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युद्ध से छुटकारा, केवल बुद्ध के मार्ग से: नरेंद्र मोदी

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नई दिल्ली , सोमवार, 4 मई 2015 (12:36 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को कहा कि विश्व का बड़ा भू-भाग इन दिनों युद्ध से रक्तरंजित है और भगवान बुद्ध की करुणा की सीख ही दुनिया को जंग से मुक्ति दिला सकती है।

उन्होंने विनाशकारी भूकंप से बड़ी तबाही का सामना करने वाले भगवान बुद्ध की जन्मस्थली और भारत के प्यारे पड़ोसी देश नेपाल के संकट से शीघ्र उबरने की भी कामना की।

यहां तालकटोरा स्टेडियम में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि आनंद भरे पल में हम कुछ बोझिल भी महसूस कर रहे हैं। बोझिल इसलिए कि भगवान बुद्ध की जन्मस्थली, हमारा प्यारा पड़ोसी नेपाल बहुत ही बड़े संकट से गुजर रहा है। वहां के लोगों के संकट की यह यात्रा कितनी कठिन और लंबी होगी, उसकी कल्पना भी मुश्किल है।

उन्होंने कहा कि हम उनके आंसुओं को पोछें, उन्हें एक नई शक्ति प्राप्त हो इसके लिए आज हम भगवान बुद्ध के चरणों में प्रणाम करते हैं।

मोदी ने कहा कि आज विश्व युद्ध से जूझ रहा है, मौत पर उतारू है। विश्व का बड़ा भू-भाग रक्तरंजित है। इस खून-खराबे में करुणा का संदेश कहां से आए? मरने-मारने पर उतारू लोगों के बीच करुणा कौन लाए, कहां से लाए? रास्ता एक ही है- भगवान बुद्ध की करुणा की शिक्षा।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर युद्ध से मुक्ति पानी है तो भगवान बुद्ध के मार्ग से ही मिल सकती है। कभी-कभार लोगों को भ्रम होता है कि सत्ता और वैभव से समस्या का समाधान हो जाएगा लेकिन बुद्ध का जीवन इस सोच को नकारता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान बुद्ध राजपरिवार में पैदा हुए, युद्धकला में पारंगत थे। उनके पास सत्ता-संपत्ति सब कुछ थी। लेकिन उन्होंने दुनिया को बताया कि कुछ और भी आवश्यक है। इन सबके परे भी कुछ है। कितनी गहरी आस्था और कितना साहस था कि सब कुछ एक पल में छोड़ दिया। वह यह बताता है कि इन सबसे परे भी कोई शक्ति है, जो मानव के काम आएगी। भगवान बुद्ध के भीतर की करुणा उनके रोम-रोम में परिलक्षित होती है।

अपने संबोधन में मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध के समय भी सामाजिक बुराइयां और भू-विस्तार सहज प्रवृत्ति बन गई थीं और ऐसे समय में उन्होंने त्याग, मर्यादा, करुणा, प्रेम और सामाजिक सुधार की बात की।

उन्होंने कहा कि जिन सामाजिक बुराइयों के मुद्दों पर हम आज भारत में चर्चा कर रहे हैं, भगवान बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले उन्हें दूर करने की मुहिम चलाई थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया यह स्वीकार कर चुकी है ‍कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी। इस बारे में मतभेद हो सकता है कि यह एशिया के किस देश की होगी। लेकिन एशिया की होगी इसे लेकर कोई दुविधा नहीं है। लेकिन बुद्ध के बिना एशिया की 21वीं सदी नहीं बन सकती है। बुद्ध की शिक्षा एशिया की प्रेरणा और मार्गदर्शक बनेगी।

अपने आलोचकों को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि विवाद बनाने में देरी नहीं लगती। इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने राज्य सचिवालय के प्रवेश स्थल पर भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा लगवाई थी। ऐसा ही उन्होंने मुख्यमंत्री निवास पर भी किया।

उन्होंने कहा कि अभी तक शायद इनका (आलोचकों का) ध्यान नहीं गया वर्ना अब तक मेरी चमड़ी उधेड़ दी गई होती। प्रधानमंत्री ने बताया कि उनके पैतृक स्थल वाडनगर में बौद्ध शिक्षा के प्रसार से संबंधित काफी सामग्री और प्राचीन अवशेष मिले हैं। उन्होंने वहां एक विशाल बौद्ध मंदिर बनाने की पेशकश की जिसका दर्शन करने दुनियाभर से लोग आएंगे।

उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध 'एकला चलो' में नहीं बल्कि साथ मिलकर चलने में विश्वास रखते थे और बाबा भीमराव आम्बेडकर भी उनकी इस बात से प्रभावित थे।

भगवान बुद्ध की 'अप्प दीपो भव:’ (अपना प्रकाश स्वयं बनो) सीख का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ये 3 शब्द आज के सारे प्रबंधन ज्ञान पर भारी हैं। (भाषा)

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