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क्या चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर का जवाब होगा आईएनएसटी गलियारा?

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नई दिल्ली , मंगलवार, 11 अप्रैल 2017 (15:20 IST)
नई दिल्ली। चीन-पाकिस्तान के आर्थिक कॉरिडोर के जवाब में भारत और रूस ने ईरान और यूरोप  को जोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीकॉरिडॉर) चीन और पाकिस्तान के लिए बड़ा धक्का साबित होगा।
 
एक अंग्रेजी पोर्टल द रिसर्जेंट इंडिया में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि चीन की 'वन  बेल्ट, वन रोड' प्रोजेक्ट के जवाब में भारत ने ईरान होते हुए यूरेशिया को जोड़ने वाली परियोजना  पर काम आगे बढ़ा दिया है। ‘अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ यानी (आईएनएसटीसी)  पर इसी महीने ग्रीन कॉरीडोर (स्मूथ कस्टम फैसिलिटेशन) पर कंटेनर आवाजाही का पूर्वाभ्यास  शुरू किया जा रहा है। मौजूदा रास्ते के मुकाबले यह नया कॉरिडोर 40 फीसदी छोटा होगा और  इससे माल ढुलाई की लागत में 30 फीसदी की कमी आ जाएगी।
 
इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि भारत-रूस को जोड़ने वाला आईएनएसटी कॉरिडोर क्या चीन  की ‘वन बेल्ट वन रोड’ का जवाब बन सकेगा?
 
आएनएसटीसी रेल, रोड और समुद्री परिवहन वाला 7,200 किमी लंबा रास्ता है। इसके पूरी तरह  संचालित हो जाने पर भारत और यूरेशिया के बीच सामानों की आवाजाही की अवधि और लागत  कम हो जाएगी। इससे भारत, रूस और यूरोपीय देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय कारोबार में काफी बढ़ोतरी  होने की भी उम्मीद है।
 
दो दिन बाद 13 अप्रैल को भारत और रूस के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के 70 साल  पूरे होने जा रहे हैं। इस मौके पर पूरे साल कई समारोह आयोजित किए जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी की जून में होने वाली रूस यात्रा के समय उम्मीद की जा रही है कि वह आईएनएसटीसी के  प्रवेश स्थल ‘ऐस्ट्रकेन’ जाएंगे।
 
इस कॉरीडोर के विकसित होने से रूस, ईरान, मध्य एशिया, भारत और यूरोप के बीच व्यापार को  बढ़ावा मिलेगा। इससे सामानों की आवाजाही में समय और लागत की बचत होगी। एक सर्वेक्षण के  अनुसार यह रास्ता मौजूदा रास्ते के मुकाबले 40 प्रतिशत छोटा होगा और इससे सामान भेजने की  लागत में 30 फीसदी कमी आएगी। पिछले अक्टूबर में इस मार्ग पर आवाजाही का परीक्षण हुआ।  इसमें करीब 20 दिन लगे जबकि अभी इसमें 40 दिन लगते हैं।
 
उधर, चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना के जरिए यूरोप, एशिया और अफ्रीका में आपसी संपर्क  स्थापित करने की पहल कर रहा है। हालांकि, भारत उसकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर  सावधानी बरत रहा है क्योंकि इसमें पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान  इकनॉमिक कॉरिडोर भी शामिल है। भारत इस कॉरिडोर को अपनी संप्रभुता के लिए चुनौती मानता  है और उसने इसके खिलाफ आपत्ति भी दर्ज कराई है।


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