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लद्दाख में मुस्तैद है भारतीय सेना...

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जयदीप कर्णिक

ख़ूबसूरत वादियाँ, अलग-अलग रंग दिखाते पहाड़, बर्फ से ढँकी चोटियाँ, बौद्ध मठ, गेरुए चोगों में ढँके बौद्ध भिक्षु और मुस्कराते पहाड़ी चेहरों के अलावा अगर लद्दाख में कोई अन्य दृश्य प्रमुखता से आपका ध्यान खींचता है तो वह है सेना के जवान। हर जगह हर कदम पर मुस्तैदी से डटे। लेह शहर में भी, 17500 फुट ऊँचे चांगला दर्रे पर भी और पैंगांग झील के किनारे भी।
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इन हसीन वादियों की ख़ूबसूरत ख़ामोशी के बीच अचानक सुनाई देने वाली सैन्य बूटों की आवाज और घरघराते हुए गहरे हरे रंग के मि‍लिट्री के ट्रक आपको इस बात का एहसास दिलाते हैं कि आप 'दुनिया की इस छत' पर इन हसीन नाजारों का लुत्फ इसलिए ले पा रहे हैं क्योंकि वो मौजूद हैं। लेह से पैंगांग तक के रास्ते में तो ये मौजूदगी और भी प्रमुखता से महसूस होती है।

काराकोरम की पहाड़ियों को चीरता संकरा पहाड़ी रास्ता जिस पर गाड़ी चलाना वहीं के अभ्यस्त कुशल ड्राइवर के ही बस की बात है। इस रास्ते पर जब आप लेह की 11,500 फुट की ऊँचाई से 17,500 फुट के चांग ला की ओर बढ़ते हैं तो आसपास के नजारे आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं। बादलों का तो जैसे घर ही यहीं है। पहाड़ की चोटियों से उनकी गलबहियाँ बस देखते ही बनती हैं।
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पहाड़ों का रंग कभी भूरा कभी चॉकलेटी तो कभी एकदम धूसर। बॉर्डर रोड़ ऑर्गनाइजेशन के दिलचस्प स्लोगन भी आपका ध्यान खींचते हैं। बीआरओ ने इस इलाके में सड़क बनाने का बहुत दुष्कर कार्य परिश्रमपूर्वक किया है। इसी सबके बीच फौज के अफसर जिप्सी गाड़ियों में आते-जाते दिखाई पड़ जाते हैं।

साथ ही आपको दिखाई देते हैं मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित सैन्य फैक्ट्री में बने ट्रक। इन ट्रकों में रसद और सेना के जवान एक चौकी से दूसरी चौकी के बीच भेजे जा रहे हैं। जब इन ट्रकों से सामना होता है तो गाड़ी को किनारे कर इनको निकलने की जगह देनी होती है। सड़क इतनी चौड़ी नहीं है कि दो गाड़ियाँ एक साथ निकल जाएँ।

सामरिक दृष्टि से ये पूरा इलाका बेहद संवेदनशील...पढ़ें अगले पेज पर...


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पैंगांग जाने के लिए आपको विशेष अनुमति भी पहले से लेनी होती है। सैन्य चौकी पर बाकायदा आपकी गाड़ी का नंबर और आपके परिचय-पत्र सहित आपकी जानकारी दर्ज होती है। ये जरूरी भी है। सामरिक दृष्टि से ये पूरा इलाका बेहद संवेदनशील है।

चीन की हालिया गतिविधियों ने तो हमें सतर्क किया ही है, हमारी आजादी के बाद से ही चीन इस पूरे इलाके पर नज़र गड़ाए हुए है। 1962 की लड़ाई में इसी क्षेत्र का बहुत बड़ा हिस्सा हम बमुश्किल बचा पाए थे। रिजांग ला की लड़ाई और मेजर शैतानसिंह (परमवीर चक्र) का बलिदान तो आज भी इतिहास के पन्नों में प्रमुखता से दर्ज है।

यहां सैनिक करते हैं आपका गर्मजोशी से स्वागत...पढ़ें अगले पेज पर...


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जिंगराल और चांग ला : लेह से जब आप पैंगांग की ओर चलते हैं तो 15,500 फुट की ऊँचाई पर पहली बड़ी चौकी आती है जिंगराल। यहाँ पर सेना ने जनता के लिए अलग से शौचालय बनाए हैं। सैनिक यहाँ आपका गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। चौकी के प्रवेश पर ही सैनिकों ने एक छोटा-सा मंदिर बना रखा है। हर सैनिक घंटी बजाकर और चौकी की सीढ़ियों को नमन कर ही चौकी में प्रवेश करता है। सैनिकों के लिए तो ये चौकी भी मंदिर है और उनका ईश्वर है भारत राष्ट्र, उनकी देवी है भारत माँ।
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जब हम यहाँ से गुजरे तो मद्रास रेजीमेंट के कुछ जवान मिले। हैदराबाद के रहने वाले कोटेश्वर राव ने ना केवल साथ में फोटो खिंचाई बल्कि यहाँ की सैन्य गतिविधियों और मौसम की जानकारी भी दी। जब उन्हें बताया कि मैं इंदौर से हूँ तो बहुत खुश हुए। बोले आपके यहाँ तो मौसम बहुत अच्छा है। मैं पिछले साल ही महू आया था ट्रेनिंग के लिए। 11 हजार से 15 हजार फुट पर पहुँचने पर इस चौकी पर थोड़ा सुकून मिलता है।
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जिंगराल से आगे घुमावदार रास्तों से ऊँचाई की ओर बढ़ते हुए बहुत ही मनोरम दृश्य देखने को मिलते हैं। इन दृश्यों में आप खोए रहते हैं और पता ही नहीं चलता कब चांग ला आ गया। 5360 मीटर यानी 17,586 फुट की ऊँचाई। दुनिया का तीसरा सबसे ऊँचा दर्रा। पहला खारडुंगला ( 18,379 फुट) दूसरा टैग लांग ला ( 17,650 फुट)। अपनी गाड़ी से बाहर कदम रखिए तो पता चलता है कि ऑक्सीजन की कमी होती क्या है?

हाड़ जमा देने वाली सर्द हवा ...पढ़ें अगले पेज पर...


हाड़ जमा देने वाली सर्द हवा और ऑक्सीजन की कमी आपको एकदम चौंका देते हैं। लेकिन, जैसे ही आप नजर उठाकर आसपास के दृश्य देखते हैं सर्दी और ऑक्सीजन की कमी को भूल जाते हैं। यों तो चांग ला में साल भर थोड़ी बर्फ तो होती ही है पर हमारी बदकिस्मती ही थी कि हमें वहाँ बर्फ नहीं मिली। कुछ दूरी पर जरूर बर्फ थी पर उतना समय हमारे पास नहीं था।
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चांग ला में भारतीय सेना की तरफ से आपको मुफ्त में गर्म चाय उपलब्ध है और मैगी भी। हाँ अपना गिलास आप खुद धोकर रखिए। यहीं चांग ला बाबा का मंदिर भी है जिनके नाम पर इस दर्रे का नाम रखा गया। इस मंदिर से लाउड स्पीकर पर मधुर धुन और भजन बजते रहते हैं। चांग ला से पैंगांग जाने के लिए आप फिर नीचे उतरते हैं और चुशुल घाटी के एक हिस्से से होकर गुजरते हैं।

परमवीर मेजर शैतानसिंह की याद दिलाती है यह घाटी...पढ़ें अगले पेज पर...


मेजर शैतानसिंह को सलाम : परमवीर चक्र प्राप्त स्वर्गीय मेजर शैतानसिंह। जैसे चुशुल घाटी के हर पत्थर पर उन्हीं का नाम लिखा हो। 62 की लड़ाई में चीन के हाथों हुई करारी हार भारतीय सेना के और स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है।
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इस पूरे अध्याय में यदि कोई एक सुनहरा पन्ना जुड़ा है तो वो है रिजांग ला का। 123 जाँबाज हिंदुस्तानी सैनिकों ने हजार से ज्यादा चीनी सैनिक मार गिराए थे। इस रास्ते पर पहुँचते ही ज़ेहन में लता मंगेशकर की आवाज में 'ऐ मेरे वतन के लोगों...' गूँजने लगता है। कवि प्रदीप के इस नगमे में 'दस-दस को एक ने मारा' पंक्ति इसी रिजांग ला की याद दिलाती है।

18 नवंबर 1962 के दिन 13 कुमाऊँ रेजीमेंट के जवान हजारों चीनी सैनिकों से आख़िरी दम और आखिरी गोली तक लड़ते रहे थे। इनका नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतानसिंह जिन्होंने बहुत बहादुरी के साथ अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाया।

कुमाऊँ रेजीमेंट की 7वीं, 8वीं और 9 वीं बटालियन यहाँ तैनात थी। पहले बंदूक से फिर संगीन से और आखिर में आमने-सामने हाथ से वो चीनी सैनिकों से तब तक लड़ते रहे जब तक उनमें एक साँस भी बाकी थी। इस लड़ाई में 100 भारतीय सैनिक मारे गए थे और 1400 चीनी सैनिक। लड़ाई के बाद वहाँ के नाले और गड्ढे चीनी सैनिकों की लाशों से पटे पड़े थे।

मेजर शैतानसिंह भी घायल होने के बाद भी लड़ते रहे और शहीद हो गए। 'हकीकत' फिल्म भी इसी लड़ाई पर आधारित है। जैसे मेजर शैतानसिंह ख़ुद कह रहे हों कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।... मेजर शैतानसिंह की याद में अब यहाँ सेना के अभ्यास के लिए शूटिंग रेंज बनी हुई है।

जब सेना ने दी ऑक्सीजन... पढ़ें अगले पेज पर...


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रिजांग ला के आगे थोड़ी घास भी दिखती है और मैदानी इलाका भी। याक भी यहाँ ख़ूब दिख जाते हैं। पैंगांग झील का पहला नजारा ही दिल जीत लेता है और सारी थकान काफूर हो जाती है। 15 हजार फुट की ऊँचाई पर दुनिया की खारे पानी की ये सबसे बड़ी झील है। ये झील आमिर खान की फिल्म 'थ्री इडियट्स' की शूटिंग की वजह से अब पर्यटकों के लिए और भी बड़ा आकर्षण का केंद्र बन गई है।

135 किलोमीटर लंबी इस झील का तीस प्रतिशत हिस्सा भारत में है शेष चीन में। चीन जब तब यहाँ घुसपैठ करता रहता है। इसीलिए सेना भी यहाँ मुस्तैदी से डटी हुई है। यहाँ सेना की वजह से ही आपको शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाएँ मिल पाती हैं।

सेना ने दी ऑक्सीजन : लौटते वक्त एक साथी की हालत ख़राब हो गई। हम जिंगराल की सैन्य चौकी पर रुके। वहाँ हमें सेना के अस्पताल में ले जाया गया। डॉक्टर ने देखा तो ऑक्सीजन का स्तर 70 से भी नीचे था। डॉक्टरों ने तुरंत ऑक्सीजन लगाई।
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आग जलाकर तापामान भी बढ़ाया गया तब कुछ हालत ठीक हुई। सेना कई तरीकों से हमारी रक्षा में जुटी है। सीमा पर भी सीमा के भीतर भी। दंगे में भी और बाढ़ में भी। वहाँ उत्तराखंड की भीषण आपदा में भी और यहाँ लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर भी...... जय हिंद.... जय हिंद की सेना।

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