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और सक्रिय होगी 'तफहीम-ए-शरीयत कमेटी'

हमें फॉलो करें और सक्रिय होगी 'तफहीम-ए-शरीयत कमेटी'
लखनऊ , सोमवार, 15 सितम्बर 2014 (18:07 IST)
लखनऊ। शरई कानूनों को लेकर व्याप्त गलतफहमियों को दूर करने और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दे उठाकर समाज में वैमनस्य फैलाने की कोशिशों का मुकाबला करने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ‘तफहीम-ए-शरीयत कमेटी’ अपनी गतिविधियां और तेज करेगी।
बोर्ड की तरफ से ‘निकाह से जुड़े इस्लामी कानून, बहुविवाह और गोद लेने संबंधी मसायल’ विषय पर रविवार रात यहां आयोजित सेमिनार में यह लब्बोलुआब निकाला गया कि शरीयत के विभिन्न पहलुओं को लेकर लोगों में फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी अपनी गतिविधियां बढ़ाएगी।
 
बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि सेमिनार में वक्ताओं ने हाल के दिनों में ‘लव जिहाद’ जैसे गैर इस्लामी मसले को मुद्दा बनाए जाने, नई पीढ़ी में इस्लाम के प्रति नफरत फैलाने की कोशिशों, मीडिया में शरई कानूनों को लेकर तरह-तरह की गलत रिपोर्टिंग, अदालतों में भी शरई नजरिए को गलत तरीके से पेश किए जाने पर चिंता जाहिर की। 
 
साथ ही कहा गया कि गैर मुस्लिमों में भी शरई कानूनों को लेकर तरह-तरह की गलतफहमियां हैं जिन्हें फौरन दूर करने की जरूरत है। इसके लिए तफहीम-ए-शरीयत कमेटी अपनी गतिविधियां और बढ़ाएगी।
 
उन्होंने बताया कि यह कमेटी खासकर मुस्लिम वकीलों को निकाह, दांपत्य जीवन, बहुविवाह और गोद लेने समेत तमाम शरई उसूलों के बारे में गोष्ठियों, किताबों और पुस्तिकाओं के जरिए जानकारी दी जाएगी ताकि वे शरीयत की रोशनी में अदालत में अपनी बातें कह सकें।
 
मौलाना फरंगी महली ने बताया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड लखनऊ के अलावा मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली और अलीगढ़ में ऐसे सेमिनार आयोजित कर चुका है। अगले महीने इलाहाबाद में यह सेमिनार होगा। अगले साल फरवरी तक ऐसे करीब 6 कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 
 
मौलाना ने बताया कि वक्ताओं ने सेमिनार में कहा कि बहुविवाह के बारे में लोगों में तरह-तरह की गलतफहमियां हैं। सिर्फ कुरान शरीफ में ही शादियों की अधिकतम संख्या तय की गई है। साथ ही ताकीद की गई है कि अगर किसी शख्स को यह लगे कि वे अपनी चारों बीवियों के साथ बराबर का इंसाफ नहीं कर सकेगा तो उसे सिर्फ एक ही निकाह करना चाहिए। इस्लाम में एक से ज्यादा निकाह करने को कोई बढ़ावा नहीं दिया गया है, सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही इजाजत दी गई है।
 
वक्ताओं ने कहा कि मुसलमानों पर एक से ज्यादा शादियां करने का इल्जाम लगाया जाता है, लेकिन सचाई यह है कि एक से ज्यादा शादियां मुस्लिम कम और गैर मुस्लिम ज्यादा कर रहे हैं। वर्ष 1961 से 1991 के बीच की विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक एक से ज्यादा विवाह करने वाले गैर मुस्लिमों का प्रतिशत 6.5 है जबकि ऐसा करने वाले मुस्लिम 3.14 फीसद ही हैं।
 
वक्ताओं ने कहा कि शरई कानून में गोद लेने को लेकर काफी गलतफहमियां फैलाई गई हैं। सचाई यह है कि कोई भी शख्स बच्चे को गोद ले सकता है और उसे अपनी जायदाद में से जो चाहे दे भी सकता है, लेकिन चूंकि उससे इस्लाम के महरम और नामहरम के मसले प्रभावित होते हैं इसलिए गोद लिए हुए बच्चे को वास्तविक बेटे या बेटी का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
 
सेमिनार में नदवतुल उलमा के प्रधानाचार्य मौलाना सईदुर्रहमान आजमी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला सदस्य डॉक्टर नसीम इक्तिदार अली, सफिया नसीम और रुखसाना लारी तथा बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी भी मौजूद थे। (भाषा)

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