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ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत हैं शॉपिंग माल

हमें फॉलो करें ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत हैं शॉपिंग माल
नई दिल्ली , रविवार, 15 नवंबर 2009 (15:51 IST)
कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर वार्ता में भारत के आशान्वित लेकिन सतर्क रुख का जिक्र करते हुए आईपीसीसी के अध्यक्ष आरके पचौरी ने कहा कि शहरों में स्थापित होने वाले शॉपिंग माल और नई व्यावसायिक इमारतें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकार पैनल (आईपीसीसी) के अध्यक्ष पचौरी ने कहा कि मेट्रो और तेजी सउभरते शहरों में इमारतों को व्यवहार्य बनाया जाना चाहिए। आज हम उस स्थिति में पहुँच गए हैं, जहाँ दुनिया ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सचेत हो गई है।

भारत के शहरों में नई इमारतों के निर्माण की सोच पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा इस विषय पर मैं शॉपिंग माल और नई व्यावसायिक इमारतों का उदाहरण देता हूँ, जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

टेरी के महानिदेशक ने कहा कि शहरों में इमारतों के निर्माण की दिशा में हम पश्चिमी मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं। इससे हमारे देश में किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी।

पचौरी ने कहा उपभोक्ताओं को ऐसे स्थानों का बहिष्कार करना चाहिए, जहाँ ऊर्जा को बर्बाद किया जा रहा है। स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण के बारे में बच्चों को जाग्रत किए बिना लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है।

पचौरी ने दुनिया के कुछ देशों में स्कूलों में चलाए जा रहे पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए कहा कि बच्चे अधिक समय स्कूलों और कॉलेज में बिताते हैं। इसलिए इस स्थान पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण करना सबसे जरूरी है।

उन्होंने कहा कि शिक्षकों और छात्रों की जिम्मेदारी बनती है कि वह पठन-पाठन के अलावा शिक्षण परिसरों को स्वस्थ एवं स्वच्छ बनाएँ। अन्यथा स्कूलों में पढ़ने वालों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

टेरी के महानिदेशक ने कहा कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने की सख्त जरूरत है और इसके लिए हमें अपने आचार व्यवहार में बदलाव करना होगा।

कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन से पूर्व दुनिया के छोटे-बड़े शहरों में जहाँ ग्रीन हाउस गैसे का उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए गंभीर प्रयास करने की बातें की जा रही हैं, वहीं एमसीडी की रपट में देश की राजधानी दिल्ली में आमतौर पर लगभग प्रतिदिन 7,000 टन कचरा निकलने की बात कही गई है। इसके तहत राजधानी दिल्ली में प्रत्येक व्यक्ति पर आधा किलो कचरा बनता है।

दिल्ली के घरों में निकलने वाले कचरे को बाहरी क्षेत्र गाजीपुर, ओखला, भलस्वा जैसे इलाकों में जमा किया जाता है लेकिन अब इन क्षेत्रों में भी कोई स्थान नहीं बचा है। इसके कारण राजधानी के पर्यावरण के समक्ष एक नया संकट सामने दिख रहा है। (भाषा)

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