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भारत में बोझ समझी जाती हैं बेटियां : रिपोर्ट

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नई दिल्ली , मंगलवार, 22 जुलाई 2014 (21:57 IST)
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नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपनी बेटियों के लिए एक योग्य वर तलाशने में सामर्थ की कमी और दहेज के तौर पर मोटी रकम देने का सामाजिक दबाव भारतीय माता-पिता में यह अहसास ला देता है कि बेटी उनके लिए ‘बोझ’ है।

‘सेक्स रेश्योज एंड जेंडर बायस्ड सेक्स सेलेक्शन : हिस्ट्री, डीबेट्स एंड फ्यूचर डायरेक्शंस’ नाम की रिपोर्ट के मुताबिक, समकालीन सामाजिक प्रक्रियाओं के ऐसे परिणाम जिनकी मंशा पहले से तय न हो, उन्हें जब बहुत प्रतिस्पर्धी एवं अलग तरह के शादी के बाजार के संदर्भ में माता-पिता के डर से जोड़ा जाता है तो यह बेटी के जन्म को बोझ समझने की भावना को जन्म देता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, अब उन्हें (बेटियों को) घर पर कई और साल रहना होता है जिस दौरान उनके पोषण, स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर बहुत निवेश होता है। दूसरी ओर, बेटे कई तरह के रिवाजों और आर्थिक भूमिकाओं को मूर्तरूप देते हैं।

आर्थिक अस्थिरता एवं पुरुषों की अनैतिकता का मौजूदा माहौल उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं करता है, इसके बावजूद कम से कम एक बेटा परिवार के भविष्य के लिए जरूरी है। यही वह पहलू है जिसकी वजह से बाल लिंगानुपात में कमी हो रही है।

रिपोर्ट में उन पहलुओं को विस्तार से बताया गया है जिससे भारत में बाल लिंगानुपात में लगातार गिरावट आ रही है। भारत दुनिया की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही अर्थव्यवस्था होने के बावजूद इस समस्या से जूझ रहा है।

यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, अभूतपूर्व आर्थिक वृद्धि की अवधि के दौरान बाल लिंगानुपात में सबसे तेज गिरावट आई है। इसकी शुरुआत उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम भारत से हुई है जो ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें हरित क्रांति का केंद्र कहा जा सकता है और इसलिए उनकी समृद्धि के स्तर में और आकलन की जरूरत है। (भाषा)

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