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सीमा पर माहौल बिगड़ा, दांव पर सीजफायर

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। भारतीय सेना द्वारा पाक सेना को ‘दंड’ देने की खातिर एलओसी पर लगातार पाक सीमांत चौकियों और बंकरों को नेस्तनाबूद करने की कार्रवाई के बाद यह अब स्पष्ट हो गया है कि 26 नवंबर, 2003 से सीमाओं पर जारी सीजफायर अब समाप्त हो जाएगा। नतीजतन सीमावासियों ने भावी आशंका के चलते अपना बोरिया-बिस्तर बांधना आरंभ किया है, क्योंकि उन्हें यकीन हो गया है कि सीजफायर को बचाने की खातिर उनकी कोई दुआ अब काम नहीं आएगी।
 
हालत यह है कि नौशहरा और नौगाम में भारतीय सेना कर कार्रवाई के बाद जम्मू के भूरे चक इलाके से लेकर कारगिल के अंत तक की पाकिस्तान से सटी 814 किमी लंबी एलओसी और जम्मू फ्रंटियर के 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बार्डर पर ‘मुर्दा शांति’ का माहौल है। यह मुर्दा शांति दोनों सेनाओं के युद्ध के लिए तैयार रहने के निर्देशों के बाद बनी हुई है जिसके चलते सीमावासियों ने बोरिया-बिस्तर समेटना शुरू कर दिया है क्योंकि अब उन्हें लगने लगा है कि इस साल 26 नवंबर को 14 साल पूरे करने जा रहा सीजफायर किसी भी समय अब दम तोड़ सकता है।
 
रक्षा सूत्रों के मुताबिक, 21 और 22 मई को नौगाम में भारतीय सेना ने पाक सेना के कई बंकर और सीम चौकियों को मिसाइलों के हमलों से उड़ा दिया था। इस हमले के बाद सबसे भीषण गोलाबारी की शंका सीमावासियों को अन्य सेक्टरों में भी आरंभ होने की आशंका है। सीमावासी जानते हैं कि पाक सेना इस हमले के बाद बिफरी हुई है और वह किसी भी समय एलओसी तथा इंटरनेशनल बॉर्डर पर अपने तोपखानों के मुंह खोल सकती है। जानकारी के लिए 26 नवम्बर 2003 को सीमाओं पर आरंभ हुआ सीजफायर इस साल 26 नवबर को 14 साल पूरे करने जा रहा है पर अब सभी को लगता है कि इस जघन्य हमले के बाद यह सीजफायर शायद ही अपना 14वां जन्मदिन मना पाएगा।
 
इन 14 सालों में पाक सेना ने सीजफायर की इज्जत हमेशा तार-तार की है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि पाक सेना ने हमेशा सीजफायर को तोड़ने की खातिर उकसाने वाली कार्रवाइयों को अंजाम देते हुए इन 14 सालों में हजारों बार सीमा तथा एलओसी पर गोलों की बरसात की है।
 
पिछले साल का ही आंकड़ा लें, 405 बार पाक सेना ने गोले बरसाए जिसमें 17 नागरिक मारे गए और 71 जख्मी हो गए। इनमें से 253 बार इंटरनेशल बार्डर पर और 152 बार एलओसी पर गोलों की बरसात की जबकि 15 हजार से अधिक लोगों को बार-बार अपना घर बाहर छोड़ना पड़ा।
 
अब तो लाखों लोगों ने घरों को त्यागने की तैयारी कर ली है। वे जानते हैं कि जब भी ऐसे किसी हमले के बाद प्रतिकार की बात होती है, प्रतिकार तो होता नहीं है पर वे उजड़ जाते हैं। वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम के दौरान तो वे पूरे तरह से उजड़ गए थे और इस बार फिर उन्हें डर इसी बात का है कि पकी हुई फसलों को भी वे शायद ही काट पाएंगे।
 

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