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नंदीग्राम हिंसा ने रौंदा था मासूमों का बचपन

हमें फॉलो करें नंदीग्राम हिंसा ने रौंदा था मासूमों का बचपन
-प्रतिभा ज्योति
वामपंथियों का गढ़ माने जाने वाले पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में हिंसा की आग भले ही ठंडी पड़ गई हो पर उसका दुस्वप्न वहाँ के बच्चों को लंबे समय तक सताता रहा। हिंसा और मौत के मंजर को आँसुओं और दर्द में दफन करने वाले बच्चे हिंसक घटनाओं के सदमे से जल्दी उबर नहीं सके।

बच्चों के मन पर हिंसा का ऐसा असर हुआ कि कुछ बच्चों की पढ़ाई छूट गई तो कुछ के कानों में हमेशा गोली और बंदूक की आवाज गूँजती रही थी।

नंदीग्राम में सेज बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर भूमि उच्छेदन प्रतिरोध समिति और माकपा काडर के बीच चली हिंसक लड़ाई ने बच्चों का बचपन छीन लिया। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट एंड यू (क्राइ) के कोलकाता, हैदराबाद और गाँधीनगर के स्वैच्छिक सहयोगियों ने नंदीग्राम हिंसा के गवाह रहे बच्चों पर किए अध्ययन में दर्दनाक खुलासा किया है।

क्राइ ने इसी साल यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और कोलकता के राज्यपाल को सौंपी है। जल्दी ही रिपोर्ट सभी राज्य सरकारों को भी भेजी जाएगी। क्राइ के सहयोगी रोहण साहा का कहना है कि नंदीग्राम हिंसा को भले ही डेढ़ साल बीत गए हों पर राज्य के अलग-अलग इलाकों में हिंसा की घटनाएँ होती रहती हैं।
इस रिपोर्ट के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि हिंसा और तनाव के दौरान बाल मन पर कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए राज्य सरकारें हिंसा रोकने के लिए यथासंभव प्रयास करें।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नंदीग्राम में जनवरी 2007 के बाद भूमि उच्छेदन समिति और माकपा काडर के बीच हिंसा का दौर जारी रहा। हिंसा रोकने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस तैनात की गई। इस दौरान पुलिस नंदीग्राम के गोकुलनगर हाईस्कूल में रुकी थी।

स्कूल में पुलिस के ठहरने से बच्चों की कक्षाएँ बाधित होने लगीं। कक्षाएँ मैदान में लगती थीं क्योंकि प्रयोगशाला सहित सभी जगह पुलिसकर्मियों का कब्जा था। पुलिस के डर से लोग बच्चों को स्कूल भेजने से मना करने लगे। बच्चों की संख्या बहुत घट गई। हिंसा प्रभावित गंगरा इलाके के तो ज्यादतर बच्चों ने हिंसा के डर से स्कूल जाना बंद कर दिया था।

नंदीग्राम के सोनाचूरा प्राथमिक विद्यालय के विकास मंडल और पोंपा मंडल के पिता की हत्या माकपा काडरों ने 6 जनवरी 2007 को कर दी। साथ ही चार और लोगों की हत्या की गई। मजदूर पिता की मौत के बाद दोनों भाई-बहन ने स्कूल जाना छोड़ दिया और वे कई दिनों तक डर के मारे घर से नहीं निकले।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2007 के बाद दोनों बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया लेकिन पिता की मौत ने उनके दिमाग पर ऐसा असर छोड़ा कि बच्चों को कुछ भी याद नहीं रहा। यहां तक कि वे अक्षर तक पहचानना भूल गए और उन्हें यह याद नहीं था कि उन्होंने अपनी वार्षिक परीक्षा दी है या नहीं?

मई 2007 के बाद जिंदगी अपनी पटरी पर भले ही फिर से दौड़ने लगी हो पर हिंसा की घटनाएँ थमने के बादभी बम और गोली की आवाजें कानों में गूँजने की शिकायतें अधिकतर बच्चों ने की थी। क्राइ को नंदीग्राम के एक विद्यालय के कुछ छात्रों ने बताया कि माकपा काडरों ने हिंसा के दौरान भयानक रूप धारण कर लिया था और वे हाथों में बंदूक और बम लेकर चलते थे।

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