Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

वैष्णो देवी गुफा पर भी मंडरा रहा खतरा!

हमें फॉलो करें वैष्णो देवी गुफा पर भी मंडरा रहा खतरा!
webdunia

सुरेश डुग्गर

, बुधवार, 24 अगस्त 2016 (17:44 IST)
जम्मू। वैष्णो देवी तीर्थस्थल पर आने वाले के लिए यह खबर बुरी हो सकती है कि अगर किसी दिन उन्हें यह समाचार मिले कि जिस गुफा के दर्शनार्थ वे आते हैं वह ढह गई है तो कोई अचम्भा उन्हें नहीं होना चाहिए। ऐसी चेतावनी किसी ओर द्वारा नहीं बल्कि भू-वैज्ञानिकों द्वारा कई बार दी जा चुकी है जिनका कहना है कि अगर उन त्रिकुटा पहाड़ियों पर, जहां यह गुफा स्थित है, विस्फोटों का प्रयोग निर्माण कार्यों के लिए इसी प्रकार होता रहा तो एक दिन गुफा ढह जाएगी।
हालांकि जिस प्रकृति के साथ कई सालों से खिलवाड़ हो रहा था उसने आखिर अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ सालों के भीतर इस तीर्थस्थल के यात्रामार्ग में होने वाली भूस्खलन की कई घटनाएं एक प्रकार से चेतावनी हैं उन लोगों के लिए जो त्रिकुटा पर्वतों पर प्रकृति से खिलवाड़ करने में जुटे हुए हैं। यह चेतावनी कितनी है इसी से स्पष्ट है कि भवन, अर्द्धकुंवारी, हात्थी मत्था, सांझी छत और बाणगंगा के रास्ते में होने वाली भूस्खलन की कई घटनाएं अभी तक 80 श्रद्धालुओं को मौत की नींद सुला चुकी हैं।
 
भूस्खलन की इन घटनाओं के बारे में भू-वैज्ञानिक अपने स्तर पर बोर्ड को अतीत में सचेत करते रहे हैं कि गुफा के आसपास के इलाके में कई सालों से जिस तेजी से निर्माण कार्य हुए हैं उससे पहाड़ कमजोर हुए हैं। इन वैज्ञानिकों की यह सलाह थी कि बोर्ड को सावधानी के तौर पर भू-विशेषज्ञों व अन्य तकनीकी लोगों से पहाड़ों-चट्टानों की जांच करवाकर जरूरी कदम उठाने चाहिए क्योंकि इसे भूला नहीं जा सकता कि हिमालय पर्वत श्रृखंला की शिवालिक श्रृंखला कच्ची मिट्टी (लूज राक) से निर्मित है।
 
दरअसल पिछले 30 सालों के दौरान जिस गति से गुफा के आसपास के इलाके में बोर्ड ने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू करा रखे हैं उससे गुफा के आसपास के पहाड़ों और वनों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। निर्माण कार्य के लिए पहाड़ों को विस्फोटक सामर्गी से सपाट बनाने की प्रक्रिया निरंतर जारी है जिससे आसपास के पर्वत खोखले हो रहे हैं और भूस्खलन का खतरा बढ़ा है। आसपास के जंगलों के बर्बाद होने से स्थिति और खतरनाक हुई है।
 
गुफा के आसपास के इलाके में जो घना वन कुछ साल पहले तक था, वह गायब है। अब केवल नंगे पहाड़ हैं। पेड़ कहां गए इसके बारे में बोर्ड के अधिकारी पूछने पर चुप रहते हैं या फिर गर्मियों में वनों में आग लगने को कारण बताते हैं। हर वर्ष आग क्यों लगती है यह कोई अधिकारी बता पाने की स्थिति में नहीं है। और आग न लग सके इसके लिए क्या कदम उठाए गए हैं इस बारे में भी बोर्ड खामोश है।
 
गौरतलब है कि बोर्ड की जिम्मेवारी यात्रा प्रबंधों के साथ-साथ यह भी है कि गुफा के आसपास के वनों व प्राकृतिक खूबसूरती को आंच न आए। आसपास के पहाड़ों और वनों पर राज्य वन विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है। वनों को सुरक्षित रखना बोर्ड की ही जिम्मेवारी है। वर्ष 1986 में तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने बोर्ड का गठन किया था तो वनों व आसपास की त्रिकुटा पहाड़ियों का नियंत्रण बोर्ड को देने का एक मात्र कारण यह भी था कि विभिन्न एजेंसियों के रहने से गुफा के आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को हानि पहुंच सकती है। इसलिए बोर्ड को ही सारा नियंत्रण सौंपा गया। लेकिन इस अधिकार का बोर्ड ने गलत मतलब निकाला और जब चाहा वनों के साथ-साथ त्रिकृटा पहाड़ियों को नुक्सान पहुंचाया। अगर ऐसा न होता तो गुफा के आसपास का इलाका जो कुछ साल पहले संकरा था वह आज मैदान जैसा कैसे बन गया।
 
यही नहीं कुछ साल पहले भू-वैज्ञानिकों ने हिमालय पर्वत श्रृंखला का गहराई से अध्ययन कर यह मत निकाला था कि त्रिकुटा पर्वत हिमालय का वह हिस्सा है जिसकी उम्र काफी कम है और जो अभी कच्चे हैं। वैज्ञानिकों का मत था कि इन पर्वतों के साथ अधिक छेड़छाड़ खतरनाक साबित हो सकती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राहुल गांधी को मानहानि मामले में राहत के संकेत