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वसंत के आगमन की खुशी का पर्व है लोहड़ी

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नई दिल्ली (भाषा) , सोमवार, 12 जनवरी 2009 (17:18 IST)
हाड़ कँपा देने वाली सर्दी के बीच वसंत आने की खुशी में पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व रात में आग जलाकर सामूहिक नाच-गाना तथा मूँगफली, पॉपकार्न और रेवड़ी खाने-खिलाने का त्योहार है।

पारंपरिक मान्यता के अनुसार लोहड़ी पौष मास के अंत में मनाई जाती है। प्रायः यह पर्व सूर्य के उत्तरायण में होने के साथ मकर संक्रांति के आसपास पड़ता है। सूर्य के उत्तरायण होने का अर्थ है जाड़े में कमी।

दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारे रकाबगंज के मुख्य ग्रंथी गुरुचरण सिंह ने बताया कि लोहड़ी मुख्यतः नई फसल के आने और वसंत की शुरुआत का पर्व है। इस बार लोहड़ी नानकशाही कैलेंडर के अनुसार आज (सोमवार) और पुराने मत के अनुसार कल (13 जनवरी को) मनाई जा रही है।

उन्होंने बताया कि सिख धर्म में कोई भी पर्व सोग (शोक) में नहीं मनाया जाता। लोहड़ी तो खैर नाच-गाने का पर्व है ही। उन्होंने बताया कि इस दिन लोग विभिन्न सरोवरों और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान करते हैं। इसके अलावा वे गुरुद्वारों में जाकर मत्था टेकते हैं।

दिल्ली के शीशगंज गुरुद्वारे के वरिष्ठ ग्रंथी ज्ञानी हेमसिंह ने बताया कि लोहड़ी शब्द दरअसल तिल और गुड़ से निर्मित रोड़ी से बना था। मूल में यह शब्द तिलोड़ी था और बाद में यह शब्द बदलकर लोहड़ी हो गया।

उन्होंने कहा कि लोहड़ी एक सामुदायिक त्योहार है जिसे सब लोग मिलकर मनाते हैं लिहाजा इसका धर्म से बहुत लेना-देना नहीं है।

सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही सर्द हवाओं में गर्मी आने लगती है। ये हवाएँ शिराओं में रक्त संचार बढ़ा देती हैं। इस वजह से मनुष्यों में स्वाभाविक खुशी और मस्ती बढ़ने लगती है। लोहड़ी दरअसल इसी मस्ती की शुरुआत का पर्व है।

पंजाब की लोककथाओं के अनुसार मुगल शासनकाल के दौरान एक मुसलमान डाकू था दुल्ले भट्टी। उसका काम था राहगीरों को लूटना, लेकिन उसने हिन्दू लड़कियों का विवाह करवाया। इसके बाद से दुल्ला भट्टी जननायक बन गया। लोहड़ी के अवसर पर लड़के-लड़कियाँ आग के सामने नाचते समय जो लोकगीत गाते हैं उनमें इसी दुल्ले भट्टी का जिक्र बार-बार आता है।

ग्रामीण जीवन के इस सामूहिक पर्व लोहड़ी पर बच्चे घर-घर जाकर माँगते हैं। इस दौरान लोकगीत गाने वाले बच्चों को लोग आग जलाने के लिए लकड़ियाँ, रेवड़ी, मूँगफली और पॉपकार्न आदि देते हैं।

रात्रि के समय आग जलाई जाती है तथा सभी लोग इस अग्नि की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते समय सभी लोग आदर-सम्मान पाने और दरिद्रता एवं गरीबी दूर होने की प्रार्थना करते हैं।

लोहड़ी पर जलती आग के समक्ष महिलाएँ और बच्चे लोकगीत गाते हैं और नाचते हैं। इसके बाद लोगों को लोहड़ी के प्रसाद के रूप में गजक, मूँगफली और रेवड़ियाँ बाँटी जाती हैं।

पंजाबी एवं सिख परिवारों में नवविवाहित जोड़े के लिए पहली लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इस दिन नए परिधान पहनकर नवविवाहित दंपति लोहड़ी की आग की पूजा करते हैं तथा परिवार एवं बुजुर्ग लोगों का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

नवजात बच्चे की पहली लोहड़ी को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन नवजात बच्चे की माँ उसे गोद में लेती है तथा घर के सभी सदस्य उसे उपहार देते हैं। रात में बच्चा और माँ को अग्नि के पास ले जाया जाता है और उसकी पूजा करवाई जाती है।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश के कुछ हिस्सों एवं दिल्ली में मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व दरअसल ग्रामीण भारत एवं लोकजीवन की उत्सव प्रियता की एक झलक है। सर्दी के मौसम में आग के समक्ष नाचना-गाना भला किसको अच्छा नहीं लगेगा और यह मौका अगर लोहड़ी के रूप में मिले तो मजा दुगना हो जाता है।

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