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'ललितासन' से क्या मिला... बाबाजी का ठुल्लू...

हमें फॉलो करें 'ललितासन' से क्या मिला... बाबाजी का ठुल्लू...
राजेश ज्वेल 
 
तो साहब खूब हल्ला मचा और न्यूज चैनलों से लेकर प्रिंट मीडिया में भी ललित मोदी छाए रहे... उनकी लीला अंतत: इतनी अपरम्पार निकली कि पहले सुषमा स्वराज और फिर वसुंधरा राजे को भी क्लीन चिट मिल गई... एक स्वच्छ और पारदर्शी शासन-प्रशासन की पहचान भी यही है कि वह विपक्ष में रहते हुए तो ऐसे घोटालों पर बुक्का फाड़कर चिल्लाए और सड़कों से लेकर संसद तक छाती-माथा कूटे और सीधे प्रधानमंत्री से ही इस्तीफा मांगता रहे, मगर जैसे ही पक्ष में बैठे यानि कुर्सी संभाले तो इन मुद्दों पर शीर्षासन करते नजर आए...


जो भाजपा कल तक कांग्रेस के घोटालों पर दुबली नजर आती थी वह सत्ता संभालते ही ललित आसन करने को मजबूर हो गई... ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा से लेकर मैं प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि चौकीदार की भूमिका में दिखूंगा... जैसे दावे और नारे भी कब के जुमलों में तब्दील हो गए... 4-5 दिन तक सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे पर 24 घंटे फुर्सतिया चैनलों ने भी खूब माथा कुटाई की और ब्रेकिंग न्यूजों की झड़ी लगा दी मगर बाद में ये सारे चैनल भी योगासन में मग्न हो गए... नई दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल की सरकार को हर मुद्दे पर कोसने वालों का पेट अब विज्ञापन पर भी दुखने लगा... कांग्रेस और भाजपा से लेकर तमाम पार्टियों के नेताओं ने अभी तक जनता की करोड़ों-अरबों रुपए की कमाई विज्ञापनों के जरिए अपना महिमामंडन करने पर खर्च कर डाली, जिसके चलते पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को नए आदेश जारी करना पड़े... हालांकि केजरीवाल इतने मूर्ख भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाएं... अलबत्ता उन्होंने सोच-समझकर ही विज्ञापन तैयार करवाए, ताकि सुप्रीम कोर्ट आदेश की अव्हेलना न हो सके... दूसरी तरफ अभी योग के नाम पर ही केन्द्र और भाजपा की राज्य सरकारों ने करोड़ों रुपए विज्ञापन से लेकर आयोजन पर फूंक डाले, मगर इनसे कोई सवाल नहीं पूछा जा सकता... केजरीवाल सरकार के विज्ञापन पर ही इन्हें आपत्ति है... वहीं ललित मोदी का प्रकरण भी बड़े सुनियोजित तरीके से मीडिया से गायब कर दिया गया...

नई दिल्ली के कचरे (हम इंदौरी तो शिव के राज में कचरों के ढेर और आवारा पशुओं के साथ रहने के आदी हो चुके हैं।) तक की खबर दिखाने वाले चैनल अब मोदीगेट पर चुप हो गए हैं... इतना हल्ला मचा, लेकिन हासिल क्या हुआ..? जनता को भी हर बार की तरह मिला बाबाजी का ठुल्लू ही... जब सरकारें जनता के दुख-दर्द दूर नहीं कर पाती और अच्छे दिन भी नहीं आते तब ही स्वच्छ अभियान से लेकर योग के चोचले किए जाते हैं... अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भी ऐसा ही बड़ा चोचला निपटा और उसके पहले भाजपा ने शानदार ललितासन का प्रदर्शन करते हुए बाबा रामदेव से सिखा शीर्षासन कर डाला... वो तो गनीमत रही कि ललित मोदी को भारत का सबसे बड़ा समाजसेवक भाजपावीरों ने नहीं बताया और मानवता तथा नेक नियत की ही अपचक दुहाई देते रहे... क्या कोई यह बताएगा कि ये मानवता और नेक नियत गुपचुप तरीके से क्यों की गई..?
 
लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार हैं और सांध्य दैनिक अग्निबाण से संबद्ध भी हैं। 

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