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ग्यालवांग द्रुकपा : मानवता और हरियाली का हरकारा

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जयदीप कर्णिक

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वो अभी-अभी पाँचवें द्रुकपा सम्मेलन के मुख्य समारोह में एक अत्यंत भावनात्मक उद्बोधन देकर लौटे हैं और भूटान से ख़ास तौर पर इस कार्यक्रम के लिए आए वहाँ के द्रुकपा प्रमुख के साथ चर्चारत हैं। सभास्थल से उनके कक्ष तक हमने इस ऐतिहासिक हेमिस मठ का कुछ-कुछ जायजा लिया। छोटे-छोटे दरवाजे और घुमावदार गलियाँ। पहाड़ पर समतल जगह ढूँढ़कर बनाए गए कमरे जो लकड़ी के बने हैं, ताजे फूलों से सजे गलियारे और बुद्ध धर्म के प्रतीक।

कक्ष के बाहर तैनात युवा संत मुस्तैदी से अपने-अपने काम में लगे हैं। कोई अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सुगंधित और पवित्र बनाए हुए है तो कोई छत्र ठीक कर रहा है। तभी हमें कक्ष के भीतर जाने का इशारा मिला। सुंदर गलीचों से सजे एक बड़े हॉल को पार करते ही हम मुखातिब थे ऊँचे आसन पर बैठे ग्यालवांग द्रुकपा से। हम बात कर रहे हैं जिग्मे पेमा वांगचेन यानी 12वें ग्यालवांग द्रुकपा की। वो द्रुकपा बौद्धों के प्रमुख हैं।

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ग्यालवांग द्रुकपा दरअसल एक उपाधि है, जो तिब्बती बौद्धों के पंथ "द्रुकपा" के प्रमुख को दी जाती है। द्रुकपा पंथ की स्थापना 1206 में ड्रॉगोन सांगपा ग्यारे ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें जमीन से आसमान की ओर जाते हुए 7 ड्रेगन दिखाई दिए थे जो कि एक कतार में उड़ रहे थे। इसीलिए तिब्बती बौद्धों के इस पंथ को "द्रुकपा" कहा गया। तिब्बती में 'द्रुक' का मतलब है ड्रैगन और 'पा' का मतलब है कतार। तो अर्थ हुआ ड्रैगनों की कतार यानी द्रुकपा। इनके प्रमुख को ग्यालवांग द्रुकपा की उपाधि दी जाती है।

संत भी कर्मयोगी भी : 12 वें ग्यालवांग द्रुकपा कई मायनों में ख़ास हैं। वो संत भी हैं और आधुनिक कर्मयोगी भी। उन्होंने अपने अनुयायियों के आध्यात्मिक उन्नयन के लिए तो काम किया ही है साथ ही उन्होंने लद्दाख के सर्द बंजर रेगिस्तान को हरियाली की चादर भी ओढ़ाई है। उन्होंने भिक्षुणियों को कुंग फू सिखाने का क्रांतिकारी कदम भी उठाया है और द्रुक व्हाइट लोटस स्कूल (वही थ्री इडियट्स वाला) को आदर्श स्कूल भी बनाया है। उन्होंने दुनिया के बेहतरीन नेत्र चिकित्सक को बुलाकर लद्दाख की जनता के लिए मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए शिविर भी लगवाया।

बौद्ध-मुस्लिम संघर्ष पर क्या बोले ग्यालवांग द्रुकपा...पढ़ें अगले पेज पर..


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दरअसल ग्यालवांग द्रुकपा की एक बड़ी उपलब्धि ये है कि उन्होंने अपने में सिमटे और गुफाओं में खोए बौद्ध धर्म को आम आदमी से जोड़ा है। उन्होंने बौद्ध मठों के खिड़की, दरवाजे और रोशनदान खोलकर अंदर के ज्ञान को बाहर आकर अधिक विस्तार देने और बाहर की रोशनी को अंदर जाने देने का बड़ा काम किया है। गहरे लाल चोगे और पीले वस्त्रों में दिखाई देने वाले बौद्ध भिक्षुओं को देखकर एक अजीब से रहस्यमयी भाव का जन्म होता है। उन्होंने रहस्य के इस तिलिस्म को तोड़ते हुए मठों की दुनिया को आधुनिक बनाया है।

धर्म बुरा नहीं कर्म बुरे हैं : मैंने उनसे पूछा कि आजकल लोगों का अध्यात्म के प्रति रुझान बढ़ा है, लोग अधिक धार्मिक होते हुए भी दिखाई दे रहे हैं, उसके बाद भी हिंसा और घृणा सतत बढ़ रही है, बामियान में बुद्ध की प्रतिमा उड़ा दी जाती है और बोधगया में धमाके होते हैं, ऐसा क्यों? ग्यालवांग द्रुकपा ने बड़े सहज भाव से उत्तर दिया और कहा कि ऐसा इसलिए कि लोग दिखावा ज्यादा कर रहे हैं और धर्म और अध्यात्म को सच्चे अर्थों में नहीं अपना रहे हैं। धर्मगुरु अपने सिंहासन पर बैठकर प्रवचन देते रहेंगे और लोगों को सच्चे धर्म, मानवता और करुणा से नहीं जोड़ेंगे तो ऐसा ही होगा।

बामियान और बोधगया के जिक्र से जरूर उनके मन की व्यथा चेहरे पर उभर आई। दरअसल इस व्यथा के पीछे गंभीर रूप ले चुका मुस्लिम-बौद्ध संघर्ष है। उन्होंने किसी धर्म का नाम नहीं लिया, लेकिन ये जरूर कहा कि ये सब कर्मों का फल है। बुरे कर्म आप तक लौटकर आते हैं। ये भी होता है कि कुछ लोगों के बुरे कर्मों की सजा सबको भुगतनी पड़ती है। जब बुरे कर्मों का असर ख़त्म होगा तो दुनिया और बेहतर होगी।

...और तिब्बत पर क्या बोले ग्यालवांग... पढ़ें अगले पेज पर..


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तिब्बत पर चीन का कब्जा ग़लत : तिब्बत बौद्धों का प्रमुख गढ़ है और सभी के मन में चीन के उस पर जबरिया कब्जे का दु:ख है। दलाई लामा को भारत ने अपने यहाँ शरण दी है। जब ग्यालवांग द्रुकपा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चीन का ये कब्जा ग़लत है।

हरियाली का हरकारा : अपने हरियाली के अभियान को लेकर पूछने पर वो कहते हैं- "कई बार हमें एहसास ही नहीं होता कि पेड़ों में भी जीवन है। हम उन्हें बेरहमी से काट देते हैं। ख़ास तौर पर यहाँ लद्दाख में जहाँ चारों और बस बंजर जमीन है और ऑक्सीजन की कमी है वहाँ तो पेड़ लगाना और भी जरूरी है। मुझे तो लोगों ने ये भी कहा कि अगर हम यहाँ पहाड़ों पर ज्यादा पेड़ लगाएँगे तो ज्यादा बारिश होगी और हमें नुकसान होगा।

मैंने विशेषज्ञों से बात की है और उनका मानना है कि ये आशंका निराधार है। पेड़ ना केवल हमारे पर्यावरण को सुधारने में मदद करेंगे बल्कि ऑक्सीजन की अधिक उपलब्धता से हमारा स्वास्थ्य भी सुधरेगा और मैदान से आने वालों को भी यहाँ कम दिक्कत होगी।' उन्होंने हरियाली के इस संदेश को लेकर अपने 700 अनुयायियों के साथ भारत के कई शहरों में पदयात्रा भी की।

कैसे बनेंगे बेहतर नागरिक... पढ़ें अगले पेज....


मानव सेवा : उन्होंने लेह के शासकीय अस्पताल में ख्यात नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रुईत को बुलाकर मोतियाबिंद के लगभग 200 ऑपरेशन करवाए। वो खुद जाकर हर मरीज से मिले। इस शिविर को मिले प्रतिसाद को देखते हुए उनसे ऐसे और शिविर लगाने की माँग हुई।
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बच्चों की पढ़ाई : वो मानते हैं कि बेहतर शिक्षा से ही बेहतर नागरिक तैयार हो सकते हैं। इसीलिए उन्होंने 'ड्रक व्हाइट लोटस स्कूल' के उन्नयन में ख़ासी रुचि ली। इसके प्रांगण को हरा-भरा बनाने में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है। अभी 10वीं तक का ये स्कूल लेह और आसपास के गाँव के बच्चों के लिए आधुनिक शिक्षा का अहम केंद्र है। इसी स्कूल में आमिर खान की फिल्म 'थ्री इडियट्स' की शूटिंग हुई थी और लोग इसे आजकल रैंचो स्कूल भी कहते हैं।

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