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स्वादिष्ट केक के साथ खूब मनाएँ खुशियाँ

पाँच जनवरी को केक डे पर विशेष

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दिल्ली , सोमवार, 4 जनवरी 2010 (14:30 IST)
जन्मदिन की शुभकामनाओं भरे गीतों के साथ केक का मेल न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। मामला चाहे दोस्त-यारों और भाई-बहनों के जन्मदिन का हो या फिर दादा-दादी की 60वीं वर्षगाँठ या फिर मम्मी पापा की शादी की सालगिरह, खुशी के किसी भी अवसर पर केक तो कटना ही है।

अपनों के बीच केक काटने का या दूसरों के साथ इस खुशी को बाँटने का अपना अलग मजा है। तभी तो आज तरह तरह के केक के साथ लोग बड़े ही निराले अंदाज में आपको खुशियाँ मनाते दिख जाएँगे।

गोल, चौकोर, तिकोने या फिर किसी विशेष आकृति से सुसज्जित स्वादिष्ट केक एक बड़े व्यापार का रूप ले चुका है। राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए कार्यकर्ता दल के चिह्न वाले केक बनवाते हैं।

केक की दीवानी सलोनी बताती हैं कि केक के बिना खुशियाँ मनाने की कल्पना करना बेमानी होगा।

राजधानी में काफी समय से बेकरी चला रहे गुरदीप चड्ढा बताते हैं कि क्रिसमस, नववर्ष, जन्मदिन, सालगिरह आदि के लिए लोग केक खास तौर पर बनवाते हैं। अब तो छोटे केक भी लोग लेते हैं। विशेष केक के लिए आर्डर दिए जाते हैं। इसमें अब लोग फ्लेवर भी चाहते हैं।

केक के इतिहास की सही सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि प्राचीन यूनानी लोग केक के जनक थे। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि यूनानी लोग खुशियों के मौके पर आटा, मधु, शक्कर और खमीर की मदद से ऐसा खाद्य पदार्थ तैयार करते थे।

17वीं शताब्दी में केक का प्रचार-प्रसार व्यापक हुआ और यह यूरोपीय लोगों का खास बन गया। केक को लोग चाय, काफी या मीठी शराब के साथ लेना पसंद करते थे। 19वीं शताब्दी में केक को एक विशेष डिश के रूप में शामिल किया गया। अब तक केक बनाने के नए नए प्रयोग होने लग गए। खमीर की जगह बेकिंग सोडा प्रयोग में आने लगा। इससे केक की न केवल गुणवत्ता बढ़ गई। बदलते दौर के साथ केक का स्वाद भी वैश्विक होता गया।

19वीं शताब्दी में फ्रांस के लोगों ने केक को मिठाई का रूप दे दिया और केक का स्वादिष्ट सफर कभी न रुकने वाला एक ऐसा सफर बन गया जो एशियाई लोगों की प्रत्येक खुशियों में शामिल हो गया।

चड्ढा कहते हैं ‘केक बनाने का तरीका भले ही अलग-अलग हो, लेकिन सामग्री लगभग एक जैसी ही इस्तेमाल की जाती है। हाँ, नए नए प्रयोगों का सिलसिला अब तक जारी है। एशियाई देशों में केक बनाने का तरीका एक दूसरे से थोड़ा अलग जरूर है, लेकिन स्वाद का अंदाज कमोवेश एक ही है। कुछ देशों में तो इसका नामकरण भी भिन्न है जैसे जापान में केक को कासूतेरा कहते हैं तो फिलीपींस में यह मूनकेक और राइसकेक के रूप में काफी प्रचलित है।

केक बनाने वाले दुकानदार अजित कश्यप ने बताया कि केक ब्रेड का ही एक रूप है। दोनों में अंतर यह है कि केक अधिक बेक किया जाता है और इसमें अलग से क्रीम चेरी, फलों के टुकड़े और खाने वाले रंग और मीठा पदार्थ होता हैं।

वह बताते हैं कि जहाँ ब्रेड तीन चार प्रकार की होती है, वहीं केक के सैकड़ों प्रकार मिल जाएँगे। हनिकेक, कपकेक, मिक्स्डकेक, फ्रूटकेक, चाकोकेक, एगलेसकेक, पाउंडकेक और काफीकेक जैसे न जाने केक के कितने प्रकार आज भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं।

प्राचीन यूनानी लोगों को केक का जनक माना जाता है और उनकी चंद्रमा में अगाध श्रद्धा थी। ऐसे में उन्होंने केक को भी चंद्रमा की शक्ल दे दी और शुरुआती दौर में केक गोल ही हुआ करते थे। वक्त के साथ इसमें भी बदलाव आया और तरह तरह की आकृति के केक बनने लगे। वैसे आज भी अधिकतर केक गोल ही होते हैं।

एक और सवाल मन में उठता है कि केक पर मोमबत्ती क्यों जलाई जाती है। उसके पीछे कारण यह है कि प्राचीन यूनानी लोग सांकेतिक रूप से केक पर की गई रोशनी को चाँद की रोशनी से जोड़ कर देखते थे। (भाषा)

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