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चौथे हिस्से पर अधिकार चाहते हैं कश्मीरी पंडित

-सुरेश एस डुग्गर

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कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन छेड़ने वाले कश्मीर की आजादी का सपना देख रहे हैं तो जम्मू और लद्दाख की जनता चाहती है कि दोनों संभागों को कश्मीर से अलग कर दिया जाए। ऐसे में आतंकवाद का शिकार होने वाला कश्मीरी पंडित समुदाय अपने विकल्प के तहत कश्मीर के एक भू-भाग पर अधिकार चाहता है। यही अधिकार उनकी नजर में कश्मीर समस्या का हल है।

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अपने विकल्प के बतौर कश्मीरी समुदाय चाहता है कि जम्मू-कश्मीर की उलझन को सुलझाने की खातिर उसके 4 हिस्से किए जाएं। हालांकि अन्य ताकतें इसके 3 हिस्से करने की मांग कर रही हैं। चौथा हिस्सा वह राज्य का नहीं चाहता बल्कि कश्मीर घाटी का चाहता है जिसे वे होमलैंड आदि का नाम देते हैं।

ऐसा सुझाव देने वाले कश्मीरी पंडित समुदाय के संगठनों में सबसे आगे ‘पनुन कश्मीर’ अर्थात 'हमारा कश्मीर' नामक गुट है। उसके सुझाव के अनुसार, इसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तैयार किया जा सकता है, जहां वह कश्मीरी समुदाय सुख-चैन तथा अलगाववादी आतंकवादी संगठनों की पहुंच से दूर होकर रह सकेगा, जहां मानवाधिकारों के उल्लंघन की कोई बात ही नहीं होगी और अल्पसंख्यक समुदाय आजादी महसूस करेगा।

इस संगठन का कहना है कि हालांकि भारत सरकार के लिए यह कदम बहुत ही कठिनाइयों से भरा होगा, परंतु एक कौम को बचाने की खातिर तथा जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए राज्य को 4 हिस्सों में बांटना आज के परिप्रेक्ष्य में जरूरी है।

इसके लिए पनुन कश्मीर क्रोएशिया में रहने वाले सर्ब लोगों का उदाहरण भी देता है जिन्होंने करजीना क्षेत्र को इसी की खातिर छोड़ दिया था और अब पनुन कश्मीर की नजर में ऐसा होने पर ही भारतीय उपमहाद्वीप में शांति का आगमन होगा।

कश्मीरी पंडित समुदाय की नजर में यह केंद्र शासित क्षेत्र, जो होगा कश्मीर घाटी का ही एक हिस्सा लेकिन उसमें सिर्फ और सिर्फ हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही रहेंगे, को झेलम दरिया के किनारे के क्षेत्रों में बसाना होगा। अर्थात कश्मीर के सबसे उपजाऊ क्षेत्र में जहां खेती और व्यापार तेजी से उपज रहा है।

हालांकि राज्य सरकार ने कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी के लिए जो योजनाएं बनाई हैं वे भी होमलैंड की तर्ज पर ही हैं जिन्हें सुरक्षित जोनों के रूप में जाना जा रहा है।
सनद रहे कि राज्य सरकार चाहती है कि प्रत्येक जिले में कुछ सुरक्षित जोनों का निर्माण कर वहां कश्मीरी पंडितों के विस्थापित परिवारों को वापस लाकर बसाया जाए। कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा मांगे जा रहे होमलैंड तथा इन सुरक्षित जोनों में अंतर सिर्फ इतना है कि ये शायद ही झेलम दरिया के किनारे नहीं होंगें।

फिलहाल स्थिति यह है कि कश्मीरी पंडित विस्थापित समुदाय होमलैंड की मांग को लेकर जिस आंदोलन की तैयारी में जुटा है उस कारण टकराव की पूरी संभावना है। हालांकि पनुन कश्मीर संगठन कहता है कि वे आंदोलन शांतिपूर्वक चलाना चाहते हैं।

साथ ही वे यह भी कहते हैं कि भारत सरकार उन लोगों को कभी कुछ भी नहीं देती है, जो शांति के पथ पर चलते हुए कुछ मांगते हैं। और उनका कहना था कि हथियार उठाने वालों से तो बिना शर्त बात की भी घोषणा हो जाती है।

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