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नोटबंदी से ग्रामीण इलाकों में हालत बदतर, छोटे शहर भी बेहाल...

हमें फॉलो करें नोटबंदी से ग्रामीण इलाकों में हालत बदतर, छोटे शहर भी बेहाल...
, गुरुवार, 17 नवंबर 2016 (16:17 IST)
मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले के बाद से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि इसका सबसे अधिक प्रभाव छोटे व्यापारियों और ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ेगा। सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले से बाजार में चल रही 86 प्रतिशत से ज्यादा मुद्रा चलन से बाहर हो गई और नकद व्यापार आधारित अर्थव्यवस्था लगभग ठप पड़ गई। 
इसका सीधा असर देखने को मिला है रोजमर्रा में काम आने वाली वस्तुओं या उन पर निर्भर लोगों पर। सड़क पर सब्जी बेचने वाले से लेकर दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों, खेत में फसल काट के बेचने वाले या दूसरी फसल बोने की तैयारी कर रहे किसान, छोटे शहरों से महनगरों में पढ़ने आए विद्यार्थी, सब परेशान हैं और कभी बैंक तो कभी एटीएम की लाइनों में अपना समय बिता रहे हैं। 
 
हर वर्ग को परेशानी : अब तो नोटों के संकट के कारण खाने-पीने के सामान की भी किल्लत होने लगी है। इंदौर में पढ़ने वाले बहुत से विद्यार्थी शहर के बाहरी और दूरदराज इलाकों में रहते हैं, ऐसे ही कुछ विद्यार्थी अब नाश्ते के लिए भी तरस रहे हैं। पहले के दो-तीन दिन तो ठेलेवाले ने भी उधार दे दिया पर अब उसकी ताकत भी जवाब देने लगी है। रोज के नए निर्देश इन लोगों को और भी भ्रमित कर रहे हैं।
बड़नगर के रहने वाले इशित पालीवाल बताते हैं कि हम कुछ लड़के यहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आए हैं। रोजाना खाने-पीने, आने जाने और अन्य कामों के लिए हम अक्सर 500 का ही नोट रखते थे। हमारे घरवाले हमें नियमित पैसे भेजते हैं, लेकिन फिलहाल अकाउंट में पैसे होते हुए ही अपने ही पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं। कभी स्याही लगाना तो कभी 4 की जगह 2 हजार ही निकालने के सरकारी फरमान से हम और भी भ्रमित हो गए हैं। अब सारा दिन लाइन में लगें या पढ़ाई करें। 
 
इसी तरह सब्जी बेचने वाले से लेकर, ठेले पर मिलने वाले सामान, ढाबे और छोटी किराना दुकानों की परेशानी नकद के अलावा अब सामान की भी है। उनका पूरा धंधा की नकद में लेन-देन पर चलता है। नकद न होने पर वे कच्चा सामान भी नहीं खरीद पा रहे हैं। ऐसे ही निर्माण और अन्य क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कार्यरत दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। इसका एक कारण चलन वाले नकद की कमी और सीमेंट, रेत और अन्य सामानों की आपूर्ति नहीं होना है।  
 
इस समय राजमार्गों पर बड़ी संख्या में ट्रक भी खड़े हैं, क्योंकि ट्रक चालकों के पास वैध मुद्रा नहीं है। इस समय देश के कई हिस्सों में सामान की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। नकदी की कमी के कारण से फलों के थोक बाजार के अलावा अनाज मंडी में भी कारोबार ठप है। 
 
बैंककर्मियों को सुनना पड़ रही हैं गालियां : ऐसे ही एक राष्ट्रीय बैंक के अधिकारी ने बताया कि पिछले एक हफ्ते से वे न ठीक से सोए हैं, न ही खाना खा पाए हैं। हां, लोगों की गालियां खाने को भरपूर मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के बैंकों में तो हाल बेहद बुरे हैं। वहां नए नोट तो छोड़िए पुराने नोट भी नहीं भेजे जा रहे हैं। कई बार हेड ऑफिस संदेश भेजने पर भी नाकाफी रकम मिल रही है, तो लोगों को वापस भेजना पड़ता है। उन्होंने बताया कि 4 हजार खाता धारकों के लिए हमें सिर्फ 2.5 लाख नकद दिया गया जो दो दिन भी नहीं चल पाया। मजबूरन हमें लोगों को वापस भेजना पड़ रहा है जिससे वे नाराज हो रहे हैं।  
 
गांवों के हाल बेहाल : यह तो हुआ शहरों से सटे उपनगरों और बड़े कस्बों का हाल, परंतु दूर दराज के गांवों के हाल बेहाल हैं।  उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण भारत के 81 फीसदी नागरिक बैंकों के बिना जी रहे हैं। आकंड़ों के अनुसार ग्रामीण भारत के 93 फीसदी हिस्से में बैंक नहीं बल्कि बैंक मित्र काम कर रहे हैं। आरबीआई के आंकड़े के मुताबिक, इन क्षेत्रों में फिलहाल 1.2 लाख बैंक मित्र अपनी सेवाएं दे रहे हैं। परंतु अभी इन बैंक मित्रों के पास भी नए नोटों या प्रचलित मुद्रा की किल्लत है।
 
जन-धन योजना से जुड़े बैंक मित्र इंसानी एटीएम के तरह होते हैं जो अपनी दुकान के जरिए लोगों के पैसे जमा करते और उन्हें पैसे देते हैं। बैंक मित्र लोगों की पासबुक एंट्री भी करते हैं और खाते का हिसाब-किताब रखते हैं। 
 
बैंक मित्र किसान के डिजिटल अंगूठा निशान के साथ दस हजार रुपए का लेन-देन कर सकता है। किसान प्रतिदिन खाद और अन्य सामग्री खरीदने के लिए बैंक मित्र से रुपया ले लेता था, लेकिन अब किसानों के सामने भी परेशानी खड़ी हो गई है। 
 
इसके अलावा अभी शादियों का सीजन है, सिंहस्थ की वजह से इस साल वैसे भी मुहुर्त नहीं था तो इस समय बहुत से लोगों ने मुहुर्त निकाल रखा है। इन लोगों ने अपने पास नकद पैसा रखा था जो अब किसी काम का नहीं रहा। आम शादियों में अधिकतर काम नकद व्यवहार पर चलता है। मसलन हार-फूल, घोड़ी, बैंड, हलवाई जैसे कई काम नकद में ही होते हैं।

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