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विमोह

- अनिल प्रभा कुमार

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GN

तुम्हारी खुशी से खुश
तुम्हारी नाखुशी से उदास
मैं जो इन दोनों बिंदुओं के बीच
निरंतर डोलती हूं
किसी पुरानी घड़ी के पेंडुलम की तरह
अब रुकना चा‍हती‍ हूं, थमना चाहती हूं।

कोई मेरे मोह का यह चुंबक हटा दे
तो मैं शां‍त हो सकूं स्थिर हो सकूं
अपने ही में।

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