मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमले के समय विदेश सचिव रहे शिवशंकर मेनन इस हमले के बाद लश्कर ए तैयबा के कैंपों या पीओके के आतंकी शिविरों या आईएसआई के खिलाफ तत्काल सैन्य कार्रवाई करना चाहते थे।
एक अंग्रेजी समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार, 2008 में हुए इस आतंकी हमले के बाद एनएसए मेनन का मानना था कि सैन्य कार्रवाई से भारतीय पुलिस और सुरक्षाबलों पर अक्षमता का लगा धब्बा हटाने में लंबा समय लग जाएगा। आतंकियों के खिलाफ तीन दिन तक चली कार्रवाई को पूरी दुनिया ने तीन दिनों तक टीवी पर देखा था।
मेनन ने अपनी किताब 'च्वाइसेजः इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी' में इस बात का जिक्र किया है। उनकी यह किताब ब्रिटेन और अमेरिका में प्रकाशित हुई है।
उन्होंने कहा कि उस समय सैन्य कार्रवाई न करने और राजनयिक तथा अन्य विकल्पों पर विचार करने का फैसला वक्त और स्थान के हिसाब से सही था।
उन्होंने लिखा है कि भारत ने तत्काल पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई क्यों नहीं की, इसका सीधा सा उत्तर है कि सरकार में उच्च स्तर पर विकल्पों पर विचार के बाद इस फैसले पर पहुंचा गया कि हमला करने से ज्यादा फायदा हमला ना करने से होगा। हमले से पाकिस्तान की जनता का समर्थन सेना को मिलता और वहां आसिफ अली जरदारी की सरकार खतरे में पड़ जाती।
उल्लेखनीय है कि 2008 में 26 नवंबर को पाकिस्तान से आए लश्कर के 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला कर दिया था। इस आंतकी हमले में 26 विदेशी नागरिकों समेत 166 लोगों की मौत हो गई थी।