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पुलिस का पत्र, जनता के नाम...

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सोशल मीडिया इन दिनों अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त और सरल माध्यम बन चुका है। ऐसा ही एक आंखें खोलने और सोचने पर मजबूर किया जाने वाला पोस्ट फेसबुक वॉल पर मिला। लेखक का नाम जानबूझ कर नहीं दिया जा रहा है। 


 
एक वरिष्ठ महिला पुलिस अधिकारी की जुबां से -
 
आज कुछ बातें मेरे विभाग के बारे में .... पुलिस को कोसिए जरूर कोसिए मगर इसे भी पढ़िए और कोसते समय दिमाग में रखिए !
 
1 - आपका या आम जनता का सीधा वास्ता पुलिस के सबसे निचले कर्मचारियों खासकर सिपाही और हवलदार से पड़ता है। उसमें भी सबसे ज्यादा ट्रैफिक के दौरान। जब वह आपको रोकता है तो सबसे पहले रसीद काटने की बात करता है, वह आप है जो उसे रसीद न काटने के लिए पैसे ऑफर करते हैं। जिसे आप दोनों खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, क्योंकि इसमें दोनों को सुविधा है। अब से सिर्फ इतना करना शुरू कीजिए कि ट्रैफिक का चालान होने की नौबत आने पर खुशी-खुशी चालान भरिए। न किसी नेता से उस सिपाही को फोन कराइए और न उसे सौ का नोट दिखाइए। 
 
2 - हमारा सिपाही और हवलदार चौबीस घंटे ड्यूटी करता है, उसकी कम तनख्वाह का एक हिस्सा उसकी मोटरसाइकल में पेट्रोल डलवाने में और कागजों की फोटोकॉपी कराने में जाता है, जो उसके सरकारी काम का हिस्सा है। ज़ाहिर है यह पैसा वह कहां से प्राप्त करता होगा। दिन भर वह चकरघिन्नी बना कभी जुलूस निपटाता है, कभी मंत्री जी के कार्यक्रम में खड़ा रहता है, कभी वारंटी पकड़ रहा होता है, कभी डॉक्टर को बमुश्किल पकड़कर शव का पोस्टमार्टम करवा रहा होता है और कभी भागी हुई लडकी की तलाश में गांव गांव घूम रहा होता है और सारे गां व वालों का विरोध झेल रहा होता है। (ये सारे काम एक ही दिन के हैं) और रात को थाने पर बैठे चोर से चोरी उगलवा रहा होता है! उससे कितने मधुर व्यवहार की अपेक्षा रीजनेबल होगी, तय कर लीजिए। 
 
3 - वह त्योहार मनाना नहीं जानता, कभी टीचर पेरेंट मीटिंग में भाग नहीं लेता, उसके सरकारी घर में आप एक दिन भी नहीं गुज़ार सकते। उसे नहीं मालूम होता, उसका बच्चा पढ़ाई में कैसा है, कहीं गलत संगत में तो नहीं पड़ गया है? उसकी तोंद निकल गई है, उसका बीपी हाई है, डायबिटीज भी है। उसे फुर्सत नहीं कि वह एक्सर्साइज़ या डायटिंग कर सके हां, वह भ्रष्ट है क्योंकि भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। जिस प्रकार न्यायपालिका, कलेक्ट्रेट , एमपीईबी., पीडव्लूडी, स्वास्थ्य सेवाएं, नगर पालिका, हमारे नेता भ्रष्ट हैं उसी प्रकार वह भी भ्रष्ट है! जिस दिन हमारा समाज भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा, हमारी पुलिस से भी भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा। 


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5 - आप विदेशों से हमारी पुलिस की तुलना करते हैं तो कुछ बातें जान लीजिए फिर तुलना कीजिए- 


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a - विदेशों में पुलिस जनता की मित्र है, हमारे यहां बच्चे को सुलाने के लिए या उसकी शरारतों को रोकने के लिए भी पुलिस का नाम लेकर डराया जाता है आप जैसी पुलिस चाहते हैं, वैसी पुलिस आपके सामने हाज़िर है। 
 
b - सारे विकसित देशों में कोई भी पुलिस कर्मचारी 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करता, और हमारे यहां छह घंटे सो ले, वही एक लक्ज़री है। 
 
c - उन देशों में पुलिस का काम घर-घर जाकर निगरानी करना नहीं है, हर व्यक्ति के घर में अपना सिक्योरिटी सिस्टम है, अलार्म बजने पर पुलिस पहुंचती है। अपने घर की रक्षा घर का मालिक स्वयं करता है! हमारे यहां 15 मोहल्लों पर दो पुलिस वाले हैं, जिनसे अपेक्षा है कि वे किसी घर में चोरी न होने दें। 
 
d - जो लोग पानी पी-पी कर पुलिस को कोसते हैं, वही सबसे पहले कॉन्स्टेबल या सब इंस्पेक्टर का फॉर्म भरते हैं। जनता की सेवा के लिए नहीं पावर और पैसे के लिए। यह हमारा समाज है ! हम और आप हैं। 
 
e - जो भ्रष्टाचार पुलिस के बड़े अधिकारियों में है बावजूद मोटी तनख्वाह और तमाम सुविधाओं के, उसके लिए विभाग ज़िम्मेदार नहीं है। वे जिस भी विभाग में होते,भ्रष्ट ही होते। 
 
फिर भी मान लिया कि पुलिस कोई काम नहीं करती तो क्यों न ऐसा करें कि एक दिन के लिए देश के सारे थाने बंद कर दिए जाए और ट्रैफिक से भी पुलिस हटा दी जाए। इस प्रयोग के बाद अगर पुलिस की आवश्यकता न हो तो विभाग ही खत्म कर दिया जाए। 
या मेरा दूसरा सुझाव है कि हम सबको एक एक हफ्ते किसी पुलिस वाले के साथ उसकी परछाई बनकर रहना चाहिए। शायद हमारे विचार कुछ बदले। 
 
अंत में ,हमारे देश में जिसको जहां मौका मिलता है वहीं भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है। चाहे एक सीधे सादे टीचर को मध्यान्ह भोजन का प्रभारी बना दिया जाए या अस्पताल की कैंटीन का चार्ज किसी भोले भाले डॉक्टर को दे दिया जाए। यहां तक कि प्रायवेट कम्पनी में जॉब करने वाले भी कम बजट के होटल में ठहरकर बड़े होटल का बिल प्रस्तुत करते हैं।  
 
और ऐसा भी नहीं कि गरीबो के केस सॉल्व नहीं होते ..बस उन्हें प्रकाशित करने में मीडिया की कोई रूचि नहीं होती और वे आप तक पहुंचते नहीं ! क्या हम जानते हैं कि कैसे एक अनजान भिखारी के अंधे क़त्ल के केस को हल करने हमारा एक हवालदार विशाखापट्नम से लेकर कन्याकुमारी तक जाता है और कातिल को पकड़कर थाने लाता है। यह जनता को कभी नहीं दिखाई देगा। ये हमारी फाइलों में दर्ज है ! 
 
जब एक बलात्कार की शिकार चौदह साल की लड़की अपने नवजात बच्चे को गला घोंटकर मार देती है और प्रसूति वार्ड से सीधे हवालात आ जाती है तब जो सिपाही उसके लिए कम्बल खरीदकर लाया है और जो हवालदार उसके लिए जापे के बाद खाए जाने वाले लड्डू दो घंटे में अपने घर से बनवाकर लाया है, यह किसी फ़ाइल में दर्ज नहीं है। 
 
याद रखिए कि जब आप अति सामान्यीकरण करते हुए सारे पुलिस वालों को गाली देते हैं तब मैं और मेरे जैसे मेरे कई साथी पुलिस वाले आहत होते हैं! हम ईमानदार भी हैं, मानवीय भी और व्यावसायिक रूप से दक्ष भी। 
 
और इस पर भी आपको अगर यह लगता है कि मैं पुलिस में भ्रष्टाचार और खराब व्यवहार की हिमायती हूं तो आप सर्वथा गलत है ! आप जो देखते हैं वह तो सत्य है ही, मैं सिर्फ आपको वह दिखा रही हूं जो आप नहीं देख पाते हैं। इसके बाद भी हम लगातार अपने विभाग की छवि सुधारने के लिए प्रयासरत हैं। हम भी चाहते हैं कि तमाम तनावों के बावजूद पुलिस बहुत मानवीय बने क्योंकि चाहे जितना भी गाली दीजिए पुलिस आज भी दुखियों के लिए आस की एक किरण है और ये भी जानती हूं कि यह असंभव नहीं है। आप कोशिश कीजिए कि समाज सुन्दर बने। हम पुलिस को सुन्दर बनाने के लिए प्रयासरत हैं... 

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