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क्या होगा जब नरेन्द्र मोदी आएंगे...?

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वर्ष 2004 में भले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का नारा इंडिया शाइनिंग का नारा असरदार तरीके से 'शाइन' नहीं कर पाया हो, लेकिन इस बार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी शाइन कर रहे हैं।
 
'अबकी बार मोदी सरकार' की उम्मीद के चलते बाजारों में तेजी का रुख दिख रहा है तो सट्‍टा बाजार ने 16 मई से पहले ही मोदी को भावी प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है।
 
जब मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पक्की हो गई थी तभी अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश और अन्य देशों के मंत्रियों और राजनयिकों ने मोदी से मुलाकात अपने देश का पक्ष रखने की कोशिश की थी। यहां तक कि भारत के कट्‍टर दुश्मन और मोदी के कटु आलोचक पाकिस्तान को भी मोदी से कुछ सकारात्मक उम्मीदें हैं।
 
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने विकास के 'गुजरात मॉडल' की काफी प्रशंसा की और कहा कि वे समूचे देश को गुजरात मॉडल की तर्ज पर विकसित करना चाहते हैं। अपने भाषणों में उन्होंने कांग्रेस के 60 वर्ष के शासन के बाद उन्हें 60 महीने देने की बात कही है।
 
मोदी अगर प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो वे देश की तकदीर और तस्वीर को किस हद तक बदलने में सफल हो सकते हैं? उनके आने के बाद देश और विभिन्न समाजों, वर्गों और क्षेत्रों पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है? आइए देखते हैं
मोदी को लेकर मुस्लिमों की आशंकाएं... पढ़ें अगले पेज पर...

मुस्लिमों की आशंकाएं : मोदी को लेकर अगर देश का कोई वर्ग और समाज सबसे ज्यादा आशंकित है तो वह है मुस्लिम समुदाय। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों ने मोदी को मुस्लिम समाज की नजर में एक बड़ा खलनायक बना दिया है।

भले ही गुजरात के मुस्लिमों की राय इससे थोड़ी बहुत अलग है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता का‍ निरंतर जाप करने वाली कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए मोदी वह हौव्वा हैं जिससे मुस्लिमों को डराकर रखा जा सकता है।

ऐसे में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुस्लिमों में उन पर अविश्वास बढ़ेगा या कम होगा? जबकि इस दौरान मोदी यह दिखाने की ‍कोशिश करेंगे कि उनकी सरकार या वे किसी भी धर्म, वर्ग या सम्प्रदाय के खिलाफ नहीं हैं और वे अल्पसंख्यकों को देश की मुख्यधारा में शामिल करना चाहते हैं।

अब तक मुस्लिमों के मतों को लेकर उनका कोई भी रुख रहा हो, लेकिन अब उनकी समझ में आ गया है कि वे इतनी बड़ी संख्या में मौजूद अल्पसंख्यकों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उनके 7, रेस कोर्स के सपने में बाधा आ सकती है।

हालांकि जानकार राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मुस्लिमों को लेकर मोदी के रुख में कोई खास परिवर्तन नहीं आएगा, क्योंकि वे संघ से गहरे जुड़े रहे हैं और उनकी सोच में बदलाव संभव नहीं लगता।

इतना ही नहीं, कुछ लोगों का तो कहना है कि मोदी का अल्पसंख्‍यकों ही नहीं, वरन पिछड़े और शोषित वर्गों को भी उनसे अधिक उम्मीद नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे पूंजीपतियों के पक्षधर हैं और उनके राज्य में क्रोनी कैपिटलिज्म खूब फला-फूला है।

वे गुजरात की तर्ज पर देश का विकास करना चाहेंगे और वे पूंजी और संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों में सौंप देंगे जबकि इसके परिणामस्वरूप आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हिंसा फैलेगी, समस्याएं पैदा होंगी और इसके चलते देश अस्‍थिर भी हो सकता है।

देश की राजनीति में बदलाव : मोदी के भारतीय राजनीति के केंद्र में आने के बाद बहुत सारे परिवर्तन होंगे और मोदी विरोधी सभी दल उन्हें सांप्रदायिक करार देंगे और खुद को धर्मनिरपेक्ष बताएंगे और इसका परिणाम यह होगा कि सांप्रदायिकता के मुद्दे पर भारतीय राजनीति में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज होगी।

इससे भारतीय राजनीतिक संस्कृति प्रभावित होगी और अभी तक जो गुप्त समझौतों की संस्कृति रही है, उसका तेजी से क्षरण होगा। राजनीति में ऐसे लोगों को कमी नहीं है, जो कि मोदी को अशिष्ट मानते हैं। वे यह मान सकते हैं कि विभिन्न दलों की तालमेल की संस्कृति पर बुरा असर पड़ेगा। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए भी शुभ नहीं होगी।

कैसे होंगे मोदी और भाजपा के रिश्ते... पढ़ें अगले पेज पर...


मोदी और भाजपा के रिश्ते : मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी कार्यशैली और प्रभावी होगी और वे अपने विरोधियों पर दबाव डालकर अपनी मनमानी कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किए जाने के साथ ही उन्होंने संघ पर दबाव बनाकर आडवाणी, जोशी को हाशिए पर डाल रखा है। अब सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और स्मृति ईरानी जैसे नेताओं की ताकत बढ़ेगी।

उनके बारे में यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह गुजरात में उन्होंने सत्ता के सारे सूत्र अपने पास रखे, यही बात वे केंद्रीय नेतृत्व में चाहेंगे। उनके प्रभावी रहते पार्टी संगठन और सरकार में कोई भी दूसरा पॉवर सेंटर नहीं उभर सकेगा।

मोदी के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि वे अपने सामने कोई दूसरा पॉवर सेंटर नहीं बनने देते हैं और उन्होंने कई मामलों में तो विश्व हिन्दू परिषद क्या, वरन संघ के नेताओं की भी बात नहीं सुनी है।

इसका कारण संघ का एक धड़ा चाहता था कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाया जाए लेकिन इसके बावजूद वे ऐसा करवाने में सफल रहे। हालांकि मोदी ने पार्टी की केंद्रीय राजनीति में जो चाहा, वह कर लिया है इसलिए इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वे अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कोई दूसरा पॉवर सेंटर उभरने देंगे।

गुजरात में उनके काम करने का तरीका बताता है कि वे अपने साथियों को ‍अधिक महत्व नहीं देंगे और चाहेंगे कि केंद्र की पूरी सत्ता उनके हाथों में केंद्रित रहे। हालांकि गुजरात में वे अपने विरोधियों का जड़-मूल से सफाया करने में कामयाब रहे लेकिन केंद्र में ऐसा कहां तक कर पाते हैं, यह दिल्ली में उनकी कार्यशैली को देखकर समझा जा सकेगा।

भविष्य में शिवराज सिंह और रमन सिंह जैसे मुख्यमंत्रियों से भी चुनौती मिल सकती है, क्योंकि चुनावी राजनीति में ये दोनों भी मोदी से थोड़ा ही पीछे हैं।

मोदी और संघ के रिश्ते कैसे रहेंगे... पढ़ें अगले पेज पर...


मोदी और संघ के रिश्ते : मोदी को लेकर संघ खुश भी है, दुखी भी है और आशंकित भी है। खुशी का कारण है कि उसका एक प्रचारक भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। दुख का विषय यह है कि उसने संघ जैसे संगठन को भी झुकाने में सफलता पाई है। आशंकित इसलिए कि मोदी ने गुजरात ने संघ और इससे जुड़े संगठनों को महत्वहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

विश्व हिन्दू परिषद या संघ से जुड़े कई अन्य संगठन सभी मोदी के नाम को लेकर रोते हैं, क्योंकि उनके राज्य में इन संगठनों का न तो सरकार पर दबाव रहा और न ही प्रशासन पर। ये सभी अपने को उपेक्ष‍ित महसूस करते हैं।

संघ को डर है कि अगर मोदी केंद्र में आ गए तो वे संघ को दरकिनार करने के भी उपाय करेंगे। उनकी इस कार्यशैली से नाराज संघ के कई नेता नहीं चाहते थे कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए, लेकिन अंतत: मोदी की ही चली।

संघ के कुछ नेताओं का मानता है कि अपने को धर्मनिरपेक्ष दिखाने के चक्कर में मोदी संघ के संगठनों और उनके प्रभाव को समाप्त करने का कोई अवसर नहीं छोड़ेंगे।

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