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क्यों सुलग रही हैं दार्जिलिंग की खूबसूरत पहाड़ियां...

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, शुक्रवार, 16 जून 2017 (18:27 IST)
गोरखालैंड की मांग को एक बार फिर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने हवा दे दी है। दरअसल, दार्जिलिंग के स्कूलों में बंगाली भाषा पढ़ाने के ममता सरकार के फरमान से वर्षों से दबी आंदोलन की यह चिंगारी एक बार फिर भड़क गई है। आंदोलनकारियों का मानना है कि हमारी भाषा नेपाली है और हम पर जबरन बंगाली थोपी जा रही है। इसी के चलते पिछले कुछ दिनों से यह इलाका सुलगा हुआ है। दार्जिलिंग की खूबसूरत पहाड़ियां गोरखा आंदोलन की आग में झुलस रही हैं। 
 
क्या है मांग : गोरखालैंड की मांग करीब 110 साल पुरानी है। गोरखालैंड (जिसकी मांग आंदोलनकारी कर रहे हैं) पश्चिम बंगाल के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 6246 वर्ग किलोमीटर है। इसके अंतर्गत पश्चिम बंगाल के बनारहाट, भक्तिनगर, बिरपारा, चाल्सा, दार्जिलिंग, जयगांव, कालचीनी, कलिम्पोंग, कुमारग्राम, कुर्सियांग, मदारीहाट, मालबाजार, मिरिक, नागराकाट का क्षेत्र आता है। यह इलाका नेपाल और भूटान की सीमा से लगता है और यहां की बहुसंख्यक आबादी गोरखा है। गोरखालैंड की मांग को लेकर इससे पहले 1986 और 2007 में बड़े आंदोलन हो चुके हैं। ताजा आंदोलन की वजह है दार्जिलिंग के स्कूलों में बंगाली भाषा को पढ़ाने का फैसला। इस पूरे इलाके में गोरखाओं की आबादी 10 लाख से ज्यादा है। 
 
गोरखालैंड की मांग : हालांकि यह मांग काफी पुरानी है, लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले गोरखालैंड की मांग सुभाष घीसिंग ने की थी। 5 अप्रैल 1980 को सुभाष ने ही गोरखालैंड नाम दिया था। इसके बाद बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल बनाने पर राजी हुई। सुभाष घीसिंग ने गोरखा लिबरेशन फ्रंट की स्थापना की। 20 वर्षों तक अर्थात जब तक गोरखालैंड की मांग सुभाष ने उठाई तब तक आंदोलन शांतिपूर्ण था। सुभाष के बाद गोरखा लिबरेशन की जिम्मेदारी बिमल गुरुंग ने संभाली। कुछ समय बाद 2007 में गुरुंग ने गोरखा लिबरेशन फ्रंट से अलग होकर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसने गोरखालैंड की मांग को उग्र बना दिया। 
 
गोरखालैंड से संबंधित विवादित मुद्दे : गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग का कहना है कि बंगाल सरकार जबरन उन पर बंगाली थोप रही है जबकि उनकी भाषा नेपाली है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने शुरुआत में बंद एवं हड़ताल का सहारा लिया। इसने बिजली और पानी के बिल जमा करने से मना कर दिया। दरअसल, गोरखे मूलत: नेपाली हैं। 1865 में जब अंग्रेजों द्वारा चाय बागान स्थापित किए गए थे तो बहुत से लोग उत्तरी पश्चिम बंगाल में आकर बस गए। तब कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं थी, परंतु 1950 में भारत ने नेपाल के साथ समझौता करके सीमा का निर्धारण कर लिया।
 
कौन हैं बिमल गुरुंग : बिमल गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के चीफ एक्जीक्यूटिव भी हैं। जीटीए दार्जिलिंग और दूसरे पहाड़ी इलाकों की प्रशासनिक व्यवस्था को देखता है, जिसका गठन 2011 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलन के बाद ही हुआ था।

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