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सूफी आध्यात्मिकता के चितेरे थे मंजीत बावा

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समकालीन सरोकारों के कैनवास पर सूफी आध्यात्मिकता और पौराणिकता के अक्स उकेरने वाले चित्रकार मंजीत बावा नहीं रहे। उनका सोमवार को राजधानी में निधन हो गया।

नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के निदेशक राजीव लोचन ने बताया कि मंजीत बावा अपने पीछे एक विरासत छोड़ गए, जो समकालीनता की भावना के साथ पौराणिकता को संबोधित करती है और इसे समकालिक लोकाचार के हमारे मौजूदा संदर्भों तक बुलंद कर देती है।

लोचन ने कहा यह बदकिस्मती है कि इस कद का एक चित्रकार कुछ साल से चुप रहने के लिए बाध्य रहा, क्योंकि प्रकृति ने उन्हें जिंदा रहने, लेकिन सक्रिय नहीं रहने के लिए मजबूर किया।

पंजाब के छोटे से कस्बे धूरी में पैदा हुए बावा ने दिल्ली के स्कूल ऑफ आर्ट्स में ललित कला की तालीम हासिल की। यहाँ उन्हें सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बीसी सान्याल जैसे शिक्षकों से प्रशिक्षण मिला।

बहरहाल बावा ने अबनी सेन के तहत अपनी शिनाख्त पाई। उन्होंने खुद ही कहा कि सेन ने एक ऐसे वक्त में उन्हें आकृतियों की तरफ प्रेरित किया, जब समूचे कला परिदृश्य में अमूर्त की तूती बोल रही थी।

वढेरा आर्ट गैलरी के स्वामी वढेरा ने कहा कि मंजीत की कृति की जो ताजातरीन याद है वह न्यूयॉर्क की है। जहाँ किस्टीज ने उनकी कृति 3 लाख 60 हजार डॉलर में नीलाम की।

उन्होंने कहा कि वे स्वातंत्रोत्तर काल के एक प्रमुख चित्रकार थे। उनकी कृतियों की अपनी एक अलग पहचान थी।

वढेरा ने कहा कि उनकी कृतियाँ बेहद मौलिक और बेहद भारतीय हैं, लेकिन साथ ही बेहद समकालिक और अनूठी हैं। यह हुसैन की कृतियों जैसी सबसे जुदा हैं।

बावा की जीवनी लिखने वाली इना पुरी ने कहा कि उनका निधन भारत के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। उन्होंने किसी अन्य की विरासत नहीं अपनाई थी और रंगों और रूपों के प्रति उनके अनूठे रुख की विरासत को किसी ने नहीं अपनाया।

इना ने कहा कि बावा सूफीवाद से बेहद प्रभावित थे और उनकी कला मरहम लगाने पर जोर देती है। (भाषा)

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