Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दुनिया मनाती है महाशिवरात्रि और कश्मीरी पंडित 'हेरथ'

हमें फॉलो करें दुनिया मनाती है महाशिवरात्रि और कश्मीरी पंडित 'हेरथ'

सुरेश एस डुग्गर

, शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020 (18:28 IST)
जम्मू। महाशिवरात्रि का त्यौहार शुक्रवार यानी आज पूरे देश में मनाया गया। कश्मीरी पंडितों का यह सबसे बड़ा त्यौहार होता है और देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा इसे यहां ज्यादा धूमधाम से मनाया गया। कश्मीरी पंडित इसे 'हेरथ' के रूप में मनाते हैं। 'हेरथ' शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी अर्थ हररात्रि या शिवरात्रि होता है। 'हेरथ' को कश्मीरी संस्कृति के आंतरिक और सकारात्मक मूल्यों को संरक्षित रखने का पर्व भी माना जाता है।

इसके साथ ही यह लोगों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि पर भगवान शिव सहित उनके परिवार की स्थापना घरों में करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से बटुकनाथ घरों में मेहमान बनकर रहते हैं। करीब एक महीने पहले से इसे मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

कहने को 30 साल का अरसा बहुत लंबा होता है और अगर यह अरसा कोई विस्थापित रूप में बिताए तो उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजकर रख पाएगा, पर कश्मीरी पंडित विस्थापितों के साथ ऐसा नहीं है जो बाकी परंपराओं को तो सहेजकर नहीं रख पाए लेकिन शिवरात्रि की परंपराओं को फिलहाल नहीं भूले हैं।

आतंकवाद के कारण पिछले 30 वर्षों से जम्मू समेत पूरी दुनिया में विस्थापित जीवन बिता रहे कश्मीरी पंडितों के तीन दिन तक चलने वाले सबसे बड़े पर्व महाशिवरात्रि का धार्मिक अनुष्ठान पूरी आस्था और धार्मिक उल्लास के साथ पूरा हो गया। यह समुदाय के लिए धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है। जम्मू स्थित कश्मीरी पंडितों की सबसे बड़ी कॉलोनी जगती और समूचे जम्मू में बसे कश्मीरी पंडितों के घर-घर में पिछले एक हफ्ते से ही पूजा की तैयारी शुरू हो गई थी।

लोग घर की साफ-सफाई और पूजन सामग्री एकत्रित करने में व्यस्त थे। कश्मीर घाटी में बर्फ से ढंके पहाड़ और सेब तथा अखरोट के दरख्तों के बीच मनोरम प्राकृतिक वातावरण में यह पर्व मनाने वाले कश्मीरी पंडित अब छोटे-छोटे सरकारी क्वार्टरों और जम्मू की तंग बस्तियों में धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, 'हेरथ' शब्द संस्कृत शब्द हररात्रि यानी शिवरात्रि से निकला है।

नई मान्यता के अनुसार, यह फारसी शब्द 'हैरत' का अपभ्रंश है। कहते हैं कश्मीर घाटी में पठान शासन के दौरान कश्मीर के तत्कालीन तानाशाह पठान गवर्नर जब्बार खान ने कश्मीरी पंडितों को फरवरी में यह पर्व मनाने से मना कर दिया। अलबत्ता उसने सबसे गर्म माह जून-जुलाई में मनाने की अनुमति दी। खान को पता था कि इस पर्व का हिमपात के साथ जुड़ाव है।

शिवरात्रि पर जो गीत गाया जाता है, उसमें भी शिव-उमा की शादी के समय सुनहले हिमाच्छादित पर्वतों की खूबसूरती का वर्णन किया जाता है। इसलिए उसने जानबूझकर इसे गर्मी के मौसम में मनाने की अनुमति दी लेकिन गवर्नर समेत सभी लोग उस समय 'हैरत' में पड़ गए जब उस वर्ष जुलाई में भी भारी बर्फबारी हो गई। तभी से इस पर्व को कश्मीरी में 'हेरथ' कहते हैं।

पूरे घर की साफ-सफाई करके पूजास्थल पर शिव और पार्वती के दो बड़े कलश समेत बटुक भैरव और पूरे शिव परिवार समेत करीब दस कलशों की स्थापना की जाती है। पहले कुम्हार खासतौर पर इस पूजा के लिए मिट्टी के कलश बनाते थे लेकिन अब पीतल या अन्य धातुओं के कलश रखे जाते हैं। फूलमालाओं से सजे कलश के अंदर पानी में अखरोट रखे जाते हैं। तीन दिन तक तीन-चार घंटे तक विधिवित पूजा होती है। तीसरे दिन कलश को प्रवाहित करने का प्रचलन है।

पहले मिट्टी के कलश को झेलम में प्रवाहित किया जाता था। अब पास के जलनिकाय पर औपचारिकता की जाती है। कलश में रखे अखरोट का प्रसाद सगे-संबंधी आपस में बांटते हैं। कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर के अधिकारियों ने बताया कि सामाजिक अलगाववाद के बावजूद कश्मीरी पंडितों ने अपनी धार्मिक परंपरा को जीवंत रखा है।

उन्होंने कहा कि अपनी जड़ जमीन से बेदखल हमारे समुदाय से बच्चों की अच्छी शिक्षा और पूजा-पाठ की परंपरा को बचाए रखा। अभी भी देश-विदेश में बसे इस समुदाय की युवा पीढ़ी भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ यह धार्मिक पर्व मनाती है। इस त्योहार के दिन पूजन में प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तनों को प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

उपलब्धता के अनुरूप कई घरों में पुराने समय के पीतल के बर्तनों को प्रयोग में लाते हैं। इस पूजन व घरों में बनने वाले व्यंजनों में कमल ककड़ी और गांठगोभी काफी प्रमुख होती है। जम्मू-कश्मीर में इसे मोंजी और नदरू के नाम से जाना जाता है। कश्मीरी कैलेंडर के अनुसार, शिव परिवार की स्थापना की जाती है। पूर्व में स्थापित किए जाने वाले इन मंदिरों को ठोकुर कुठ कहा जाता था। यहीं पर भगवान शिव के परिवार को स्थापित किया जाता है। कलश और गागर में अखरोट भरे जाते हैं। वहीं पूजन में अखरोट के प्रयोग के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता है।

कहा जाता है कि अखरोट को चारों वेदों का प्रतीक माना जाता है। वहीं सोनिपतुल जिसे भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है, इसकी पूजा की जाती है। इसके साथ ही पंच तत्व (पंचामृत) स्नान के बाद महिमनापार के साथ फूल, बेलपत्र, धतुरे का अभिषेक किया जाता है। वहीं पूजन विधि पूरी होने के बाद कश्मीरी पंडित एक-दूसरे को 'हेरथ' की शुभकामनाएं देकर शिवरात्रि पर्व को पूरा करते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

LoC पर भारत-पाक सेनाओं में घमासान, 6 पाक सैनिक मार गिराए, आतंकी खदेड़े