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अब याद आए चश्मे वाले लंगूर...

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बिलबाड़ी , शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015 (15:16 IST)
बिलबाड़ी। भारत और बांग्लादेश ने ‘चश्मे वाले लंगूर’ के साथ-साथ असम के करीमगंज जिले से लगी बाड़ वाली सीमा के पास ‘पठारिया हिल्स रिजर्व फॉरेस्ट’ में पाए जाने अन्य नर-वानरों को संरक्षण के लिए समन्वित प्रयास करने का फैसला किया है।
 
करीमगंज के उपायुक्त संजीव गोहैन बरुआ ने उनकी और कछार जिले के उपायुक्त की बांग्लादेश के सिलहट एवं मौलवी बाजार जिलों के अपने समकक्षों के साथ पिछली बैठक में यह निर्णय किया गया।
 
बताया कि पठारिया हिल्स रिजर्व फॉरेस्ट में पाए जाने वाले ‘चश्मे वाले लंगूर’, हूलॉक गिबॅन और गोल्डन लंगूर की प्रजाति लुप्त होने के कगार पर है। यह क्षेत्र दोनों देशों में फैला है और इसके मध्य से सीमा की कांटेदार बाड़ गुजरती है।
 
गोहैन के अनुसार रिहायशी क्षेत्र में आ रही कमी से जंगल में इस वन्यजीव की उपस्थिति के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
 
इस क्षेत्र में चश्मे वाले लंगूर बहुतायत में देखे जा सकते हैं। बहरहाल, समग्र सर्वेक्षण अभी किया जाना है लेकिन जंगल में हूलॉक गिबॅन और गोल्डन लंगूर के समूह भी नजर आते हैं।
 
गोहैन ने बताया कि संरक्षण संबंधी प्रयासों में इन प्राणियों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए उनकी रिहाइश को सुरक्षित रखना और आसपास के गांवों में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों से जलाने की लकड़ी के लिए जंगलों को नष्ट न करने का आग्रह करना मुख्य है।
 
उन्होंने कहा कि इस सेक्टर के साथ-साथ भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफकर्मियों से भी यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया जाएगा कि जंगल संरक्षित रहें ताकि यह मानव सदृश्य नजर आने वाले प्राणियों के लिए पनाहगाह बना रहे।
 
पठारिया हिल्स रिजर्व फॉरेस्ट भारतीय हिस्से में 7647.30 हैक्टेयर से अधिक भू-भाग में फैला है। करीमगंज की पश्चिमी सीमा पर यहां प्राकृतिक वन है और 2 ब्लॉक- पठारिया ए तथा बी इसमें आते हैं।
 
संभागीय वन अधिकारी एस. अहमद ने बताया वन में कई जगहों पर झरने हैं जिनसे पानी बहता है और कछार की मिट्टी होने की वजह से पेड़-पौधों का विकास तेजी से होता है।
 
आमतौर पर चश्मा बंदर कहलाने वाले ये लंगूर सदाबहार वन, बांस के वन और पठारिया से लगे पहाड़ी इलाकों वाले वन में बहुतायत में पाए जाते हैं। इन लंगूरों के चेहरे में आंखों के आसपास और ऊपरी तथा निचले होंठ के आसपास सफेद घेरे होते हैं।
 
बांस की कोमल शाखाएं और पत्तियां इनका मुख्य भोजन होती हैं और कभी-कभी तो ये 1 दिन में बांस के एक पेड़ पर बैठे-बैठे उसकी 80 फीसदी पत्तियां और 30 फीसदी फल तक खा जाते हैं। (भाषा) 
 

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