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शास्त्रीय संगीत के बढ़े हैं श्रोता-जसराज

(28 जनवरी को जन्मदिवस पर विशेष)

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नई दिल्ली (भाषा) , रविवार, 27 जनवरी 2008 (14:44 IST)
मेवाती घराने के हिन्दुस्तानी शैली के जाने माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने कहा कि चैनलों पर आने वाले कार्यक्रमों की वजह से शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं की संख्या बढ़ रही है।

अपने जन्म दिन की पूर्व संध्या पर पद्म विभूषण पंडित जसराज ने कहा पंडाल लगाकर आयोजित किए जाने वाले शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में तीन-चार हजार लोग ही आ पाते हैं। इस बात के लिए चैनलों का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत को घर- घर तक पहुँचाया।

शास्त्री संगीत के प्रति सच्ची लगन कब जागृत हुई इस बारे में पूछने पर पंडित जसराज ने अपनी स्मृतियों के वर्क पलटते हुए दिसंबर 1946 की एक घटना का जिक्र किया। उन्होंने बताया मैं दो साल से शास्त्रीय संगीत सीख रहा था। भाई साहब के कार्यक्रम में मैंने राग यमन पेश करने की जिद की और अंतरे के बाद मैं नहीं गा सका, जिसके बाद मैंने शास्त्रीय संगीत सीखने की जिद कर ली और आज आप सबके सामने हूँ।

ालाँकि उन्होंने आजकल संगीत के कार्यक्रमों की बढ़ती संख्या की ओर इशारा करते हुए कहा कि अति सर्वत्र वर्जते संगीत कार्यक्रमों की अति लाभदायक ही होगी ऐसा नहीं सोचना चाहिए।

शास्त्रीय संगीत की नयी पीढ़ी के बारे में उन्होंने कहा ई पीढ़ी सही रास्ते पर है और कभी भी पाँच-छह से अधिक बड़े शास्त्रीय गायक नहीं रहे हैं। दूसरी पंक्ति में 15 से 16 शास्त्रीय गायक होते हैं। इससे ज्यादा के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।

पंडित जसराज ने कहा भगवान जिसे बेहद प्यार करता है उसे ही संगीत की इस नियामत से नवाजता है। शास्त्रीय संगीत से जुड़ा व्यक्ति अपनी संतान को संगीत की विरासत देने के बारे में सोचता है। इसके बाद ही बाकी शास्त्रीय संगीत सीखने वालों की बारी आती है।

उन्होंने भारत रत्न को लेकर चल रहे विवाद से बचते हुए कहा कि जिसको सरकार चाहती है, उसका नाम पहले ही तय हो जाता है। इस बारे में हमें बात भी नहीं करना चाहिए।

शास्त्रीय संगीत में पंडित भीमसेन जोशी और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसी महान संगीत विभूतियों के साथ जुगलबंदी कर चुके पंडित जसराज ने कहा मुझे तो सभी के साथ जुगलबंदी करके मजा आया क्योंकि हम प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक थे। हाल में एक जनवरी को कोलकाता में डॉ. बाल मुरली कृष्णन के साथ जुगलबंदी करने में बड़ा आनंद आया।

शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के बारे में उन्होंने कहा आनंद लेने वाले श्रोता बहुत अच्छे होते हैं। मगर शास्त्रीय संगीत के अल्पज्ञ श्रोता संगीत का सही आनंद नहीं ले पाते क्योंकि उनका ध्यान गायक की गलती निकालने में ही लगा रहता है।

मल्हार और बसंत राग की प्रस्तुति से संबंधित दो घटनाओं को जिक्र करते हुए उन्होंने बताया आनंद में महाराजा जसवंतसिंह की समाधि पर मुझे आवाज आई कि मियाँ की मल्हार क्यों नहीं गाते। मैंने अहमदाबाद के सप्तक कार्यक्रम में उसे गया और वहाँ बेमौसम तीन दिन तक लगातार बारिश हुई।

दूसरी घटना 1998 में दिल्ली की है। जहाँ ढाई घंटे की प्रस्तुति के बाद मैने गर्मी के मौसम में धूलिया मल्हार प्रस्तुत किया और तकरीबन 25 मिनट बाद बादल झूमकर बरसने लगे।

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