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भारतीय अर्थव्यवस्था के जेम्स बांड 'रघुराम राजन'

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मुंबई , रविवार, 19 जून 2016 (12:16 IST)
मुंबई। आरबीआई गवर्नर विरले ही बेबाक होते हैं, लेकिन रघुराम राजन अनोखे थे जिन्होंने जेम्स बांड शैली में कभी कहा था- 'मेरा नाम राजन है और मैं जो करता हूं वो करता हूं' और आर्थिक से लेकर राजनीतिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखते थे। जितना वे बोलने में बिंदास थे उतना ही आर्थिक सुधारों के लिए भी कटिबद्ध। 
 
अपनी प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए राजन ने खुद ही अपने दूसरे कार्यकाल के लिए मना करके इस बारे में लेकर लगाई जा रही तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया। लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वह महंगाई पर रोक लगाने और बैंकों के रिकॉर्ड को साफ करने के अपने अधूरे काम को देखने के लिए तैयार हैं।
 
गोमांस खाने की अफवाह को लेकर एक मुस्लिम की हत्या के बाद उठा असहिष्णुता का मुद्दा हो या भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना अंधों में काना राजा से करने की हो, सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों पर सवाल उठाना हो या नए जीडीपी आंकड़ों पर सवाल खड़े करना हो राजन अक्सर बेबाकी से बोलते थे और सरकार की पसंद के अनुसार बात नहीं करते थे।
 
ब्रेक्जिट की तर्ज पर राजन के आरबीआई गवर्नर बने रहने की अटकलों पर एक नया शब्द रेक्जिट गढ़ा गया था। ब्रेक्जिट शब्द का इस्तेमाल इस बात पर होने वाले मतदान के लिए हो रहा है कि ब्रिटेन यूरोप में बना रहेगा या नहीं।
 
जब राज्यसभा में भाजपा के सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आरबीआई गवर्नर पर हमला करते हुए सवाल किया कि क्या राजन मानसिक तौर पर पूरी तरह भारतीय हैं तो आईएमएफ के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा कि वह निजी हमलों का जवाब नहीं देंगे और इस तरह के बुनियादी तौर पर गलत और निराधार आरोपों को वैधता नहीं प्रदान करेंगे।
 
अमेरिका का ग्रीनकार्ड रखने को लेकर अपनी भारतीयता पर सवाल किए जाने पर राजन ने कहा कि भारतीयता, अपने देश के प्रति प्रेम एक जटिल विषय है। अपने देश के प्रति सम्मान दिखाने का हर व्यक्ति का अपना-अपना अलग तरीका है। मेरी सास कहती हैं कि कर्मयोगी अभी सफर बाकी है---अपना काम करो। केंद्रीय बैंक में अपने तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान राजन ने नियमित तौर पर बेबाक भाषण दिए और महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने मन की बात शैक्षणिक संस्थानों में रखी।
 
गोमांस खाने के आरोप में एक मुस्लिम व्यक्ति की पीट-पीटकर की गई हत्या के बाद सहिष्णुता के समर्थन में उतरते हुए आईआईटी-दिल्ली जहां से उन्होंने पढ़ाई की थी, वहां उन्होंने कहा था कि सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान विचारों के वातावरण में सुधार के लिए जरूरी हैं और शारीरिक नुकसान या किसी खास समुदाय के लिए वाचनिक तिरस्कार की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
 
सरकार के साथ महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति पर हस्ताक्षर करने के दिन राजन ने हिटलर के शासनकाल का उल्लेख करते हुए कहा था कि मजबूत सरकारें हमेशा सही दिशा में नहीं बढ़ेंगी।

जिस तरह उन्होंने मौद्रिक नीति में बैंकों को रेपो दर में हुए बदलावों का फायदा आम आदमी तक पहुंचाने के लिए मजबूर किया उसने उन्हें हीरो बना दिया। भले उनके इस ऐलान से भाजपा और सुब्रमण्यम स्वामी खुश हो पर अर्थशास्त्रियों की नजर में यह अच्छी खबर नहीं है। (भाषा/वेबदुनिया) 
 
 


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