बर्फीले रेगिस्तान का कुम्भ 'हेमिस' (फोटो)
, शनिवार, 3 अगस्त 2013 (15:05 IST)
अपने उत्सवों के लिए प्रसिद्ध बर्फीले रेगिस्तान अर्थात लद्दाख में वर्षभर में कितने उत्सव मनाए जाते हैं गिनती असंभव है क्योंकि बेशुमार गौम्पाओं (बौद्ध मंदिरों) के अपने-अपने उत्सव होते हैं, जिन्हें उस क्षेत्र के लोग सदियों से मनाते आ रहे हैं, लेकिन इन सबमें विश्व प्रसिद्ध उत्सव ‘हेमिस उत्सव’ होता है जो चन्द्र वर्ष अर्थात भोट पंचांग के अनुसार पांचवें महीने में मनाया जाता है।
इस उत्सव का अधिक महत्व इसलिए भी होता है क्योंकि लद्दाख की धरती पर जितने भी उत्सव होते हैं वे सर्दियों में संपन्न होते हैं, जब वहां पर तापमान शून्य से भी कई डिग्री नीचे होता है और लोग खुले दिल से उसमें भाग नहीं ले पाते हैं, जबकि ‘हेमिस उत्सव’ ही एकमात्र ऐसा उत्सव है जो गर्मियों में मनाया जाता है। चन्द्र भूमि लद्दाख में इस बार यह उत्सव जुलाई में मनाया गया।प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी उत्सव में शामिल होने के लिए देश-विदेश से हजारों पर्यटकों ने भाग लिया है हर वर्ष की भांति, लेकिन उत्सव के प्रत्येक बारह वर्षों के उपरांत जब भोट पंचांग के अनुसार बंदर वर्ष आता है तो चार मंजिला ऊंची गुरु पद्भसंभवा की खूबसूरत मूर्ति अर्थात थंका (सिल्क के कपड़े पर बनाई गई तस्वीरों को थंका कहा जाता है) प्रदर्शित की जाती है।उस वर्ष होने वाले उत्सव को ‘लद्दाख का कुम्भ’ भी कहा जाता है क्योंकि गुरू पद्भसंभवा के थंका को देखने के लिए दो लाख से अधिक व्यक्ति आते हैं। सिर्फ भारत वर्ष से ही नहीं बल्कि दुनिया भर से लोग इस मूर्ति के दर्शानार्थ आते हैं।
आखिर क्या है हेमिस गोम्पा... पढ़ें अगले पेज पर....
लेह से करीब 48 किमी की दूरी पर पूर्व-दक्षिण में सिंधु नदी के किनारे स्थित हेमिस गोम्पा अपनी कला तथा आकर्षण के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है क्योंकि यहीं पर बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तथा पुराने भवन हैं। लद्दाख में एकमात्र हेमिस गोम्पा ही सबसे अधिक पुराना भवन है, जो अपनी संस्कृति तथा कला की खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। इस गोम्पा में रखी गई मूर्तियों पर सोने की कढ़ाई की गई है और बेशकीमती पत्थर भी जड़े गए हैं। अति मूल्यवान चित्रों तथा अभिलेखों से यह गोम्पा सुसज्जित है।