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मकान तो बहुत हैं लेकिन फिर भी घर क्यों नहीं...

हमें फॉलो करें मकान तो बहुत हैं लेकिन फिर भी घर क्यों नहीं...
, शुक्रवार, 29 मई 2015 (10:25 IST)
एक तरफ भारत में करोड़ों लोगों को सिर छिपाने के लिए छत उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर 1 करोड़ से ज्यादा मकान या फ्लैट खाली पड़े हैं। वह भी तब जब शहरों में प्रॉपर्टी की कीमत आसमान छू रही है। आखिर क्या है इन खाली घरों की हकीकत? क्यों नहीं रहता इनमें कोई? आइए, जानते हैं...
हाल ही में एक अंग्रेजी पत्रिका में छपी खबर ने यह दावा किया कि शहरी भारत में 1 करोड़ से ज्यादा मकान आज भी खाली पड़े हैं। सिर्फ इमारतों की तरह इनमें रहता कोई नहीं है।  
 
बीबीसी अंग्रेजी में छपी एक खबर के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच भारत के शहरी क्षेत्रों में परिवारों की संख्या 187 मिलियन से 247 मिलियन हो गई है, मतलब बीते 10 सालों में 60 मिलियन परिवार बढ़ गए, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस दौरान मकानों की संख्या नहीं बढ़ी।

2001 में जहां शहरों में मकानों की संख्या 250 मिलियन थी, वहीं 2011 में ये जाकर 331 मिलियन हो गई। मतलब जितने परिवार हैं उनसे ज्यादा मकान शहरी क्षेत्रों में मौजूद हैं। लेकिन विडंबना है कि फिर भी शहरों में रहने की जगह कम है।        
 
एक इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक भारत के शहरी परिवारों में अब भी 20 मिलियन मकानों की कमी है, लेकिन इसके पीछे कारण क्या है। आइए जानते हैं-    
 
कालाधन : शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर मकान वो लोग खरीद लेते हैं जिनके पास अनाप-शनाप पैसा होता है। दरअसल, वे इसे निवेश का एक माध्यम मानते हैं। इसका महत्वपूर्ण भाग यह है कि इसके बारे में कोई नहीं जानता ‍कि इस पैसे में कितना कालाधन है जिसमें टैक्स नहीं दिया गया।

ऐसे ही मकान खरीद लिए जाते हैं और बस मकान ही रह जाते हैं, इनमें रहने वाला कोई नहीं होता। फलस्वरूप प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने लगते हैं, क्योंकि हर वस्तु की तरह प्रॉपर्टी में भी 'मोर डिमांड मोर रेट' का नियम लागू होता है। 
 
शहरों में पॉपर्टी के दाम इतने बढ़ गए हैं कि अच्छे पैसे कमाने वाले लोगों को भी इस बारे में 10 बार सोचना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति मुंबई में आशियाना तलाश रहा है तो उसे इसके लिए अनुमानित 1.3 करोड़ रुपए तक खर्च करने होंगे, वहीं बेंगलुरु और दिल्ली में घर लेना चाहते हैं तो आपको क्रमशः अनुमानित 80 लाख और 74 लाख रुपए खर्च करने होंगे।
 
अगले पेज पर गरीबों का आशियाना बनती बस्तियां...  
 

शहरों में गरीबों का आशियाना बनती 'बस्तियां' : शहरों में घरों के महंगे होने से मिडिल और लोअर क्लास लोग गंदी बस्तियों में रहने को मजबूर हैं जिसके चलते लगातार शहरों में ये बस्तियां बढ़ रही हैं। 2011 में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत के शहरों में 13.7 करोड़ परिवार बस्तियों में रहते हैं।

इन बस्तियों में रह रहे लोगों की संख्या करीब 65 करोड़ है, जो शहरी जनसंख्या का 17.4 प्रतिशत है, वहीं 2012 में प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि मुंबई में 60 प्रतिशत बस्तियों में रह रही आबादी 8 प्रतिशत भू-भाग में रह रही है। 
 
सरकार क्या कर सकती है? : सरकार को इस संबंध में कदम तो उठाने ही होंगे, चाहे आज उठाए या कुछ दिनों बाद। लेकिन सरकार क्या कर सकती है, जरा इस पर नजर डालते हैं। 
 
ये हो सकता है कि हमारी सरकार दक्षिण कोरिया के कदमों पर चलते हुए लोगों को आशियाना दिलाए। दरअसल, दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के चारों ओर वहां की सरकार ने 1980 में वहां के गरीब लोगों के लिए 20 लाख घर बनवाए थे। हो सकता है कि भारत सरकार भी ऐसा करे।
 
लेकिन ऐसा करने के लिए सरकार को भूमि को बेचने व खरीदने को लेकर जो गड़बड़-घोटाला मचाया जा रहा है इसको नियंत्रित करने की जरूरत होगी। शहरों के आसपास जब ऐसे घर बनाए जाएंगे तो यातायात के साधन भी बढ़ाने होंगे।

दरअसल, यह हो सकता है बशर्ते सरकार इस बात को गंभीर रूप में अभी से लेने लगे, क्योंकि भारत में अभी 30 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है और 2030 तक शहरों में इसका प्रतिशत 50 हो जाएगा। अगर ऐसे में सरकार सही कदम उठाने में नाकाम रहती है तो शहरी क्षेत्रों में सिर्फ बस्तियां ही नजर आएंगी।

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