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प्रवासी कविता : रिश्ते

- रवि पेरी

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जीवन एक लंबा पथ है
बहुतेरे पथिक यहां

कुछ साथी बन चले थे
रिश्तों में बंध के आए
माता-पिता भ्राता और
संतान सखा कहलाए
कुछ समय साथ चले और
अपने जीवन की राह पकड़ ली

मत भूल पथिक तू लेकिन
क्षणभंगुर है यह जीवन तेरा
राह अलग हैं सबके
कहीं संगम कई जुदाई
क्षणभर का साथ मिला था
थे धन्य भाग्य हमारे

बन कृतज्ञ तू उनका
जिन्होंने साथ दिया तुम्हारा
मत शोक मना तू उनका
जिनसे छूटा साथ तुम्हारा

तूने भी यही किया था
अपनों के संग हे प्यारे
जीवन की नियति यही है
शोकाकुल मत हो प्यारे
साथी और राह सदैव ही
बदलते रहते हैं हमारे।


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