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इसका मतलब जासूसी तो हुई है..!

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केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर जासूसी उपकरण मिलने और उनकी जासूसी होने का मुद्दा अभी ठंडा नहीं हुआ है। हालांकि खुद गडकरी और सरकार ने भी इस पुरजोर खंडन किया है कि उनकी जासूसी नहीं हुई है। इस बीच, सरकार में नंबर दो नेता और केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का नाम भी इस सूची में जुड़ गया। इस मुद्दे पर संसद में भी काफी हंगामा हुआ था।

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उल्लेखनीय है कि जासूसी कांड पर संसद में सफाई देते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था जासूसी कि सारी बातें एकदम गलत हैं। मेरे घर से कोई जासूसी उपकरण नहीं मिला है। लोकसभा में विपक्ष ने जब जासूसी का मुद्दा उठाया तो राजनाथसिंह ने सफाई देते हुए कहा था कि गडकरी के घर जासूसी की खबरें निराधार हैं। राज्यसभा में भी राजनाथ ने कहा था कि मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि जासूसी मामले में मीडिया की रिपोर्ट सही नहीं है।

एक तरफ सरकार ने संसद समेत दूसरे मंचों पर इस पूरे मामले का खंडन किया, वहीं गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की भारत यात्रा के दौरान सुषमा ने जासूसी मामले में विरोध दर्ज कराया था। उन्होंने प्रेस के सामने कहा था कि मित्र राष्ट्रों की जासूसी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

अब सवाल उठता है कि जब सरकार ने संसद में इस पूरे मामले के खंडन ‍कर दिया, खुद गडकरी ने जासूसी मामले से पल्ला झाड़ लिया तो फिर सुषमा को इस तरह विरोध दर्ज कराने की जरूरत क्या पड़ गई है? इसका मतलब है दाल में कुछ तो काला जरूर है। अर्थात जासूसी हुई है अन्यथा सुषमा को इस मामले को उठाने की जरूरत ही क्यों पड़ी। इससे यह भी स्पष्ट है कि सरकार ने इस मामले में न सिर्फ संसद से बल्कि पूरे देश से तथ्य छिपाने की कोशिश की है।

सुषमा ने जॉन से दो टूक शब्दों में कहा है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा भारत में नेताओं तथा दूसरे लोगों की जासूसी किया जाना ‘अस्वीकार्य’ है। इस पर अमेरिका ने कहा कि किसी भी मतभेद का समाधान दोनों देशों के खुफिया सेवा की ओर से मिल-जुलकर किया जा सकता है। हालांकि केरी ने इस मुद्दे पर और कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इतना जरूर कहा था कि वे इंटेलीजेंस संबंधी मामलों की बाहर चर्चा नही करते।

सुषमा द्वारा केरी के समक्ष विरोध जताए जाने के बाद कांग्रेस की तरफ से भी बयान आया था कि एक तरफ सरकार संसद में कहती है कि जासूसी नहीं हुई, दूसरी तरफ अमेरिकी विदेश मंत्री के सामने विरोध भी जताती है। आखिर सच्चाई क्या है? हालांकि इस मुद्दे पर हकीकत अभी भी 'पर्दे' में है, लेकिन यदि भारत के मंत्रियों की जासूसी हुई है तो यह न सिर्फ सरकार बल्कि पूरे देश के लिए भी शर्मनाक है।

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