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कैलाश मानसरोवर यात्रा का वैकल्पिक मार्ग मंजूर नहीं

-देहरादून से ललित भट्ट

हमें फॉलो करें कैलाश मानसरोवर यात्रा का वैकल्पिक मार्ग मंजूर नहीं
देहरादून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ब्राजील में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए वैकल्पिक मार्ग शुरू करने के प्रस्ताव पर उत्तराखंड सरकार ने ऐतराज जताया है। इस बाबत राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कैलाश मानसरोवर यात्रा को अन्य वैकल्पिक मार्ग से शुरू करने को शास्त्रसम्मत न बताकर भारत की ओर से चीन को किए आग्रह पर पुनर्विचार करने की बात कही है।

सीएम रावत ने ब्रिक्स सम्मलेन में ब्रिक्स बैंक जैसी सफलताओं पर प्रधानमंत्री को बधाई दी है लेकिन चीन से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हिमांचल से नए वैकल्पिक मार्ग शुरू करने पर हुई चर्चा पर उत्तराखंड की जनता और शिवभक्तों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ बताया है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि वर्तमान में कैलास यात्री उत्तराखंड के जिस मार्ग से होकर जाते हैं उसका पौराणिक व धार्मिक महत्व है। पुराणों में व साधु-महात्माओं ने भी धारचूला-शियालेख होकर जाने वाली यात्रा को ही तीर्थ मार्ग ठहराया है।

दरअसल ब्रिक्स में हुए सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति जी जिंगपिंग से कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए हिमाचल प्रदेश के शिपकी ला पास से होकर गुजरने वाले मार्ग को मानसरोवर यात्रा के लिए खोले जाने के लिए चर्चा की। हिमांचल के किन्नौर से गुजरने वाला यह मार्ग मौजूदा उत्तराखंड के यात्रा मार्ग के मुकाबले कम दूरी का है। शिपकी ला से मानसरोवर 91 किलोमीटर दूर है। वहीं मुख्यमंत्री द्वारा मोदी चीन के मध्य हुई चर्चा पर ऐतराज का तिब्बत सीमा पर चीन द्वारा खराब बर्ताव और यात्रियों की परेशानी भी माना जा रहा है जिसका मुख्यमंत्री पर तीर्थयात्रियों ने दबाव भी बनाया है। अभी हाल ही में कैलाश मानसरोवर यात्रियों को चीन की दादागिरी का शिकार भी होना पड़ा था।

अंतरराष्‍ट्रीय नेपाल तिब्बत चीन से लगे उत्तराखंड के सीमावर्ती पिथौरागढ़ के धारचूला से कैलास मानसरोवर की तरफ जाने वाले दुर्गम व 75 किलोमीटर पैदल मार्ग के अत्यधिक खतरनाक होने के कारण हिमालय के मध्य तीर्थों में सबसे कठिनतम भगवान शिव के इस पवित्र धाम की यह रोमांचकारी यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों द्वारा आयोजित की जाती है। इधर इस सीमा का संचालन भारतीय सीमा तक कुमाऊं मण्डल विकास निगम द्वारा की जाती है, जबकि तिब्बती क्षेत्र में चीन की पर्यटक एजेंसी इस यात्रा की व्यवस्था करती हैं उत्तराखंड हिमालय के उस पार स्थित कैलाश पर्वत तथा मानसरोवर झील इस क्षेत्र के पवित्रम स्थानों में है।

आध्यात्मिक दृष्टि से इनका काफी महत्व है। कैलाश तथा मानस के दर्शन तथा परिक्रमा असाधारण रूप से पवित्र कार्य माने जाते हैं जिस पर चार बड़े धर्मों बोनपा, हिन्दू, बौद्ध तथा जैन मत के लोगों की अटूट श्रद्धा है। बोनपा तिब्बत के प्राचीन लोग हैं। कैलाश में नौमंजिला स्वस्तिक देखते हैं तथा इसे दैमचौक और दोरजे फांगमो का निवास मानते हैं। हिन्दू मतावलम्बी इसे शिवस्थली मानकर पूजते हैं। बौद्ध भगवान बुद्ध तथा मणिपद्मा का निवास मानते हैं। जैनियों के लिए यह उनके प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है।

देश की राजधानी दिल्ली से आठ सौ पैंसठ किलोमीटर दूर पश्चिमी तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत व मानसरोवर भारतीयों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। मानसरोवर के पास एक सुन्दर सरोवर रकसताल है। इन दो सरोवरों के उत्तर में कैलाश पर्वत है, जिसकी ऊंचाई 22028 फुट है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। मानसरोवर के कारण कुमाउं की धरती पुराणों में उत्तराखंड के नाम से जानी जाती हैं।

लगभग एक माह चलने वाली पवित्रम यात्रा में काफी दुरुह मार्ग भी आते हैं अक्टूबर से अप्रैल तक इस क्षेत्र के सरोवर व पर्वतमालाएं दोनों ही हिमाच्छादित रहते हैं। सरोवरों का पानी जमकर ठोस रूप धारण किए रहता है। जून से इस क्षेत्र के तामपान में थोड़ी वृद्धि शुरू होती है।

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