Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नरेंद्र मोदी यात्रा : अमेरिका एक हिन्दू देश है...

हमें फॉलो करें नरेंद्र मोदी यात्रा : अमेरिका एक हिन्दू देश है...
, गुरुवार, 25 सितम्बर 2014 (16:10 IST)
121 वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए थे और आज नरेंद्र दामोदर मोदी अमेरिका गए हैं। नरेंद्र मोदी की योग और ध्यान में गहरी रुचि है और उन्होंने अपने जीवन का कुछ समय संन्यासी रहकर भी बिताया है। विवेकानंद के जाने से लेकर तब से लेकर अब तक सबकुछ बदल चुका है। अमेरिका कई वर्षों पहले ही भौतिकवाद से ऊब गया है, लेकिन भारत में अब भौतिकवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। अमेरिका भारत की राह पर चल पड़ा है और भारत भौतिकवादी अमेरिका की राह पर। हम में से कुछ तथाकथित बुद्धिवादी, धर्मांतरित और साम्यवादी लोग हिन्दू धर्म और इसकी परंपरा व त्योहारों को गाली बकते हैं। यही हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है। लेकिन सच तो यह है कि आध्यात्मिक रूप से अमेरिका की आत्मा अब भारतीय होती जा रही है। कुछ तो अब कहने लगे हैं कि अमेरिका एक हिन्दू देश है...
 
 
भारत ने ज्ञान, धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में हमेशा से हर देश को मात दी, लेकिन आज भारत हर देश का अनुसरण करने लगा है। प्राचीन ग्रीक और योरपीयन दर्शन पर स्पष्ट रूप से भारतीय वेद और दर्शन का प्रभाव देखा जा सकता है। मध्यकाल में अमेरिका, रशिया, चीन और ब्रिटेन ने भारतीय ज्ञान के बल पर ही खुद का दर्शन और विज्ञान खड़ा किया।
 
लगभग 2 करोड़ से ज्यादा अमेरिकन योग और ध्यान करते हैं और उनकी हिन्दू और बौद्ध धर्म में गहरी आस्था है। ये वे अमेरिकी हैं जिनका भारत से कोई संबंध नहीं है, लेकिन वैदिक संस्कृति के प्रभाव से वैदिक जीवन जीने वाले हिन्दू बने हैं। इनका किसी भी रूप में कोई धर्मांतरण नहीं किया गया फिर भी ये सभी हिन्दू धर्म में गहरी आस्था रखते हैं और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय हिन्दू धर्म किसी को धर्म-परिवर्तन के लिए नहीं कहता बल्कि सबके कल्याण की बात करता है। इस कल्याण के मार्ग में वह किसी भी धर्म को बाधक नहीं मानता।
 
भारतीय संत स्वामी विवेकानंद, महेश योगी, वेदांत स्वामी, परमहंस योगानंद, महर्षि अरविंद, ओशो रजनीश, जड्डु कृष्णमूर्ति आदि संतों ने अमेरिका को भारतीय अध्यात्म से परिचित कराया और वहां भारतीय दर्शन एवं वेदांत का प्रसार किया। ऐसा कहना है प्रख्यात अमेरिकी लेखक और आध्यात्मिक गुरु और 'अमेरिकन वेदाज' पुस्तक के लेखक फिलिप गोल्डबर्ग का। फिलिप आध्यात्मिक काउंसलर, मेडिटेशन टीचर, वेद ज्ञाता हैं।
 
लेकिन यह एक आधा सच है, ये सारे संत तो आज से 60-70 वर्ष पूर्व ही अमेरिका गए थे। दरअसल, अमेरिका के दार्शनिक, कवि और साहित्यकार भारतीय दर्शन और अध्यात्म से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने वेदों सहित भारत के महान दार्शनिकों के ज्ञान का अध्ययन कर अपना खुद का एक नया दर्शन गढ़ा था। 
 
अगले पन्ने पर जारी...

राल्फ वाल्डो इमर्सन : बोस्टन के रहने वाले इमर्सन (1803-1882) का नाम सभी साहित्य और दर्शन को पढ़ने वाले लोग जानते ही होंगे। ये दार्शनिक होने के साथ-साथ प्रसिद्ध निबंधकार, वक्ता तथा कवि थे। इमर्सन भारतीय दर्शन, वेद और गीता के प्रकांड विद्वान थे। उनके लेखन में इसकी झलक मिलती है। 
 
इमर्सन ने अपने ग्रंथ 'स्वेडनबर्ग' में माया, कर्मफल एवं पुनर्जन्म के सिद्धांतों को हिन्दू दर्शन की पृष्ठभूमि पर समझाने का प्रयास किया है। वे लिखते हैं, 'जीवात्मा को हजारों बार जन्म लेना पड़ता है, जब तक कि वह अपने सभी दुष्कृत्यों से मुक्ति नहीं पा लेता। किन्हीं-किन्हीं को प्रयास करने पर अथवा अध्यात्म उपचारों द्वारा अथवा अनायास ही पूर्वजन्मों की स्मृति भी बनी रहती है, पर सृष्टा ने हर जन्म के बाद भूलने का ही सिद्धांत बनाया है। पुनर्जन्म के प्रसंग मात्र पौराणिक निरर्थक नहीं, वरन यथार्थ हैं।' उनके ये विचार ख्रीस्त (ईसाई) विचारधारा के विरुद्ध थे।
 
अपनी पहली पुस्तक 'नेचर' (1836) में आपने थोथी ईसाइयत तथा अमेरिकी भौतिकवाद की कड़ी आलोचना की। इसके लिए उनको कुछ ईसाई कट्टरपंथियों का विरोध भी झेलना पड़ा।
 
1857 में इमर्सन ने एक कविता लिखी थी जिसका नाम 'ब्रह्म' था। इमर्सन की इस कविता तथा अन्य रचनाओं में गीता, उपनिषद अन्य हिन्दू दर्शन व धर्मग्रंथों के अध्ययन की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इमर्सन के विचारों ने अमेरिकी दर्शन और विज्ञान की दिशा मोड़ दी।
 
डेविड हेनरी थोरो : इनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक है- वाल्डेन। वाल्डेन रूस की एक नदी का नाम है। थोरो बहुत अमीर व्यक्ति थे। वे भोगवादी जीवन से ऊब गए थे। उन्होंने सबकुछ छोड़कर जंगल में संन्यासियों की तरह जीवन बिताने का निश्चय किया। क्यों? 
 
डेविड हेनरी थोरो ने अपनी एक किताब 'लाइफ इन दी वुड्स' में लिखा है, 'बंगला, गाड़ी, प्रसिद्धि, पद और पैसा प्राप्त करने के बाद भी जीवन से सुकून चला जाता है तो समझो तुम असफल हो। सफलता इस बात में निहित है कि तुम कितने निडर और सुकून से जी रहे हो। मुझे प्यार, पैसा या नाम मत दो, अगर कुछ दे सकते हो तो सत्य दो।' थोरो के मन में ऐसे विचार कहां से आए? महात्मा गांधी थोरो को अपना आदर्श मानते थे जबकि थोरो वेदों को अपना आदर्श मानते थे।
 
हेनरी डेविड थोरो अमेरिका के विख्यात समाज-सुधारक थे। वे 'सिविल डिसओबिडियेंस मूवमेंट' के जनक थे जिनसे गांधी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन' लिया था। थोरो के पास गीता के अलावा भारतीय दार्शनिकों की कई किताबें थीं, जो उन्होंने भारत से मंगवाई थीं। थोरो ने वेदों की कई जगहों पर खुलकर प्रशंसा की है।
 
अमेरिकी जनता मानती है कि भारतीय दर्शन और अध्यात्म बहुत ही समृद्ध है। यहां के संगीत में भी एक तरह का दर्शन महसूस होता है। आज अमेरिकी शिक्षा-पद्धति में परिवर्तन आ रहा है और इस परिवर्तन पर भारतीय दर्शन या भारतीयता की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। लाखों अमेरिकियों ने भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन का अध्ययन किया है। भारतीय दर्शन और अध्यात्म का प्रभाव अमेरिका और पश्चिमी देशों पर स्पष्ट दिखाई देता है। भारत अपने शाश्वत जीवन-मूल्यों की रक्षा और उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है और अमेरिकी जनता इससे बहुत प्रभावित है। अमेरिकियों का मानना है कि किसी भी कीमत पर शाश्वत मूल्यों से पीछे नहीं हटना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नरेन्द्र मोदी : मानव या मशीन..!