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...जहाँ रावण भी पूजा जाता है

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-विजया दशमी पर विशे
इंद्रधनुषी संस्कृति के देश भारत में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में राम तो पूजे ही जाते हैं लेकिन कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहाँ रावण की पूजा की जाती है और धीरे-धीरे बुराई के इस प्रतीक के समर्थकों की संख्या बढ़ रही है।

हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबु सोरेन ने रावण के पुतले का दहन करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह राक्षसराज उनके कुलगुरु हैं जिसके बाद राजनीतिक विवाद भी पैदा हो गया। हालाँकि बिहार से अलग होकर झारखंड के गठन के बाद से वर्ष 2000 से ही राज्य के मुख्यमंत्री रावण का पुतला दहन करते रहे हैं।

माना जाता है कि राम ने विजया दशमी के दिन ही रावण का वध किया था जो बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में देश में त्योहार के रूप में मनाया जाता है। देश में सोरेन अकेले व्यक्ति नहीं हैं जो रावण का सम्मान करते हैं। मध्य प्रदेश के दमोह नगर में एक परिवार ऐसा भी है जो आज भी लंका नरेश रावण को अपना ईष्ट मानता है।

दमोह के सिन्धी कैम्प में रहने वाला यह सिन्धी परिवार पीढ़ियों से अपने ईष्ट रावण को पूजता आ रहा है। इस परिवार के सदस्य 32 वर्षीय हरीश नागदेव पूरे जिले में लंकेश के नाम से मशहूर है। वह अपने पूरे परिवार के साथ प्रतिदिन अपने ईष्ट दशानन की पूजा विधि विधान से करते हैं। स्वयं मंत्रों का उच्चारण कर दशानन की मूर्ति को स्नान कराके वस्त्र पहनाते हैं एवं आरती के बाद प्रसाद चढ़ाकर सभी को बाँटते हैं। यह कार्य उनकी दिनचर्या में शामिल है।

दशहरा पर दामोह का नागदेव परिवार समूचे उल्लास के साथ शहर के घंटाघर पर रावण के स्वरूप की आरती उतारकर मंगल कामना करता है। नागदेव परिवार ने विशाल लंकेश मंदिर बनाने की वृहद योजना तैयार की है और शासन से जमीन की भी माँग की है।

उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा सहित उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में दशहरा का त्योहार मनाया जाता है और रावण का पुतला दहन होता है। लेकिन महाराष्ट्र के ही आदिवासी बहुल मेलघाट (अमरावती जिला) और धरोरा (गढ़चिरौली जिला) के कुछ गाँवों में रावण और उसके पुत्र मेघनाद की पूजा होती है।

यह परंपरा विशेष तौर पर कोर्कू और गोंड आदिवासियों में प्रचलित है जो रावण को विद्वान व्यक्ति मानते हैं और पीढ़ियों से वे इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। हर साल होली के त्योहार के समय यह समुदाय फागुन मनाता है जिसमें कुर्कू आदिवासी रावण पुत्र मेघनाद की पूजा करते हैं।

मध्यप्रदेश में विदिशा के हजारों कान्यकुब्ज ब्राह्मण रावण मंदिर में पूजा करते हैं। कई क्षेत्रों में दशहरे पर रावण का श्राद्ध भी किया जाता है। उत्तरप्रदेश में कानपुर के निकट भी एक रावण मंदिर है जो दशहरे के मौके पर साल में एक दिन के लिए खुलता है।

कर्नाटक के कोलार जिले में भी लोग फसल महोत्सव के दौरान रावण की पूजा करते हैं और इस मौके पर जुलूस निकाला जाता है। ये लोग रावण की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि वह भगवान शिव का भक्त था। लंकेश्वर महोत्सव में भगवान शिव के साथ रावण की प्रतिमा भी जुलूस की शोभा बढ़ाती है। इसी राज्य के मंडया जिले के मालवल्ली तालुका में रावण को समर्पित एक मंदिर भी है।

राजस्थान में जोधपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर मंदोर में ही रावण का विवाह होने की कथा है। रावण की एक पत्नी का नाम मंदोदरी था और दावा किया जाता है कि इसी स्थान के नाम पर उसका यह नाम पड़ा। इसी क्षेत्र के दवे ब्राह्मण दशहरा पर रावण पूजा करते हैं। कुछ साल पहले इन लोगों ने जोधपुर में रावण मंदिर की स्थापना की घोषणा भी की थी।

कथाओं के अनुसार रावण ने आंध्रप्रदेश के काकिनाड़ में एक शिवलिंग की स्थापना की थी और इसी शिवलिंग के निकट रावण की भी प्रतिमा स्थापित है। यहाँ शिव और रावण दोनों की पूजा मछुआरा समुदाय करता है।

रावण को लंका का राजा माना जाता है और श्रीलंका में कहा जाता है कि राजा वलगम्बा ने इला घाटी में रावण के नाम पर गुफा मंदिर का निर्माण कराया था।

रावण के बारे में जो कथाएँ प्रचलित हैं उनके अनुसार वह ब्राह्मण ऋषि और राक्षण कुल की कन्या की सन्तान था। उसके पिता विशरवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे जबकि माता कैकसी राक्षसराज सुमाली की पुत्री थी। कुछ लोगों का यह भी दावा है कि रावण का जन्म उत्तरप्रदेश के एक गाँव में हुआ था।

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में कटरा का रामलीला शुरू होने पर पहले दिन हर साल रावण जुलूस निकाला जाता है और स्थानीय निवासियों का दावा है कि यह परंपरा पाँच सौ साल पुरानी है। इन लोगों का कहना है कि इसी संगम नगरी में भारद्वाज ऋषि की कुटिया थी और उनकी शिक्षा है कि ब्राह्मणों की पूजा की जानी चाहिए। भारद्वाज ऋषि की इसी शिक्षा को इलाहाबाद में रावण जुलूस का आधार बताया जाता है।

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