शिव ने केदारनाथ में अपना 'तीसरा नेत्र' क्या खोला, मानसरोवर यात्रा पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। चीन-तिब्बत सीमा के पार तक होने वाली इस यात्रा के संचालन का दायित्व कुमाऊं मंडल विकास निगम संभालता है। अगले डेढ़ माह तक इस यात्रा पर कोई भी नहीं जा सकेगा।
उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा के चलते इस बार जून की बारिश ने इस यात्रा मार्ग के तमाम रास्ते लील लिए। कई रास्तों पर पत्थर वर्षा होने से भूस्खलन के खतरे के चलते यहां कई गांवों का सम्पर्क कट गया है। इस क्षेत्र जहां से होकर यात्रा गुजरती है, में काली नदी जो नेपाल-भारत की सीमा बनाती है, का भी प्रवाह काफी तेज होने से यात्रियों के लिए निर्धारित मार्ग खतरे की जद में है।
भूस्खलन एवं अत्यधिक वर्षा के चलते यहां पूरा क्षेत्र तबाह होने से लगभग आठ सौ ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर निकालने की चुनौती आपदा के अठारह दिन बाद भी जारी है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा में देशभर के श्रद्धालु जाते रहे हैं। 1988 में फिर शुरू हुई इस यात्रा के प्रत्येक जत्थे के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी को लाइजनिंग ऑफिसर बनाकर भेजे जाने की भी व्यवस्था की जाती है। इनका चयन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
विदेश मंत्रालय ने इस रास्ते की तबाही के मद्देनजर पहले जत्थे को यह यात्रा करवाने के बाद यात्रा को अगले डेढ़ माह के लिए रोक दिया है। कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक दीपक रावत के अनुसार इस यात्रा के प्रभावित होने से अकेले कुमाऊं मंडल को ही लगभग एक करोड़ से अधिक रुपए के सीधे नुकसान का अंदाजा लग रहा है। इसके अलावा निगम के इस क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर भी प्रभावित हुआ है। बौद्ध किस रूप में पूजते हैं शिव को... आगे पढ़ें....