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शिक्षक दिवस के बहाने मन की बात

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- शिकागो से डॉ. मुनीश रायजादा

पिछले हफ्ते 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं भारत में ही था। लंबे समय के बाद ऐसा लगा, जैसे शिक्षक दिवस ने अपनी खोई महता पुन: प्राप्त की हो। मुझे याद है, जब मैं छोटा था तब यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन हुआ करता था, पर गत वर्षों में दूसरी चीजों की चमक में इसने अपना आकर्षण खो-सा दिया।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस दिन को पुनर्जीवित किया है (मुख्यत: अपने राजनीतिक लाभ के लिए!)। मेरे कुछ मित्र मुझसे अक्सर पूछते हैं कि क्या अमेरिका में भी ऐसा कोई दिन मनाया जाता है? अमेरिका में मई महीने का पहला हफ्ता शिक्षक प्रशस्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस हफ्ते का मंगलवार शिक्षक दिवस होता है।
 
विद्यार्थी इस दौरान अपने शिक्षकों को धन्यवाद कार्ड लिखकर अथवा उपहार देकर अपना आभार व्यक्त करते हैं। अगर मैं प्रतीकात्मक चीजों को छोड़ दूं तो कहूंगा कि अमेरिका अपने शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की सफलता का उत्सव हर दिन मनाता है।
 
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि भारत में विश्वस्तर के शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की स्थापना के लिए पर्याप्त मात्रा में युवा प्रतिभा मौजूद है, परंतु हमारे राजनीतिक तंत्र ने हमेशा से उसे हतोत्साहित ही किया है।
 
आखिर क्यों एक एमबीए जैसी डिग्री के लिए, जिसमें न किसी शोध की आवश्यकता है न ही बहुत अधिक वैज्ञानिक एवं जटिल आधारभूत संरचना की, हमारे युवा अमेरिका या अन्य देशों का रुख करते हैं? 
 
प्रबंधन की ऐसी कौन-सी विशेष अवधारणाएं हैं जिन्हें समझने के लिए हमारे छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में 20,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष का खर्च उठाने को तैयार हैं। इसका उत्तर 'विदेशी डिग्री' की मांग अथवा आकर्षण में छुपा है या इस सोच में कि विदेशों की पढ़ाई भविष्य के लिए नई संभावनाएं खोल देती है।
 
* लेखक शिकागो में चिकित्सक (नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ) हैं व सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। 

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