवन को ध्वस्त कर दिया। काश भृष्टाचार के विरोध में दिन-रात उपदेश देने वाले हमारे लोकतंत्र के पहरुए भी इस बात से सबक ले पाते, कि देर से ही सही, भारत में न्याय की आस अभी बाकी है। 
 

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