ओ ईश्वर मुझे भी जरा बता
किन रंगों से बनाई ये रंगीन,
तरह-तरह के रंगों वाली दुनिया तुमने
किसी में भरा तुमने भोलेपन का रंग तो कहीं
भर दिए आंसुओं के रंग
कहीं मुश्किलों की चादर में लिपटे सफेद रंग
तो कहीं भर दिए हैं तूने खुशियों के लाल रंग
क्यों दिया किसी-किसी को भोलेपन का रंग
कहीं मुखौटों की आड़ में देखे हमने हजारों रंग
जिसे दिया ये रंग तुमने,
वो इस बेरंगी दुनिया के बाजार में मूर्ख कहलाता रहा
पीठ पीछे हंसते लोग उसके,
सामने वो वाहवाही पाता रहा
छल-कपट से भरी इस दुनिया को देकर सीधे,
और भोलेपन का रंग,
नेक लोगों की हंसी तू उड़वाता रहा
फिर बनाए तुमने रिश्तों के रंग
जिससे आज का इंसां अब घबरा रहा।
चली गई है ओजस्विता रिश्तों की
और न रही है
रिश्तों में गरिमा अब कोई
स्वार्थ के जहर से अब वो रंग फीका-सा लगा
फिर बना दिए दर्द के रंग जिसमें तेरा ये इंसां हर पल
हर पल छटपटाता रहा
हो गए अपने भी परायों के
इंसां के मन से जीने का मजा जाता रहा
कहीं मुखौटों की आड़ में देखे हमने हजारों रंग
एक अर्ज मेरी भी सुन लो
बनाओ अगली दुनिया जब
बनाना तो सिर्फ पशु-पक्षी बनाना
पर भूल से इंसां न बनाना तुम।